फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण जेएनयू में हमले और हिंसा के शिकार छात्रों के साथ जाकर खड़ी क्या हो गई, देश भर में जेएनयू-विरोधी विचारधारा ने उस पर हल्ला बोल दिया। अगर यह बात वैचारिक असहमति तक रहती, तब भी ठीक था। लेकिन सोशल मीडिया पर दीपिका की फिल्म के बहिष्कार का फतवा दिया गया, और दसियों हजार की संख्या में लोगों ने इस फिल्म की अपनी बुक कराई हुई टिकटों को रद्द करवाने के सुबूत पोस्ट किए।
यह एक अलग बात है कि आदतन झूठे लोगों ने एक ही रद्द करवाई हुई टिकट को दस-दस हजार ट्वीट के साथ चिपका दिया, और कुछ लोगों ने यह मजा भी लिया कि इस सिनेमाघर की इन सीटों को दुनिया में सबसे अधिक बार कैंसल होने का विश्व रिकॉर्ड बिना मेहनत हासिल हो गया। बात यहां तक भी रहती, तो भी ठीक था। लेकिन जेएनयू विरोधी लोगों ने दीपिका के बीते बरसों की एक-एक बात को ढूंढकर उन्हें घटिया साबित करने में इतनी मेहनत की कि वह भारत की कार्यसंस्कृति के मुकाबले बहुत अधिक कड़ी मेहनत साबित हुई। अगर सभी आम हिन्दुस्तानी जिंदगी के रोजमर्रा के काम में इतनी मेहनत करते तो हिन्दुस्तान जापान बन गया होता। लेकिन कुछ और जगहों पर बात कुछ और आगे तक बढ़ी।
कांग्रेस के दो राज्य छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश यह घोषणा कर चुके हैं कि दीपिका पादुकोण की चर्चित फिल्म जो कि भारत में लड़कियों और महिलाओं पर तेजाब हमले की यातना, और उससे जीतकर निकलने पर बनी है, उसे राज्य में टैक्सफ्री किया गया है।
किसी फिल्म पर मनोरंजन कर न लेना राज्य का अधिकार होता है, और देश भर के तमाम राज्यों में हर बरस कई ऐसी फिल्में रहती हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बनी एक फिल्म पर से भी कई राज्यों में टैक्स हटाया ही था। भारत में तेजाबी हमलों की शिकार युवतियों के संघर्ष की कहानी तो वैसे भी एक जलता-सुलगता सामाजिक मुद्दा है। लेकिन इस पर मध्यप्रदेश विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष, विधायक गोपाल भार्गव ने बयान दिया कि दीपिका अगर किसी पोर्न फिल्म में अभिनय करती तो भी मध्यप्रदेश सरकार उसे टैक्सफ्री कर देती।
अब यह हमला दीपिका पादुकोण नाम की उस अभिनेत्री पर है जिसने देश को बाहर भी बहुत सी शोहरत दिलवाई है, जिसके पिता अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी रहे हैं, और जिसे मोदी सरकार ने बहुत से सरकारी इश्तहारों की मॉडलिंग के लिए छांटकर उससे काम करवाया है।
ऐसी अभिनेत्री के लिए, और खासकर तेजाबी-हमले जैसे दर्दनाक सामाजिक मुद्दे की फिल्म के संदर्भ में पोर्न फिल्म की मिसाल देना एक बहुत ही घटिया दर्जे का हिंसक बयान है। और यह बात भी समझने की जरूरत है कि यह बयान किसी नौसिखिए नेता का दिया हुआ नहीं है, बल्कि मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य की विधानसभा के प्रतिपक्ष के नेता का है जो कि मंत्री स्तर का दर्जा भी पाते हैं, और जो भाजपा के विधायक हैं जो कि भारतीय संस्कृति की बात करते थकती नहीं है।
एक अच्छी और राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त अभिनेत्री के बारे में इस तरह की ओछी बात करना कांग्रेस सरकार पर हमला नहीं है, यह तमाम महिलाओं पर हमला है, और गोपाल भार्गव की पार्टी के बहुत से दूसरे नेता भी ऐसा करते आए हैं। लोगों को याद होगा कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल बहुत से मौकों पर महिलाओं के खिलाफ हिंसक और हमलावर बातें बोलते आए हैं।
दीपिका पादुकोण के जेएनयू चले जाने से अगर उनके किरदार वाली फिल्म के सामाजिक मुद्दे को अनदेखा करके एक पोर्न फिल्म की मिसाल दी जा रही है, तो यह बहुत ही शर्मनाक बात है। कांग्रेस पार्टी इस बयान का जैसा भी विरोध करे, यह उसका अपना फैसला रहेगा, लेकिन देश के महिला संगठनों को, देश के मानवाधिकार संगठनों को, और सामाजिक चेतना वाले लोगों को ऐसे बयान को अनदेखा-अनसुना करके चुप नहीं बैठना चाहिए, बल्कि इतने कड़े शब्दों में इसके खिलाफ कहना चाहिए कि अगली बार ऐसा कुछ कहते हुए नेता कुछ सोचें।
महिलाओं के खिलाफ इस किस्म की हिंसक सोच उन कई वजहों में से एक है जिनसे देश में इतने अधिक बलात्कार होते हैं, और लड़कियों पर तेजाबी हमले होते हैं। ऐसी तेजाबी जुबान की हिंसा को कम आंकना गलत होगा।