Caste Census: 94 साल बाद देशभर में फिर जातियों की गिनती होगी। लंबे समय से लंबित पड़ी जातीय जनगणना को लेकर आखिरकार केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है।
16 जून को गृह मंत्रालय ने जनगणना अधिनियम 1948 के तहत जनगणना और जातीय जनगणना की अधिसूचना जारी कर दी।
इसके तहत देश में पहली बार जनगणना और जातीय जनगणना एक साथ कराई जाएगी। यह जनगणना दो चरणों में होगी।
पहले फेज में शामिल 4 पहाड़ी राज्यों के लिए 1 अक्टूबर 2026 को और बाकी भारत के लिए 1 मार्च 2027 को ‘रेफरेंस डेट’ माना जाएगा।
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी लंबे समय से जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं।
वहीं, भाजपा का कहना है कि 1947 से कांग्रेस सरकारों ने जातिगत जनगणना से परहेज किया, जबकि अब सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लिया है।
गृह मंत्रालय ने जारी की गजट अधिसूचना
केंद्र सरकार ने 30 अप्रैल 2025 को जातीय जनगणना कराने का ऐलान किया था।
देश में आजादी के बाद यह पहली जातीय जनगणना होगी।
देश में जातीय जनगणना की प्रक्रिया को औपचारिक रूप से शुरू करते हुए गृह मंत्रालय की ओर से गजट अधिसूचना जारी कर दी गई है।
इस अधिसूचना में जनगणना नियमों के तहत अधिसूचित अधिकारियों, डेटा संग्रह प्रक्रिया और डिजिटल माध्यमों का उपयोग जैसे कई अहम बिंदुओं को स्पष्ट किया गया है।
इससे पहले गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को दिल्ली में वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की थी, जिसमें जनगणना की तैयारियों की समीक्षा की गई थी।
Reviewed the preparations for the 16th Census with senior officials.
Tomorrow, the gazette notification of the census will be issued. The census will include caste enumeration for the first time. As many as 34 lakh enumerators and supervisors and around 1.3 lakh census… pic.twitter.com/wkvJda7J4e
— Amit Shah (@AmitShah) June 15, 2025
इस बैठक के बाद ही 16वीं जनगणना को लेकर कवायद तेज हो गई। यह अधिसूचना 14 जून 2025 को प्रकाशित की गई है।
जिसमें बताया गया है कि जनगणना प्रक्रिया में डिजिटल साधनों का उपयोग करते हुए एक मोबाइल ऐप के माध्यम से डेटा एकत्र किया जाएगा।
जनगणना का शेड्यूल और रेफरेंस डेट
जनगणना की प्रक्रिया दो चरणों में होगी।
पहला फेज 1 अक्टूबर 2026 से जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में शुरू होगा।
जबकि दूसरा चरण देश के शेष राज्यों में 1 मार्च 2027 से शुरू किया जाएगा।
यानी उस तारीख की आधी रात को देश की जनसंख्या और सामाजिक स्थिति जैसी जो भी जानकारी होगी, उसे रिकॉर्ड किया जाएगा।
डिटेल डेटा दिसंबर 2027 तक सामने आने की उम्मीद है।
क्यों है यह जनगणना खास?
- इसमें लगभग 34 लाख कर्मचारी हिस्सा लेंगे
- डेटा डिजिटल रूप से इकट्ठा किया जाएगा
- 30 सवालों की प्रोफाइलिंग: नाम, जन्म, लिंग, धर्म, शिक्षा, रोजगार, जाति आदि
- यह डेटा नीतियों, योजनाओं और आरक्षण के निर्धारण में मदद करेगा
- वित्त आयोग द्वारा राज्यों को मिलने वाले अनुदान के लिए यह आधार बनेगा
दो चरणों में जनगणना की प्रक्रिया-
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पहला चरण: हाउस लिस्टिंग और हाउसिंग सेंसस
- इसमें घरों की संख्या, संरचना, मूलभूत सुविधाओं (जैसे जल, बिजली, शौचालय आदि) की जानकारी ली जाएगी।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए फोटो, लोकेशन टैगिंग और जीपीएस डेटा भी एकत्र किया जाएगा।
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दूसरा चरण: जनसंख्या गणना
- इसमें प्रत्येक व्यक्ति का नाम, उम्र, लिंग, जाति, शिक्षा, व्यवसाय, विकलांगता की स्थिति, भाषा, धर्म आदि विवरण लिए जाएंगे।
पहली बार डिजिटल प्रोसेस से जनगणना
यह पहली बार होगा जब देश में डिजिटल जनगणना की जाएगी। इसके लिए एक विशेष मोबाइल एप्लिकेशन विकसित किया गया है, जो जनगणना कर्मचारियों के अलावा नागरिकों के लिए भी उपलब्ध रहेगा।
मोबाइल ऐप और स्व-गणना (Self-Enumeration) की सुविधा दी जाएगी, ताकि नागरिक अपना विवरण स्वयं भी भर सकेंगे। इसके लिए उन्हें ऐप या वेब पोर्टल पर जाकर लॉगइन करना होगा।
हर परिवार को एक यूनिक जनगणना ID दी जाएगी, जिसके जरिए वे लॉगइन कर पाएंगे। प्रत्येक कर्मचारी की कार्य सूची और अपडेट्स ऑनलाइन ही उपलब्ध होंगे।
यह प्रणाली पहली बार डिजिटल इंडिया मिशन के तहत प्रयोग में लाई जा रही है, जिससे न सिर्फ डेटा संग्रह की गति बढ़ेगी, बल्कि पारदर्शिता और सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सकेगी।
जनगणना का कानूनी ढांचा और बदलाव
केंद्र सरकार ने जनगणना अधिनियम, 1948 की धारा 17 के तहत जनगणना नियमों में संशोधन करते हुए उन्हें 2025 की आवश्यकताओं के अनुरूप ढाल दिया है।
इसके तहत जनगणना अधिकारी, पर्यवेक्षक, अधीक्षक, निदेशक और मुख्य निदेशक की नियुक्ति प्रक्रिया का निर्धारण किया गया है।
गृह मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार:
- जनगणना निदेशक भारत सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
- प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में राज्य स्तर पर जनगणना निदेशक होंगे, जो केंद्र सरकार के अधीन कार्य करेंगे।
- जनगणना प्रक्रिया को दो चरणों में संपन्न कराया जाएगा— गृह सूचीकरण और जनगणना विवरण।
वहीं इस बार जनगणना फॉर्म में जाति, उप-जाति, धर्म, उप-धार्मिक समुदाय जैसे कॉलम शामिल किए जाएंगे।
सरकार ने संकेत दिए हैं कि इस बार हर व्यक्ति को अपनी जाति बताने का विकल्प मिलेगा।
इससे ओबीसी, एससी, एसटी के अलावा सामान्य वर्ग की जातियों की भी गिनती होगी।
जाति जनगणना का राजनीतिक-सामाजिक महत्व
जातीय जनगणना को लेकर देश में लंबे समय से मांग उठती रही है।
खासकर ओबीसी वर्ग और कई राजनीतिक दलों ने इसे सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया है।
94 साल बाद बाद यह पहला मौका है, जब जातीय आधार पर आंकड़े इकट्ठा किए जाएंगे।
देश में पिछली बार 1931 में जातिगत जनगणना कराई गई थी।
2011 में मनमोहन सिंह सरकार ने सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) करवाई थी, लेकिन उसके जातिगत आंकड़े कभी सार्वजनिक नहीं किए गए।
तब केवल SC-ST के हाउसहोल्ड डेटा जारी किए गए थे।
कोविड के कारण टली थी जनगणना
भारत में हर 10 साल पर जनगणना होती है। पिछली बार 2011 में जनगणना हुई थी।
वर्ष 2021 में 16वीं जनगणना होनी थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के चलते यह टल गई थी।
इसके बाद इसे 2022, फिर 2023 में करने की बात हुई, लेकिन तकनीकी और प्रशासनिक कारणों से इसे आगे बढ़ाया गया।
अब 2025 में केंद्र सरकार इसे शुरू कर रही है।
माना जा रहा है कि यह जनगणना भारत के सामाजिक और आर्थिक ढांचे को समझने में अहम भूमिका निभाएगी।
क्या जनगणना के बाद होगा परिसीमन?
बिहार सरकार ने पिछले साल अपने स्तर पर जातीय सर्वे कराया था, जिसके आधार पर केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ा।
इसके बाद विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस, राजद, जदयू और डीएमके ने संसद में जातीय जनगणना को लेकर आवाज बुलंद की थी।
अब जबकि केंद्र सरकार ने औपचारिक अधिसूचना जारी कर दी है, तो यह संकेत माना जा रहा है कि 2029 के आम चुनावों से पहले जातीय आंकड़े सार्वजनिक किए जा सकते हैं।
जनगणना के बाद 2028 में लोकसभा और विधानसभा सीटों का परिसीमन शुरू हो सकता है।
यह महिलाओं के लिए 33% आरक्षण लागू करने की दिशा में भी निर्णायक कदम होगा।
हालांकि दक्षिणी राज्यों में इसको लेकर चिंताएं हैं, क्योंकि वहां की कम जनसंख्या की वजह से सीटें घटने की आशंका है।
विशेष प्रशिक्षण और साइबर सुरक्षा उपाय
डिजिटल जनगणना के मद्देनजर केंद्र सरकार ने एक विशेष आईटी टास्क फोर्स गठित की है।
इसमें साइबर सुरक्षा, डेटा प्रोटेक्शन और डिजिटल लॉग प्रबंधन से जुड़े विशेषज्ञ शामिल हैं।
जनगणना कर्मचारियों को भी डिजिटल उपकरणों के संचालन, फील्ड में डेटा संग्रह और रिपोर्टिंग का प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
इस पूरी प्रक्रिया में क्लाउड स्टोरेज, एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन और जियो टैगिंग जैसे अत्याधुनिक उपायों का उपयोग किया जाएगा।
फिलहाल, जातीय जनगणना को लेकर केंद्र सरकार की यह अधिसूचना एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।
डिजिटल माध्यमों के उपयोग से यह प्रक्रिया अधिक पारदर्शी, सटीक और समयबद्ध होने की उम्मीद है।
अब देखना यह होगा कि जातीय आंकड़े सामने आने के बाद नीतियों, योजनाओं और राजनीतिक समीकरणों में किस प्रकार के बदलाव आते हैं।
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