#politicswala report
Justice BR Gavai: भारत के मुख्य न्यायधीश जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि सरकारें कभी न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती और सरकारें जज और जूरी नहीं बन सकतीं। उन्होंने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय दिलाने में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर जोर देते हुए उच्चतम न्यायालय के बुलडोजर जस्टिस पर रोक लगाने के फैसले का हवाला दिया।
भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने इटली के शीर्ष न्यायाधीशों की सभा को संबोधित करते हुए पिछले 75 वर्षों में ग़रीबों और हाशिये पर पड़े लोगों को राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक न्याय दिलाने में सुप्रीम कोर्ट के योगदान को रेखांकित करते हुए यह बात कही। Bulldozer Justice पर रोक लगा हमने सरकार को जज, जूरी और जल्लाद बनने से रोका- CJI गवई
जस्टिस बी आर गवई इटली के मिलान में आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे। उन्हें ‘सामाजिक-आर्थिक न्याय प्रदान करने संविधान की भूमिका’ विषय पर संबोधन के लिए आमंत्रित किया गया था। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा है कि कार्यपालिका कभी भी न्यायपालिका का काम नहीं कर सकती। उन्होंने SC के एक अहम फैसले का हवाला दिया।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि 1970 के दशक के बाद से उच्चतम न्यायालय ने राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का हवाला देकर संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ‘जीवन के अधिकार’ की व्याख्या को काफी हद तक व्यापक बना दिया। न्यायालय ने माना कि जीवन का अधिकार केवल शारीरिक अस्तित्व के बारे में नहीं है, बल्कि इसमें सम्मान के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है।
मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर भी जोर दिया कि समाज में बराबरी के बिना कोई भी देश विकसित होने का दावा नहीं कर सकता। Bulldozer Justice पर रोक लगा हमने सरकार को जज, जूरी और जल्लाद बनने से रोका- CJI गवई
उन्होंने कहा-
“समाज के बड़े हिस्से को हाशिए पर रखने वाली असमानताओं को ठीक किए बिना कोई भी राष्ट्र असल में प्रगतिशील या लोकतांत्रिक होने का दावा नहीं कर सकता। दूसरे शब्दों में, सामाजिक आर्थिक न्याय स्थिरता, सामाजिक सामंजस्य और सतत विकास के लिए एक व्यावहारिक आवश्यकता है।”
-सरकार अपराध के आरोपी व्यक्तियों के घरों को मनमाने तरीके से गिराना, कानूनी प्रक्रिया को दरकिनार करना और नागरिकों के आवास के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन करना, असंवैधानिक है।
-एक साथ न्यायाधीश, जूरी और जल्लाद नहीं बन सकती। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का उल्लेख किया जिसमें कहा गया था, “घर का निर्माण सामाजिक-आर्थिक अधिकारों का एक पहलू है।” उन्होंने कहा, “एक आम नागरिक के लिए, घर का निर्माण वर्षों की मेहनत, सपनों और आकांक्षाओं की परिणति होता है। एक घर केवल संपत्ति नहीं होता, बल्कि यह एक परिवार या व्यक्ति की स्थिरता, सुरक्षा और भविष्य की सामूहिक आशाओं का प्रतीक होता है।”
– “पिछले 75 वर्षों को देखते हुए यह निर्विवाद है कि भारतीय संविधान ने आम लोगों के जीवन में बदलाव लाने की दिशा में निरंतर प्रयास किए हैं।”
हम आपको बता दें कि CJI बीआर गवई भारतीय संविधान के 75 वर्षों के सफर से संबंधित विषय पर इटली की मिलान कोर्ट ऑफ अपील में बोल रहे थे।
CJI ने कहा कि,
-“संविधान की 75 वर्षों की यात्रा सामाजिक-आर्थिक न्याय प्रदान करने में महान महत्वाकांक्षा और महत्वपूर्ण सफलताओं की कहानी है।”
– संविधान को अपनाने के तुरंत बाद भारतीय संसद द्वारा की गई प्रारंभिक पहलों में भूमि और कृषि सुधार कानून तथा पिछड़े वर्गों के लिए
सकारात्मक कार्रवाई की नीतियां शामिल थीं। इन पहलों का प्रभाव आज स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
– “शिक्षा में सकारात्मक कार्रवाई की नीतियां, जिन्होंने ऐतिहासिक अन्यायों को सुधारने और अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का प्रयास किया, वे संविधान की वास्तविक समानता और सामाजिक-आर्थिक न्याय की प्रतिबद्धता का ठोस प्रमाण हैं।”
-न्याय एक अमूर्त आदर्श नहीं है और इसे सामाजिक संरचनाओं, अवसरों के वितरण और लोगों के रहने की स्थितियों में जड़ें जमानी चाहिए।
– ”किसी भी देश के लिए, सामाजिक-आर्थिक न्याय राष्ट्रीय प्रगति का एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह सुनिश्चित करता है कि विकास समावेशी हो, अवसरों का समान वितरण हो और सभी व्यक्ति, चाहे उनकी सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो, सम्मान और स्वतंत्रता के साथ रह सकें।’’
-भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में, मुझे यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि भारतीय संविधान के निर्माता इसके प्रावधानों का मसौदा तैयार करते समय सामाजिक-आर्थिक न्याय की अनिवार्यता के प्रति गहनता से सचेत थे। इसका मसौदा औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता के लिए एक लंबे और कठिन संघर्ष के बाद तैयार किया गया था।’’
–मैंने अक्सर कहा है, और मैं आज यहां फिर दोहराता हूं, कि समावेश और परिवर्तन
के इस संवैधानिक दृष्टिकोण के कारण ही मैं भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में
आपके सामने खड़ा हूं। ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहने वाली पृष्ठभूमि से आने
के कारण, मैं उन्हीं संवैधानिक आदर्शों का उत्पाद हूं, जो अवसरों को लोकतांत्रिक
बनाने और जाति तथा बहिष्कार की बेड़ियों को तोड़ने की मांग करते हैं।’’
You may also like
-
साक्षात्कार … मैं सिर्फ अखिलेश से मिलूंगा….. जब मेरी पत्नी ईद पर अकेली रो रही थी, तो क्या कोई भी आया ?’
-
#BiharElection… औरतों के नाम खूब कटे, नीतीश की चिंता बढ़ी
-
सपा में फिर एकजुटता का संदेश: जेल से छूटने के बाद आजम खान-अखिलेश यादव की पहली मुलाकात
-
UN में भारत ने बंद की पाक की बोलती: कहा- जिनकी सेना 4 लाख महिलाओं से दुष्कर्म करे, उन्हें दूसरों को सिखाने का हक नहीं
-
रायबरेली मॉब लिंचिंग: राहुल गांधी बोले- यह एक इंसान की नहीं बल्कि इंसानियत, संविधान और न्याय की हत्या