आखिर मोदी सरकार क्यों इतनी मनमानी और नाकारा दिख रही है, जब दस हजार मरीज रोज आ रहे हो पूरे देश में लॉकडाउन खोलकर जनता की ज़िंदगी से खिलवाड़ क्यों हो रहा
हिन्दुस्तान में अगले दो दिनों में अधिकतर जगहें लॉकडाऊन खुल जाएगा। कुछ शर्तों के साथ भगवान भी अपना कारोबार शुरू करने की छूट केन्द्र सरकार ने दे दी है। कोरोना से संक्रमण का हाल यह है कि कल देश में दस हजार से अधिक नए संक्रमित मरीज दर्ज हुए हैं। यह बात तब है जब मीडिया में जानकार विशेषज्ञ लगातार यह सवाल उठा रहे हैं कि सरकारों ने कोरोना की जांच कम क्यों कर दी है?
अधिकतर राज्यों का यही हाल है कि वहां प्रवासी मजदूर तो लाखों की संख्या में लौट रहे हैं, लेकिन उस अनुपात में जांच नहीं हो रही है। जांच अधिक से अधिक टालने की कोशिश हो रही है क्योंकि एक आशंका यह है कि अगर जांच बढ़ाई गई तो अधिक पॉजिटिव निकलने लगेंगे और सरकार की इलाज की क्षमता, अस्पताल में दाखिले की क्षमता तुरंत ही खत्म हो जाएगी।
अब दूसरा बड़ा सवाल उठ रहा है लॉकडाऊन को खत्म करने के वक्त का। जानकारों से लेकर बिल्कुल ही अनजान सोशल मीडिया शौकीन लोगों तक इस पर सवाल उठा रहे हैं। संक्रमण का ग्राफ आसमान की तरफ बढ़ते दिख रहा है। कल भारत में संक्रमण में दस हजार का आंकड़ा पार करके पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। जब संक्रमण बढ़ रहा है, वैसे में लॉक्वडाउन खोलने का तुक क्या है। कुछ दूसरे आंकड़े बतलाते हैं कि दुनिया में सबसे बुरे संक्रमण से गुजरने वाले देशों में से एक इटली, स्पेन को पीछे छोड़कर भारत दुनिया में पांचवे नंबर पर आ गया है।
इटली में तो नए मामले आना बंद हो चुके हैं। दूसरी तरफ कुछ लोगों ने एक ग्राफ पोस्ट किया है जिसमें बताया गया है कि स्पेन, जर्मनी, इटली, ब्रिटेन में बढ़ते हुए संक्रमण की शुरूआत में लॉकडाऊन किया गया, जब कोरोना संक्रमण आसमान पर पहुंच गया। उसके बाद वह जब ढलान पर था, और संक्रमण गिर रहा था तब जाकर लॉकडाऊन खोला गया था। दूसरी तरफ भारत का ग्राफ बताता है कि जब यहां संक्रमण लगातार आसमान की तरफ बढ़ रहा है तब लॉकडाऊन खोला गया। उसके बाद भी अभी लगातार बढ़ रहा संक्रमण धीमा होने का नाम नहीं ले रहा है। समाजशास्त्री योगेन्द्र यादव ने इन ग्राफ को लेकर लिखा है कि आपदा प्रबंधन की पाठ्य पुस्तकों में हिन्दुस्तान का मॉडल पढ़ाने के लायक है कि यहां आपदा का प्रबंधन किस तरह आपदाग्रस्त रहा।
यह बात जाहिर है कि जिस लॉकडाऊन में हिन्दुस्तान में तकरीबन पूरी आबादी का कारोबार ठप्प कर दिया था। आधी आबादी की रोजी-रोटी छीन ली थी। उसे कभी न कभी खत्म तो करना था, लेकिन अभी बढ़ते हुए ग्राफ के बीच उसे जिस तरह खत्म किया गया है वह वक्त हैरान करने वाला लगता है। लॉकडाऊन एक शेर की सवारी की तरह था, और जब भी उसे खत्म किया जाता, उस वक्त को तय करना एक बड़ा नाजुक फैसला होना ही था। आज एक-एक कोरोना पॉजिटिव की वजह से एक-एक किलोमीटर की आबादी का घर से निकलना, काम पर जाना बंद कर दिया जा रहा है। एक-एक पॉजिटिव की वजह से पूरे अस्पताल को बंद करना पड़ रहा है। यह नौबत अधिक समय तक साथ देने वाली नहीं है। ।
केन्द्र सरकार को एक अनोखा अधिकार मिला हुआ है, और संसद में उसे एक अभूतपूर्व बाहुबल भी हासिल है। आज के इस अभूतपूर्व संकट में वह राज्यों को विश्वास में लिए बिना तमाम किस्म की मनमानियां कर रही है। उसके फैसलों का बोझ राज्य उठा रहे हैं। आज जब कोरोना का ग्राफ लगातार छलांग लगाकर बढ़ते दिख रहा है तब लॉकडाऊन को हटाना अर्थव्यवस्था के लिए तो जरूरी हो सकता है, लेकिन बीमारी पर काबू पाने की जरूरत के यह ठीक खिलाफ है।
चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र के बीच यहां पर सीधा टकराव है, और एक खतरनाक आशंका यह है कि लॉकडाऊन से बाहर की जा रही अर्थव्यवस्था कहीं जल्द ही बढ़ते कोरोनाग्रस्त लोगों की वजह से बहुत बुरे लॉकडाऊन में न फंस जाए। जहां एक-एक कोरोना मरीज की वजह से एक-एक दफ्तर, या एक-एक इमारत, या एक-एक कारोबार-कारखाना एक-एक पखवाड़े के लिए धंधे से बाहर हो जा रहे हैं।
ऐसे में यह लॉकडाऊन हटाना अर्थव्यवस्था को उठा पाएगा या सेहत को और गिरा देगा, यह अंदाज लगाना अभी मुश्किल है लेकिन दुनिया के ऐसे बहुत से जानकार हैं जो यह मान रहे हैं कि यह लॉकडाऊन हटाने का गलत वक्त है, और केन्द्र सरकार को देश के गरीबों की सीधी आर्थिक मदद करके उन्हें तब तक घर बैठने के लिए तैयार रखना चाहिए जब तक कि कोरोना का ग्राफ पर्याप्त गिर न चुका रहे। आज तो आसमान की तरफ बढ़ते ग्राफ को देखते हुए भी सरकार ने लॉकडाऊन में जो ढील दी है, वह भयानक दिख रही है, और यह नौबत पता नहीं और कितनी खतरनाक होगी?
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