Gwalior Literature Festival: महिला बाल विकास विभाग द्वारा 9 मार्च से प्रस्तावित तीन दिवसीय ग्वालियर लिटरेचर फेस्टिवल और बिटिया महोत्सव को सरकार ने स्थगित कर दिया है। आयोजन को लेकर उठे विवाद और जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया गया है।
गुरुवार 6 फरवरी को विभाग द्वारा जारी आधिकारिक प्रेस नोट में कहा गया कि आयोजन की विषय-वस्तु, चयनित वक्ताओं की सूची और कार्यक्रम स्वरूप पर विभागीय कमिश्नर की स्वीकृति प्राप्त नहीं होने के कारण कार्यक्रम को स्थगित किया जा रहा है।
आयोजन पर उठे सवाल
ग्वालियर में प्रस्तावित इस महोत्सव की विषय-वस्तु और कुछ सत्रों को लेकर समाज के विभिन्न वर्गों ने आपत्ति जताई थी। आयोजन में LGBTQ विमर्श, विषैली मर्दानगी और भारत विरोधी विचार रखने वाले कुछ वक्ताओं की भागीदारी को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए गए थे।
खबरों के मुताबिक, आयोजन में आमंत्रित कई वक्ता और आयोजन से जुड़े एनजीओ, भारत विरोधी इको सिस्टम का हिस्सा बताए गए हैं। इनमें यूनिसेफ और एका फाउंडेशन जैसे संगठन भी शामिल हैं, जिनके कुछ पदाधिकारी अतीत में प्रधानमंत्री और सरकार विरोधी टिप्पणियों को लेकर चर्चा में रहे हैं।
मंत्री तक को जानकारी नहीं
चौंकाने वाली बात यह भी सामने आई कि महिला बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया को इस आयोजन की कोई जानकारी ही नहीं दी गई थी। आयोजन के प्रचार सामग्री में न मुख्यमंत्री का उल्लेख था और न ही विभागीय मंत्री का नाम। जैसे ही यह बात उजागर हुई सरकार ने त्वरित संज्ञान लेते हुए महिला बाल विकास विभाग के अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा और आयोजन की पूरी समीक्षा की। मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री ने भी आयोजन की पृष्ठभूमि और चयन प्रक्रिया को लेकर नाराजगी जाहिर की। इसके बाद देर शाम आयोजन को रद्द करने के आदेश जारी किए गए।
जनभावनाओं का सम्मान
महिला बाल विकास विभाग के इस आयोजन को लेकर पहले भी ग्वालियर में विरोध के स्वर उठते रहे हैं। बावजूद इसके, इसे उसी स्वरूप में दोबारा आयोजित करने की कोशिश की गई, जिसे लेकर बुद्धिजीवी, कला प्रेमी और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आपत्ति दर्ज कराई थी।
सरकार द्वारा इस आयोजन को स्थगित करने का निर्णय, जनभावनाओं के सम्मान में लिया गया कदम माना जा रहा है। महिला बाल विकास विभाग के मंच का राजनीतिक और वैचारिक दुरुपयोग रोकने के लिए सरकार का यह निर्णय सराहनीय माना जा रहा है। आने वाले समय में सरकारी आयोजनों की पारदर्शिता और वैचारिक संतुलन सुनिश्चित करने की दिशा में यह मामला एक नजीर बन सकता है।
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