#politicsala Report
ढाका। बांग्लादेश में तख्ता पलट के बाद अवाम दूसरी आज़ादी जैसा महसूस कर रही है। वो जश्न मना रही है तानाशाह शेख हसीना के सत्ता और देश छोड़ देने का। बांग्लादेश के अर्थशास्त्री और वर्ल्ड बैंक में काम कर चुके जाहिद हुसैन ने बताया, ‘ये बांग्लादेश के लिए एक ऐतिहासिक पल है। हम उतना ही खुश महसूस कर रहे हैं, जैसा हमने 16 दिसंबर, 1971 को महसूस किया था, जब बांग्लादेश पाकिस्तानी सेना के कब्जे से मुक्त हुआ था।’
‘हमें अपने ही देश में कुछ भी लिखने या बोलने की आज़ादी नहीं थी। कम से कम वो भावना अब ख़त्म हो गई है। अब हम जश्न मना रहे हैं। हम युवा पीढ़ी और स्टूडेंट्स के आभारी हैं, जिन्होंने दिखाया कि वे बदलाव के एजेंट हैं। वे वास्तविक बदलाव ला सकते हैं, चाहे विरोधी कोई भी हो। हम इंतजार कर रहे हैं कि हमारा भविष्य क्या होगा और वे राष्ट्र के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया कैसे शुरू करेंगे।’
ढाका में आज लोगों को सड़कों पर मार्च करने और पीएम आवास की तरफ बढ़ने की छूट दे दी गई। लोग नारे लगा रहे थे कि तानाशाह हसीना देश से भाग गईं ढाका में आज लोगों को सड़कों पर मार्च करने और पीएम आवास की तरफ बढ़ने की छूट दे दी गई।
इस बीच बांग्लादेश से हिंदुओं के पश्चिम बंगाल पलायन करने की खबरे आ रही हैं। बांग्लादेश से हिंदू पश्चिम बंगाल के बनगांव, बशीरहाट, कूच बिहार, कृष्णानगर, दिनाजपुर, मालदा, मुर्शिदाबाद, और जंगीपुर से बंगाल पलायन कर सकते हैं। इसके मद्देनज़र बॉर्डर पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। आज रात तक बीएसएफ चीफ दलजीत सिंह चौधरी भी पश्चिम बंगाल पहुंच जाएंगे।
एक अन्य प्रदर्शनकारी ने बताया, ‘मैं शुरुआत से इस आंदोलन में जुड़ा हुआ हूं। उन्होंने हमारी मांगें पूरी करने में देरी की है। कई छात्रों की मौत हो गई। हम विरोध जारी रखेंगे। फासीवादी सरकार अस्तित्व में नहीं हो सकती। हमें विजय हासिल कर ली है। आम आदमी और स्टूडेंट्स देश की बागडोर संभालेंगे।’
एक महिला प्रदर्शनकारी बताती हैं, ‘पहले मैं इस आंदोलन से सोशल मीडिया के ज़रिए जुड़ी थी। लेकिन एक के बाद एक छात्र की मौत होती रही। इसको देखकर मुझसे रहा नहीं गया और मैं भी सड़क पर उतर आई। हमने अन्याय और कोटा प्रणाली के खिलाफ आवाज उठाई।
बाद में हमने शेख हसीना की फासीवादी सरकार के इस्तीफे की मांग उठाई। हमें कोटा की जरूरत नहीं है. हम योग्यता आधारित भर्ती चाहते हैं। हम धर्म-आधारित राजनीति से दूर एक धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश की मांग करते हैं।’