किसान की आवाज़ .. ये कीलें हमारी छाती में ठोंकी जा रही हैं इनका हिसाब तो लेंगे ही

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अरुण दीक्षित (वरिष्ठ पत्रकार )

दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन को लेकर जहां पूरी दुनियां में एक अलग तरह की चर्चा चल रही है वहीं पश्चिमी उत्तरप्रदेश में अलग तरह का माहौल है।

मेरा पश्चिमी उत्तरप्रदेश और किसान आंदोलन से पैंतीस साल पुराना नाता है। नरेश और राकेश टिकैत के पिता चौधरी महेंद्र टिकैत को मैंने बहुत ही करीब से देखा था। पत्रकार के तौर पर मैंने महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में हुए सभी बड़े आंदोलनों को कवर किया था। उस समय के कई युवा किसान नेताओं से आज भी संपर्क बना हुआ है।

पिछले दो तीन दिनों से दिल्ली की उत्तरप्रदेश सीमा पर जिस तरह की गतिविधियां चल रही हैं ,वैसी शायद देश में पहले कभी नहीं और कहीं नहीं चली होंगी। छोटे टिकैत के आंसुओं के बाद जिस तरह पश्चिमी उत्तरप्रदेश के किसान दिल्ली की ओर आये हैं वह अपने आप में एक मिसाल है।

इस एक घटना ने राकेश टिकैत के सभी पुराने पाप धो दिए हैं। पूरे पश्चिमी उत्तरप्रदेश का किसान अब किसान आंदोलन और किसान नेता राकेश टिकैत के साथ खड़ा है।अब तक किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे नेता अचानक पीछे हो गए हैं। साथ ही उन लोगो को भी माकूल जवाब मिल गया है जो किसान आंदोलन को सिर्फ पंजाब के सिख किसानों का आंदोलन बता रहे थे।

दूसरी तरफ पिछले दो तीन दिन में दिल्ली पुलिस ने जो कुछ किया है,उसने किसानों का न केवल गुस्सा बढ़ाया है बल्कि उनकी एकजुटता को मजबूत किया है।किसानों को दिल्ली आने से रोकने के लिये पुलिस सड़कों पर जो कुछ कर रही है,उसे पूरी दुनियां देख रही है।

दिल्ली की सड़कों पर कंक्रीट की दीवारें बनाई जा रही हैं। कटीले तार बिछाए जा रहे हैं।और तो और सड़कों में बड़े बड़े भाले और कीलें ठोकी जा रहीं हैं।

इनका क्या असर किसानों पर हुआ है यह जानने के लिए मैंने पश्चिम उत्तरप्रदेश के अपने कुछ पुराने मित्रों से बात की। महेंद्र सिंह टिकैत के समय से किसान आंदोलन से जुड़े रहे एक वरिष्ठ किसान नेता ने कहा-पंडत जी ये तो भाले और कीलें दिल्ली की सड़कों पर ठोंकी जा रही हैं वे सड़कों पे नहीं हमारी छाती पे ठोंकी जा रही हैं।अब हम छाती में कीलों को लेकर तो जी नही सकते,सो इन्हें उखाड़ेंगे जरूर! कीलें भी उखाड़ेंगे और उनकी भी जड़ खोदेंगे जो ये कीलें गड़बा रहे हैं।

अब वे तो मानेंगे नहीं कि हमने दिल्ली के तखत पे चढ़ने में उनकी कितनी मदद की! इसलिये उन्हें उतार के उनकी औकात में लाना तो पड़ेगा ही।अब लग रहा है कि राम के चक्कर में पड़ के, इनकी मदद करके हमने बड़ी गलती की। अब इन्हें बतावेंगे कि हम कौन हैं। वैसे भला हो इनका,इन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को एक कर दिया।

मुजफ्फर नगर के नरेश का मानना है -भाई ये जो दिल्ली की सड़कों पे जो भाले ठोंके जा रहे हैं वे ये बता रहे हैं कि दिल्ली की सरकार किसानों से डर गई है। 26 जनवरी को उसने जो नाटक लाल किले पर करवाया वह तो दुनियां ने देखा। सब समझ गए हैं कि 56 इंच के सीने में कितनी चालें और छल भरा हुआ है।

अब कीलें ठुकबा के उसने यह दिखा दिया कि वह दिल्ली को ताबूत बना के खुद उसमें कील ठोंक रही है।देश का किसान अब इस ताबूत को अपने कंधे पे रख के उसकी सही जगह पे पहुंचा के आएंगे!

बड़ौत के बुजुर्ग पत्रकार रमेश चन्द्र जैन के मुताविक केंद्र सरकार ने अपनी हरकतों से पश्चिमी उत्तरप्रदेश में किसानों को एक कर दिया है। बहुत सालों बाद किसान सब कुछ भूल कर सिर्फ किसान बन के एक हुए हैं।जिलों में हो रही पंचायते इसका प्रमाण हैं।

पंचायतों में मुस्लिम किसानों की मौजूदगी यह बताती है कि हेले जाट (हिन्दू जाट)और मुले जाट(मुसलमान जाट) फिर एक हो रहे हैं।पिछले कुछ सालों में जो दरारें उनके बीच आयी थीं वे अब पटती सी दिख रही हैं। इसका दूरगामी असर होने वाला है।

सहारनपुर के वीरेंद्र के मुताविक अब किसान आंदोलन को सिर्फ जाट किसानों का आंदोलन मानना गलत होगा। ये जो खाप पंचायतें जिलों में हो रही हैं, वे इस बात का प्रमाण हैं कि किसानों के मुद्दे पर सब खेतिहर जातियां एक हैं। वैसे भी खाप का मतलब सिर्फ एक जाति से नही होता उसमें तो गांव की सब जातियां शामिल होती हैं। सर्वखाप का अर्थ ही यही है कि सबकी खाप।

पुराने मित्रों से बातचीत में यह भी पता चला कि भाजपा से जुड़े जाट नेताओं की हालत खराब है। वे अपने नेतृत्व के सामने जाकर सच बोल नही सकते !और अब बिरादरी में मुंह दिखाने लायक नही रहे।

यह भी खबर है कि पश्चिमी उत्तरप्रदेश के कई गांवों में भाजपा नेताओं के प्रवेश पर अघोषित प्रतिबंध लग गया है। भाजपा नेता इस स्थिति में भी नही हैं कि वे किसानों के बीच जा सकें। आंदोलन की उपज वरिष्ठ जाट नेता सत्यपाल मलिक ने राज्यपाल के पद पर रहते हुए भी अपनी बात कही है।

चौधरी चरण सिंह के शागिर्द रहे सतपाल मलिक कुछ साल पहले ही भाजपा में शामिल हुए थे। माना जा रहा है कि यह किसान आंदोलन उनके बाहर निकलने की बजह बन सकता है।

मलिक बिहार,जम्मू कश्मीर के राज्यपाल रहे हैं। फिलहाल वे गोवा के राज्यपाल हैं। वे अपने गृह क्षेत्र से सघन संपर्क रखते हैं।उनके बयान से किसानों का हौसला बढ़ा है।

हालांकि अभी 2024 बहुत दूर है।तब तक क्या होगा कहा नही जा सकता।लेकिन इतना तय है कि किसानों को रोकने के लिए दिल्ली की सड़कों पे गड़ी कीलें 2022 में योगी की गाड़ी को नुकसान जरूर पहुंचाएगी! हेले जाट और मुले जाट अगर अपने पुराने भाई चारे पर लौट आये तो मुस्लिम बहुल पश्चिमी उत्तरप्रदेश में तस्वीर बदल सकती है।

इस इलाके से करीब 125 विधायक चुने जाते हैं।सड़कों पर गड़ी कीलें अगर सीने में चुभती रहीं तो हालात कुछ और होंगे।
(फेसबुक वॉल से साभार )

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