संसद में मानो नोटों की एक गड्डी नहीं, कोई बम बरामद हो गया हो!

Share Politics Wala News

सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार)

राज्यसभा में कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी को आबंटित सीट के नीचे पांच सौ रूपए के नोटों का एक बंडल सुरक्षा जांच के दौरान मिला। और इसे लेकर वहां ऐसा हंगामा हुआ मानो किसी नशीले सामान, या प्रतिबंधित हथियार की बरामदगी हो गई हो। राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने इसकी जांच के आदेश दिए हैं। सदन के भीतर हर दिन सुरक्षा जांच होती है, और जाहिर है कि यह गड्डी वहां बहुत पुरानी नहीं हो सकती। और पिछले दिन अभिषेक मनु सिंघवी ने समय देखकर बताया है कि वे सदन में कुल तीन मिनट थे, और जेब में कुल पांच सौ रूपए लेकर आए थे। उन्हें भी इस गड्डी को लेकर हैरानी है, और ऐसी घटना हो जाने पर उन्होंने कहा है कि क्या सदस्यों की सीट के नीचे कोई कुछ डाल न सके इसलिए ताला-चाबी जैसा कोई इंतजाम करना चाहिए? सिंघवी की कांग्रेस पार्टी के साथ सत्तारूढ़ एनडीए का बड़ा टकराव चल रहा है, और इस मामले को भी एक बहुत बड़ी घटना बताते हुए भाजपा सांसदों ने कई तरह के बयान दिए हैं, और शक जाहिर किए हैं। और अभी संसद के दोनों सदनों में जिस तरह से विपक्ष सरकार पर हमले कर रहा है, उसमें विपक्ष को चुप करने या घेरने का अगर किसी का मकसद हो सकता है, तो वह मकसद भी कम से कम घंटे दो घंटे के लिए तो पांच सौ के नोटों की एक गड्डी के पचास हजार रूपयों ने पूरा करवा दिया है।

अब इस मामले को तथ्यों के आधार पर देखें, तो अभी सदन में कोई मत विभाजन भी नहीं हो रहा था कि कोई सांसद खरीदने के लिए वहां नोट लेकर आए। दूसरी बात यह कि सदन और सांसदों को भी यह बात अच्छी तरह मालूम है कि देश में आज पचास हजार रूपए में पंच और पार्षद भी नहीं बिकते, सांसद तो क्या बिकेंगे? तीसरी बात यह कि सिंघवी की पार्टी को या सिंघवी को आज किसी को राज्यसभा के भीतर कोई भुगतान करना हो, ऐसा भी नहीं लगता। यह भी नहीं लगता कि इन्हें सदन के बाहर किसी राज्यसभा सदस्य को भुगतान करना हो। फिर पचास हजार रूपए की रकम इतनी बड़ी भी नहीं है कि सिंघवी की सीट के नीचे से उसकी बरामदगी सिंघवी पर काली कमाई की तोहमत लगा सके। वे सुप्रीम कोर्ट के एक सबसे काबिल और व्यस्त वकील हैं, और उनके एक बार खड़े होने की फीस ही लाखों रूपए है। इसलिए पचास हजार रूपए की बरामदगी कुछ साबित नहीं करती। यह रकम इतनी बड़ी भी नहीं है कि इसे काला धन मानकर इंकम टैक्स या ईडी किसी की जांच की बारी आए। यह भी मुमकिन नहीं लगता कि सिंघवी किसी मुवक्किल से राज्यसभा में राह चलते पचास हजार रूपए की फीस नगद लेंगे, और फिर उस बंडल को सीट के नीचे छोडक़र जाएंगे। यह बात यहां तक तो समझ आती है कि राज्यसभा के सभापति सदन को इस बारे में सूचित करें और इसकी जांच करवाएं, लेकिन ज्यादा बड़ा सवाल तो राज्यसभा की सुरक्षा व्यवस्था का है कि क्या किसी ने राज्यसभा का समय बर्बाद करने के लिए, असल मुद्दों से ध्यान बंटाने के लिए ऐसा कुछ किया? राज्यसभा में चप्पे-चप्पे पर कैमरों से निगरानी रहती है, और सुरक्षा व्यवस्था के लिए सभापति ही जिम्मेदार और जवाबदेह हैं। इसकी जांच में जाहिर तौर पर तमाम किस्म की रिकॉर्डिंग देखी जानी चाहिए कि सिंघवी की सीट के नीचे पचास हजार रूपए का यह बवाल कहां से आया, किससे गिरा, या किसने वहां प्लांट किया।

दिक्कत यह है कि भारतीय संसदीय राजनीति में सडक़ से संसद तक सत्ता और विपक्ष के खेमों के बीच अविश्वास, हिकारत, और नफरत इतनी गहरी हो चुकी है कि ऐसी असाधारण घटना के तथ्यों की पड़ताल के बजाय कुछ सांसद इसे कांग्रेस के सत्तर बरस के भ्रष्टाचार से जोडक़र बयान दे रहे हैं। क्या कांग्रेस का सत्तर बरस का भ्रष्टाचार पांच सौ के नोटों की एक गड्डी में समा सकता है? अगर सचमुच ही ऐसा है तो इस पार्टी को देश की सबसे ईमानदार पार्टी का दर्जा देना चाहिए। हम इस घटना को अधिक से अधिक एक अटपटी घटना, या साजिश करार दे सकते हैं। इसने कुल मिलाकर सदन का समय बर्बाद करने, वहां बहस के लिए आने वाले किसी जरूरी मुद्दे को हाशिए पर धकेलने का काम ही किया है। इससे न सिंघवी की साख बिगड़ती, न ही कांग्रेस की। बल्कि अब इस घटना के हो जाने के बाद ऐसा लगता है कि साख तो राज्यसभा की सुरक्षा व्यवस्था और वहां लगे कैमरों की दांव पर लग गई है क्योंकि सिंघवी भी अगर वहां बंडल गिराकर जाते हैं, तो भी इस पर किसी न किसी कैमरे की नजर तो रहनी ही चाहिए थी।

जहां तक सिंघवी के सदन में पचास हजार रूपए लेकर आने की बात है, और इसे लेकर आरोप लगाए जा रहे हैं, तो क्या संसद का कोई नियम-कानून सांसदों के वहां निजी रकम लेकर आने के खिलाफ है? वहां कई सांसद बड़ी-बड़ी जेबों वाले कपड़े और जैकेट पहनकर आते हैं, और क्या उनकी तलाशी होती है कि वे कितने रूपए लेकर आए हैं? और किसी सांसद को आते-आते कहीं से कुछ पैसे मिले, तो क्या वे उसे सदन के बाहर कहीं जमा कराकर भीतर आएंगे? या सदन की कार्रवाई के बाद उन्हें कहीं भुगतान करने जाना है, तो क्या वे पैसे लेकर सदन न आएं? ऐसा लगता है कि राजनीतिक तनातनी, और असहिष्णुता ने लोगों के दिमाग से तर्क और न्याय की समझ को बाहर धकेल दिया है। जब देश के सामने, और हर पार्टी के सामने असल मुद्दों की भरमार हो, उस वक्त पचास हजार रूपयों की बरामदगी को लेकर इस तरह का हलकट बवाल चल रहा है कि मानो ये देश के सुरक्षा राज बेचकर पाए गए पचास हजार रूपए हों। यह विवाद यह भी बताता है कि संसदीय और नैतिक रूप से भारतीय सांसद कितने खोखले हो गए हैं कि उन्हें बहस और बवाल के लिए यही एक मुद्दा मिल रहा है।

जब देश की जनता चटपटी और सनसनीखेज बातों को ही अपनी अक्ल की खुराक बना लेती है, तो उसे इसी तरह के फूहड़ बवाल परोसे जाते हैं। देश की जनता को इतना जागरूक छोड़ा नहीं गया है कि वह संसद से कुछ सवाल कर सके। फिर भारत में संसद और विधानसभाओं ने अपने आपको इस तरह के सुरक्षा कवच से घेर रखा है कि जनता उनसे कोई सवाल नहीं कर सकती, उनकी कार्रवाई के बारे में अवमानना झेलने के खतरे के बिना कुछ बोल नहीं सकती। ऐसे में भारत की एक वक्त की गौरवशाली संसद आज बिना किसी सार्थक बहस के महज खेमेबाजी का अखाड़ा बनकर रह गई है, और इसके एक दिन के वक्त का दाम पांच सौ के नोटों की एक गड्डी जितना मान लिया गया है, इससे अधिक राष्ट्रीय-नुकसान और क्या हो सकता है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *