खंडवा लोकसभा सीट पर नंदकुमार सिंह चौहान के बाद भाजपा को कोई बड़ा नेता नहीं दिख रहा। जनता की निगाहें भी मालवा के नेताओं पर टिकी है।
कैलाश विजयवर्गीय और पूर्व सांसद कृष्ण मुरारी मोघे को लेकर उत्साह है। मोघे तो कोरोनाकाल में अपनी सक्रियता से खुद की दावेदारी जता भी चुके।
मुकेश गुप्ता (लेखक, शिक्षाविद )
2 मार्च 2021 को सांसद नंदकुमार सिंह चौहान के निधन से न केवल खंडवा लोकसभा सीट रिक्त हो गई है, बल्कि पूर्वी निमाड़ एक समुचित नेतृत्व से भी वंचित हो गया है। अब कोई ऐसा नेतृत्व इस पूरे क्षेत्र में दिखाई नहीं देता, जिसे पूरे पूर्वी निमाड़ का नेता कहा जा सके।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव कांग्रेस में इस कद के एकमात्र नेता अवश्य हैं, किन्तु उनकी सक्रियता और निष्क्रियता के बीच अंतर खोज पाना टेढ़ी खीर है।
राजनैतिक दावपेंच से परे वो एक सौम्य नेता के रूप में कांग्रेस के एक निर्विकल्प नेता तो है, लेकिन लगातार दो हार और अपने विश्वसनीय लोगों से धोखा खाकर वे कमजोर ही हुये हैं।
वर्तमान की सच्चाई यह है कि अभी भाजपा के पास भी अरूण यादव के कद का दूसरा नेता पूर्वी निमाड़ में नहीं है। ऐसे में पूर्वी निमाड़ में भाजपा को मालवा के नेतृत्व की दरकार है और निमाड़ की नैया पार लगाने के लिये भाजपा का जमीनी कार्यकर्ता इंदौर की ओर आशाभरी निगाहों से ताक रहा है।
सुरसा के मुंह के समान हर रोज बढ़ रही महंगाई और पेट्रोल-डीजल की बारंबार बढ़ रही कीमतों के कारण भाजपाई खेमों में डर का माहौल है। दूसरी ओर कांग्रेस को नित्य प्रतिदिन कमजोर हो रहे संगठन की चिंता के बावजूद किसानों की सरकार के प्रति व्यापक हो रही नाराजगी से सफलता की आस भी बनी हुई है।
पूर्वी निमाड़ में भाजपा के पास कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज है, मगर सबल नेता नहीं है जबकि कांग्रेस के पास अरूण यादव जैसा बड़ा नेता तो है किन्तु संगठन में सक्रिय कार्यकर्ताओं की फौज नहीं है।
भाजपा का जमीनी कार्यकर्ता लोकसभा में फैलाये गये जातिवाद और गुटबाजी से परेशान होकर किसी बड़े नेता के नेतृत्व को स्वीकारने को लालायित है। इस आस में अब तमाम उम्मीदें इंदौरी नेताओं पर जा टिकी है।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव एवं इंदौर के विकास पुरूष माने जाने वाले कैलाश विजयवर्गीय के नाम पर पूरे निमाड़ में भाजपा उत्साह से भरी दिखने लगती है। पूर्वी निमाड़ की खंडवा लोकसभा सीट के आम कार्यकर्ताओं में कैलाश विजयवर्गीय के नाम को लेकर एक अलग ही लगाव देखने में आता है।
यही वजह रही जिसके कारण 2019 के लोकसभा चुनाव में भी खंडवा लोकसभा क्षेत्र का भाजपा का बहुत बड़ा तबका कैलाश विजयवर्गीय को उम्मीदवार बनाने की मांग कर रहा था।
लोकसभा उपचुनाव के पहले यह मांग फिर जोर पकड़ने लगी है, किन्तु स्वयं कैलाश विजयवर्गीय के मन की बात कुछ अलग ही है जिसका अंदाजा अभी तक खंडवा लोकसभा क्षेत्र के जमीनी कार्यकर्ताओं को भी नहीं है।
पश्चिम बंगाल में भाजपा को तीन से 77 तक पहुंचाने के बाद फिर से मप्र में सक्रिय कैलाश विजयवर्गीय ने खंडवा लोकसभा में अपने सबसे विश्वसनीय समर्थक को पिछले दिनों जो स्पष्ट रूप से कहा वह इस लोकसभा क्षेत्र में उनके कई चाहने वालों का दिल तोड़ने वाला बयान भी हो सकता है।
कैलाश विजयवर्गीय ने बहुत साफ तौर पर कहा कि खंडवा लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने की उनकी एक प्रतिशत इच्छा भी नहीं है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव का यह कथन औपचारिक रूप से मीडिया में जाहिर ना होते हुये भी विश्वसनीयता की तमाम कसौटी पर परखा हुआ कहा जा सकता है, क्योंकि यही सूत्र पिछली लोकसभा के ऐन पहले भी कैलाश विजयवर्गीय के मन की बात को सही रूप में पढ़ने में कामयाब साबित हुये थे।
इस स्थिति में अब इंदौर के दूसरे बड़े नेता और संगठन के महारथी कृष्णमुरारी मोघे ही निमाड़ की मालवा के प्रति उपजी आशा के झंडा बरदार साबित होते दिख रहे हैं।
कृष्णमुरारी मोघे की दबे पांव सक्रियता तो सदैव ही निमाड़ में दिखाई देती रही है, किन्तु कोरोना के दूसरे आपदाकाल में उनकी सहयोगात्मक सक्रियता काबिल-ए-गौर कही जा सकती है।
गंभीर मरीजों के इंदौर में इलाज को लेकर कृष्णमुरारी मोघे ने जो जिम्मेदारी और अपनेपन से खंडवा लोकसभा क्षेत्र के लोगों की मदद की, वह निमाड़ के लोगों से उनको जोड़ने का मजबूत आधार बन सकती है। सही मायने में निमाड़ के रहवासियों को इसी प्रकार के एक सघन नाते की जरूरत इंदौर के बड़े नेताओं से दशकों से रही है।
रोजमर्रा की जिंदगी में किसी को भी लोकसभा सदस्य से ना तो अपेक्षा होती है और न ही आशा, किन्तु आपदा के समय जब निमाड़ की जनता को इंदौर पर ही निर्भर होना पड़ता है तब किसी “सक्षम अपने”की आशा हर किसी को होती है।
मोघे ने कोरोना काल में सहयोग का जो हाथ बढ़ाया उसने आशान्वित नजरों में विश्वास का भाव तो जगाया ही है। निमाड़ की जनता की इन आशान्वित नजरों में कुछ खास विशेष नजारे हैं, जिसके आधार पर निमाड़ की राजनीति को भविष्य की नई इबारत लिखने का यह एक अवसर माना जा रहा है।
कुछ खास वजहें हैं, कुछ विशेष परिस्थितियां हैं, जिनके कारण निमाड़ को मालवा की राजनीति की दरकार है।
जनजीवन का जुड़ाव
बुरहानपुर से बागली तक फैले इस खंडवा लोकसभा क्षेत्र का बहुतायत जनजीवन इंदौर पर आश्रित है। रोजगार व्यवसाय से अधिक रोजमर्रा के जीवन में यहां का आम इंसान इंदौर से जुड़ा दिखाई देता है।
चिकित्सा सुविधा और शिक्षा के मामले में भी पूर्वी निमाड़ का तमाम युवा वर्ग भी इंदौर पर निर्भर है। उच्च शिक्षा और गहन चिकित्सा के मामलों में तो यह क्षेत्र पूरी तरह इंदौर पर आश्रित है। शादी-ब्याह की खरीदी हो या खाने-पीने का शौक पूरा करना हो, जाना सबको इंदौर ही पड़ता है।
इंदौर में तो आम इंसान भी साहस से भर जाता है क्योंकि इंदौर में तो एमपी10 या एमपी12 से शुरू होने वाले वाहन नंबर भी पुलिस की निगाह में खलते हैं, जिसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है।
मैंने स्वयं वह दौर देखा है जब निमाड़ के किसी व्यापारी की इंदौर में जेब कट जाये या बैग छिन जाये तो पुलिस मामला सुलझाने की बजाये उलझाती ही थी। लुटे-पिटे व्यापारी अपना दुखड़ा साहू ट्रांसपोर्ट पर जाकर या रणजीत होटल पर जाकर सुनाते थे तो बेहतर समाधान पा पाते थे।
कई बार निमाड़ के लोगों को इंदौर में कोई अपना ना होने के कारण नाजायज दंड भुगतना पड़ता ही है। इस स्थिति में निमाड़ की जनता का इंदौर के नेताओं की ओर आशाभरी निगाहों से देखना लाजमी ही लगता है।
विकास की आस
निमाड़ की जनता का इंदौरी नेताओं के प्रति आशान्वित होने की दूसरी वजह विकास की आस भी है। प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण होने के बावजूद पूर्वी निमाड़ का लोकसभा क्षेत्र विकास की दौड़ में पिछड़ा ही रह गया, जिसका मुख्य कारण यहां के नेतृत्वकर्ताओं की अयोग्यता और संकुचित मानसिकता ही रहा है।
लम्बे समय तक प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं ने भी अपनी राजनीति से ऊपर उठकर निमाड़ के विकास को प्राथमिकता दी होती तो निमाड़ ऐसा बदहाल ना होता।
केंद्र और राज्य सरकार में विशेष ओहदा रखने वाले सत्ताधीश यदि अपने पट्ठों को हर कहीं फिट करने के बजाय निमाड़ की प्राकृतिक संपदा का औद्योगीकरण में उपयोग करने में समय और शक्ति लगाते तो आज निमाड़ की जनता को मालवा के नेताओं की ओर मुंह नहीं ताकना पड़ता।
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