छग में सरकार किसी की हो भ्र्ष्ट आज़ाद .. हंसते गब्बर गिरोह के सामने अब बसंती नहीं लोकतंत्र नाच रहा है…

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सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार )

छत्तीसगढ़ का नान घोटाला भाजपा के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के वक्त पकड़ में आया। उसमें दो आईएएस अफसरों के बहुत बड़े भ्रष्टाचार के सुबूत मिले। मामला अदालत तक पहुंचा। इसके पहले कि इन अफसरों की गिरफ्तारी हो पाती, भाजपा की सरकार चली गई। कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार ने आते ही इन दो अफसरों को बचाने के लिए जो कुछ किया, वह शायद भारत के इतिहास का एक अनोखा मामला रहा।

जिन लोगों को सीधे जेल में रहना था, वे सरकार हांक रहे थे। जिन लोगों ने भ्रष्टाचार को पकड़ा था, उन पर चाबुक चला रहे थे। अपने ओहदे से ऊपर जाकर ये लोग पूरे राज्य का शासन-प्रशासन चला रहे थे। पूरी सरकार इन्हें रिपोर्ट कर रही थी। जो जांच एजेंसी करोड़ों के नान घोटाले के सुबूत लेकर अदालत में खड़ी थी, उसके नए अफसर अपनी ही जांच की बुलेट ट्रेन को पटरी से उतारने में लग गए थे।

जांच एजेंसी के गवाहों को डरा-धमकाकर उनके बयान बदलवाए गए थे। जो दो अफसर इस भ्रष्टाचार के मुख्य आरोपी थे, वे ही अब अपने खिलाफ चल रही अदालती कार्रवाई में जांच एजेंसी के वकील के साथ मिलकर सुबूत और गवाह बर्बाद कर रहे थे। केस को खोखला बना रहे थे। हालत यह थी कि इनकमटैक्स और ईडी ने जो सुबूत जब्त किए और अदालत के सामने रखे, उनके मुताबिक जांच एजेंसी के मुखिया अदालत में एजेंसी के खिलाफ और आरोपियों के पक्ष में आदेश होने पर खुशियां मना रहे थे। ये तमाम जानकारियां पिछले बरसों में किस्तों में अदालतों में पेश होती रहीं, लेकिन भूपेश बघेल की सरकार को आखिरी दिन तक यही अफसर हांकते रहे। कांग्रेस पार्टी और भूपेश सरकार ने यह सार्वजनिक रूख अख्तियार कर लिया था कि ईडी गैरभाजपाई सरकार के पीछे लगी है, और फिर मानो इस तर्क के बाद किसी सार्वजनिक सफाई की भी कोई जरूरत नहीं रह गई थी।

कई और सुबूत लोकतंत्र को खत्म करने वाले सामने आते रहे, लेकिन सरकार ने अपने राजनीतिक रूख को अपनी ढाल बना लिया था। ईडी की कार्रवाई चलते हुए भी नान आरोपी ही भूपेश सरकार के हजारों करोड़ के नए घोटालों और जुर्म के सरगना बने रहे। भूपेश बघेल तो सरकार के मुखिया थे ही। अभी सुप्रीम कोर्ट में ईडी ने ये पुख्ता सुबूत पेश किए हैं कि रमन सिंह के वक्त पकड़ाए नान घोटाले के दो सबसे बड़े आरोपी आईएएस, आलोक शुक्ला और अनिल टुटेजा भूपेश सरकार आने के बाद अपनी जमानत के पहले उस वक्त के राज्य के सरकारी महाधिवक्ता के मार्फत हाईकोर्ट के एक जज के संपर्क में थे। जिससे कि बाद में इन्हें जमानत मिली।

भूपेश सरकार के समय मुख्य सचिव रहे अजय सिंह नाम के अफसर के सगे भाई अरविंद कुमार चंदेल राज्य के हाईकोर्ट के जज थे। इनके मार्फत महाधिवक्ता ने जमानत के लिए संपर्क किया, और बाद में जमानत मिल भी गई। मुख्य सचिव अजय सिंह को राज्य का अगला योजना मंडल उपाध्यक्ष बनाया गया जिससे कि उन्हें एक नया कार्यकाल मिला। ईडी ने सुप्रीम कोर्ट के सामने यह भी पेश किया है कि किस तरह इस जज अरविन्द कुमार चंदेल के बेटी-दामाद का बायोडाटा एजी के मार्फत अनिल टुटेजा को अनुकूल कार्रवाई के लिए भेजा गया था।

इन सबकी वॉट्सऐप चैट अभी सुप्रीम कोर्ट के सामने खुलासे से पेश की गई है। लोगों को याद होना चाहिए कि ये बातें बरसों पहले भी सामने आई थीं जब भूपेश सरकार को हांकने का काम अकेले अनिल टुटेजा कर रहे थे। आज ईडी के कुछ दूसरे मामलों को देखें तो पता चलता है कि वे हजारों करोड़ रुपये के शराब घोटाले के सरगना भी थे। इस बात को भी कुछ बरस हो गए हैं कि ईडी ने सुप्रीम कोर्ट को जज अरविन्द चंदेल से संबंधित सारी चैट के सुबूत बंद लिफाफे में दे दिए थे कि वे अदालत से जुड़े हुए व्यक्ति के बारे में इतनी संवेदनशील बातचीत खुली अदालत में पेश करना नहीं चाहते। अब जब तारीखों के साथ सारे सुबूत इस तरह खुलकर सामने आए हैं कि 16 अक्टूबर को जज अरविन्द कुमार चंदेल ने टुटेजा-शुक्ला को जमानत दी। एक पखवाड़े बाद एक नवंबर को उनके भाई अजय सिंह को योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया, जिसका कार्यकाल लंबा रहने वाला था।

इस मामले पर लिखने के पहले इसकी खुलासे से चर्चा होना इसलिए जरूरी है कि लोग यह समझ सकें कि लोकतंत्र में ताकतवर तबके किस तरह गिरोहबंदी करके संविधान को पैरों तले कुचल सकते हैं। जब निर्वाचित मुख्यमंत्री, यूपीएससी के चुनिंदा आईएएस अफसर, राज्य के महाधिवक्ता, हाईकोर्ट के जज, राज्य की सबसे बड़ी जांच एजेंसी के मुखिया मुजरिमों को बचाने के लिए एक रजिस्टर्ड गिरोह बना लेते हैं, तो फिर लोकतंत्र सहमकर किसी नाली की पुलिया के नीचे जा दुबकता है।

छत्तीसगढ़ में छोटे-छोटे से अटवारी-पटवारी रिश्वत लेने में गिरफ्तार किए जा रहे हैं, और सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर बैठे गब्बर, सांभा, और कालिया उसी तरह हंस रहे हैं जिस तरह फिल्म शोले में ये तीनों हंसते थे।

फर्क यही है कि नीचे नाचने का जिम्मा इस बार लोकतंत्र को दिया गया था, जिसे ऐसे गिरोह ने बेबस बसंती बना छोड़ा है। हम नहीं जानते कि अभी सुप्रीम कोर्ट इन तमाम लोगों के खिलाफ कब और कैसे कोई कार्रवाई करेगा, फिलहाल भूपेश बघेल विधायक हैं, अजय सिंह को नई भाजपा सरकार ने मुख्य चुनाव अधिकारी बनाकर एक लंबा कार्यकाल और दे दिया है, जज चंदेल किसी और राज्य में हाईकोर्ट में फैसले सुना रहे हैं। संविधान के खिलाफ और संवैधानिक जिम्मेदारी के खिलाफ काम करने वाले सतीश वर्मा अदालत में वकालत कर रहे हैं, अनिल टुटेजा कुछ दूसरे मामलों में जेल में पड़े हैं। आलोक शुक्ला भूपेश सरकार के पूरे कार्यकाल भ्रष्टाचार के नए-नए मामलों से घिरे हुए अब तक आजाद घूम रहे हैं।

यह पूरा माहौल देखकर नाली की पुलिया के नीचे दुबके लोकतंत्र की बाहर निकलने की हिम्मत भी भला कैसे हो सकती है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट पुख्ता सुबूतों के बंद लिफाफे पर सोते बरसों गुजार चुका है, नाली के पानी में भीगा लोकतंत्र बाहर निकले भी तो कैसे निकले? प्रदेश की नई भाजपा सरकार ने तो इसी जज के इसी भाई को नया संवैधानिक ओहदा दे दिया है।

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