CP Radhakrishnan

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सीपी राधाकृष्णन बने देश के 15वें उपराष्ट्रपति, कभी नाम की वजह से नहीं बन पाए थे केंद्रीय मंत्री

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CP Radhakrishnan: देश के 15वें उपराष्ट्रपति का चुनाव मंगलवार को संपन्न हो गया है और नए उपराष्ट्रपति मिल चुके हैं।

इस मुकाबले में एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन ने विपक्षी गठबंधन इंडिया (I.N.D.I.A.) के प्रत्याशी सुदर्शन रेड्डी को हराकर जीत हासिल की।

राधाकृष्णन ने यह चुनाव 152 वोटों के अंतर से जीता। उन्हें कुल 452 वोट मिले, जबकि रेड्डी को 300 वोट ही मिल सके। 15 वोट अमान्य करार दिए गए।

सूत्रों के मुताबिक, सीपी राधाकृष्णन 12 सितंबर को उपराष्ट्रपति पद की शपथ ले सकते हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाएंगी।

सीपी राधाकृष्णन की जीत पर आए रिएक्शन

  • राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ट्वीट कर कहा, राधाकृष्णन जी को बधाई। सार्वजनिक जीवन में उनके दशकों के अनुभव से देश को महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा। मैं उनके सफल कार्यकाल की शुभकामनाएं देती हूं।”
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बधाई देते हुए कहा, राधाकृष्णन जी का जीवन समाज सेवा और वंचितों को सशक्त बनाने के लिए समर्पित रहा है। वे एक बेहतर उपराष्ट्रपति होंगे, जो हमारे संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करेंगे।”
  • सुदर्शन रेड्डी ने हार स्वीकार करते हुए कहा, आज सांसदों ने अपना फैसला सुना दिया है। मैं परिणाम को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करता हूं और राधाकृष्णन जी को शुभकामनाएं देता हूं।”
  • कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रतिक्रिया दी, यह चुनाव केवल पद का नहीं था, बल्कि विचारधारा की लड़ाई थी। हमें उम्मीद है कि नए उपराष्ट्रपति संसदीय परंपराओं को बनाए रखेंगे और निष्पक्ष रहेंगे।”

98% से अधिक मतदान, क्रॉस वोटिंग के कयास

788 सांसदों में से 767 सांसदों ने उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान किया। मतदान प्रतिशत 98.2% रहा।

आंकड़ों पर नजर डालें तो एनडीए खेमे के पास 427 सांसद थे।

इसमें वाईएसआर कांग्रेस के 11 सांसदों का समर्थन जोड़ें तो कुल संख्या 438 बनती है।

लेकिन नतीजों में राधाकृष्णन को 452 वोट मिले, यानी कम से कम 14 वोट विपक्ष से उनके पक्ष में गए।

भाजपा ने दावा किया कि विपक्षी दलों की ओर से 15 क्रॉस वोटिंग हुई और कुछ सांसदों ने जानबूझकर अमान्य वोट भी डाले।

दूसरी ओर विपक्ष का कहना है कि उनके 315 सांसद पूरी तरह एकजुट रहे। हालांकि नतीजों में इस दावे की झलक नहीं दिखी।

यही वजह है कि नतीजों के बाद सियासी गलियारों में विपक्षी वोट टूटने की अटकलें तेज हो गई हैं।

अटल सरकार में सांसद, मंत्री बनने से चूक

तमिलनाडु के दिग्गज नेता सीपी राधाकृष्णन का राजनीतिक करियर लंबा रहा है।

वह अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान दो बार कोयंबटूर से लोकसभा सांसद चुने गए थे।

एक दिलचस्प किस्सा यह भी है कि वह केंद्रीय मंत्री बनने के बेहद करीब थे।

लेकिन उनके नाम की समानता की वजह से पार्टी प्रबंधन ने गलती से पोन राधाकृष्णन को मंत्री बना दिया।

इस घटना ने उनके राजनीतिक करियर में एक अहम मोड़ ला दिया।

क्षेत्रीय पहचान की बजाय विचारधारा का वर्चस्व

इस बार उपराष्ट्रपति चुनाव में भाषा या क्षेत्रीय पहचान की बजाय विचारधारा का वर्चस्व ज्यादा दिखा।

तमिलनाडु की सबसे बड़ी पार्टी डीएमके ने राधाकृष्णन को एक भी वोट नहीं दिया।

आंध्र प्रदेश की टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस ने विपक्षी उम्मीदवार रेड्डी को समर्थन नहीं दिया, जबकि वह खुद तेलुगु भाषी हैं।

बीजेडी और बीआरएस जैसे दलों ने चुनाव में हिस्सा नहीं लिया, लेकिन उनके सांसद पार्टी लाइन से बंधे रहे।

इससे साफ होता है कि इस चुनाव में नेताओं की निष्ठा भाषा या क्षेत्र की बजाय राजनीतिक ब्लॉक यानी एनडीए और इंडिया गठबंधन की ओर ज्यादा रही।

दक्षिण भारत में पकड़ मजबूत करने की रणनीति

राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने के पीछे भाजपा की स्पष्ट रणनीति है।

पार्टी का दक्षिण भारत में राजनीतिक आधार अपेक्षाकृत कमजोर है।

आंध्र प्रदेश में भाजपा ने टीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई है। जहां कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार है।

वहीं, तमिलनाडु में डीएमके और केरल में वामपंथी दल सत्ता में हैं।

भाजपा चाहती है कि राधाकृष्णन जैसे दक्षिण भारतीय नेता की उपस्थिति से दक्षिण भारत में उसका आधार मजबूत हो।

आने वाले वर्षों में तमिलनाडु और केरल में विधानसभा चुनाव होंगे, जिसमें पार्टी अपनी मौजूदगी बढ़ाने की कोशिश करेगी।

2026 के साउथ इलेक्शन पर भाजपा की नजर

2026 में तमिलनाडु और केरल दोनों राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे।

  • तमिलनाडु: 2021 में भाजपा ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से सिर्फ 4 सीटें मिलीं। वोट शेयर मात्र 2.6% रहा।
  • केरल: 2021 विधानसभा चुनाव में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। मौजूदा विधानसभा में भाजपा का कोई प्रतिनिधि नहीं है।

इन नतीजों को देखते हुए भाजपा चाहती है कि उपराष्ट्रपति पद पर दक्षिण भारतीय चेहरा लाकर इन राज्यों में राजनीतिक संदेश दिया जाए।

सीपी राधाकृष्णन की जीत ने न केवल उन्हें देश का 15वां उपराष्ट्रपति बनाया है, बल्कि भाजपा को दक्षिण भारत में एक नई उम्मीद भी दी है।

 

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