हरीश मिश्र,स्वतंत्र पत्रकार
क्या किसी पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त को इसलिए निशाना बनाया जाना चाहिए क्योंकि वह मुस्लिम है ? भाजपा सांसद
निशिकांत दुबे द्वारा एस.वाई. कुरैशी को “मुस्लिम आयुक्त” कहना केवल एक व्यक्ति पर नहीं, पूरी संवैधानिक व्यवस्था पर हमला है।
संवैधानिक पद की पहचान मज़हब से नहीं, कर्तव्यपालन से तय होती है। कुरैशी ने मतदाता शिक्षा, व्यय नियंत्रण और संस्थागत सुधारों जैसे कार्य किए। क्या इनकी विश्वसनीयता का मूल्यांकन भी मज़हब से होगा ।
लोकतंत्र में असहमति का स्थान है, लेकिन पहचान के नाम पर कलंक लगाने की इजाज़त नहीं। वक्फ अधिनियम पर राय रखने का अधिकार हर नागरिक को है। उसका जवाब तथ्य से दीजिए, फतवा मत दीजिए।
पहचान की राजनीति, लोकतंत्र की दुश्मन है। यदि किसी की आलोचना का आधार उसका धर्म बन जाए, तो संस्थाएं मज़हब के खांचे में बंट जाएंगी। फिर निष्पक्षता एक भ्रम बनकर रह जाएगी।
यह बहस कुरैशी की नहीं है, यह बहस उस सोच की है जो सेवा की जगह संप्रदाय देखती है। यही सोच पाकिस्तान बनाती है, भारत नहीं। यह भारत उस सोच पर टिका है जो जोड़ता है, तोड़ता नहीं।
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