BJP-RSS Conflict

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नड्डा को 40 दिन का एक्सटेंशन, पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर फिर आमने-सामने RSS-BJP

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BJP-RSS Conflict: भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के कार्यकाल को 40 दिन आगे बढ़ा दिया गया है, यानी 20 अप्रैल से पहले नए अध्यक्ष का नाम सामने आना मुश्किल है। लेकिन BJP का अगला अध्यक्ष कब तक चुना जाएगा ? नए अध्यक्ष के नाम का ऐलान करने में इतनी देरी क्यों हो रही है ? नए अध्यक्ष के नाम को लेकर पार्टी और संगठन के सहमति क्यों नहीं बन पा रही है ?

ये सारे सवाल इसी बात की ओर इशारा कर रहें हैं कि BJP और RSS के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।

ऐसे होता है BJP अध्यक्ष का चुनाव

पहले यह समझ लेतें हैं कि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होता कैसे है ? दरअसल, भाजपा के संविधान और नियम की धारा-19 में अध्यक्ष के चुनाव के प्रावधान किए गए हैं। चुनाव के लिए नॉमिनेशन फॉर्म भरना होता है और चुनाव पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बनाए गए नियमों के तहत होता है।

नियमों के मुताबिक राष्ट्रीय परिषद और प्रदेश परिषदों के सदस्यों का इलेक्टोरल कॉलेज बनता है, फिर यही इलेक्टोरल कॉलेज राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव करता है। अध्यक्ष बनाने के लिए उम्मीदवार का कम से कम 15 साल तक पार्टी का प्राथमिक सदस्य रहना जरूरी है। इलेक्टोरल कॉलेज के कम से कम 20 सदस्य उसके प्रस्तावक हो और ये प्रस्ताव कम से कम 5 ऐसे राज्यों से आएं, जहां राष्ट्रीय परिषद के चुनाव हो चुके हों और प्रस्ताव पर उम्मीदवार का दस्तखत जरूर हो।

अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए नॉमिनेशन के बाद वोटिंग होती है और फिर काउंटिंग के लिए बैलेट बॉक्सेस को दिल्ली लाया जाता है। BJP के संविधान और नियम की धारा-20 के मुताबिक कोई पात्र सदस्य 3-3 साल के लगातार 2 कार्यकाल यानी लगातार कुल 6 साल तक अध्यक्ष रह सकता है।

BJP में अध्यक्ष पद पर RSS की दखलअंदाजी

BJP का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन बनेगा इसका इंतजार सभी को है, लेकिन यह इंतजार कब खत्म होगा किसी को नहीं पता। हालांकि, इसी मसले को लेकर काफी समय से RSS  की सलाह और पार्टी के फैसलों के बीच मतभेद स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आ रहें हैं।

भारतीय जनता पार्टी (BJP) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के बीच विचारधारा और संगठनात्मक संतुलन को लेकर एक बार फिर टकराव की स्थिति बनती दिख रही है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि यह संघर्ष महज़ एक संगठनात्मक मतभेद है या फिर पार्टी के भविष्य की दिशा तय करने वाली महत्वपूर्ण राजनीतिक कड़ी? बहरहाल जो भी इससे नए अध्यक्ष के चुनाव में देरी जरुर हो रही है। इ

सके अलावा नया अध्यक्ष न चुन पाने की एक वजह 36 में से 24 राज्य इकाइयों में संगठन के चुनाव न हो पाना भी है। अध्यक्ष चुनने के लिए आधे से ज्यादा राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों का चुनाव होना जरूरी है। अब तक सिर्फ 12 राज्यों में ही चुनाव हो पाए हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए अभी 6 और राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों का चुनाव होना जरूरी है।

BJP में नए अध्यक्ष की खोज: RSS की प्राथमिकता क्या?

BJP के लिए नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन महज़ एक आंतरिक प्रक्रिया नहीं बल्कि एक अहम राजनीतिक निर्णय है, जिससे आगामी चुनावों की रणनीति तय होगी। RSS ने इस पद के लिए ऐसे नेता की सलाह दी है, जो संगठन के प्रति समर्पित हो और पार्टी से अधिक RSS की विचारधारा को प्राथमिकता दे।

सूत्रों के मुताबिक, RSS की पहली प्राथमिकता है कि अध्यक्ष पद पर कोई ऐसा चेहरा आए, जिसका बैकग्राउंड संगठन से जुड़ा हो और जो संघ की नीतियों को BJP की कार्यशैली में सम्मिलित कर सके। इसी संदर्भ में RSS ने दो नाम सुझाए: मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर। इसके अलावा, संघ ने यह भी सुझाव दिया है कि नारी सशक्तिकरण को ध्यान में रखते हुए इस बार किसी महिला को अध्यक्ष बनाया जाए।

BJP की रणनीति: नड्डा जैसा नेतृत्व क्यों चाहती है पार्टी?

BJP नेतृत्व चाहता है कि नया अध्यक्ष जेपी नड्डा जैसा ही कोई चेहरा हो, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में काम करने के लिए पूरी तरह तैयार हो। पार्टी नेतृत्व का मानना है कि एक स्वतंत्र संगठनात्मक बैकग्राउंड रखने वाला व्यक्ति पार्टी में अनुशासन और निरंतरता बनाए रखने में सहायक होगा।

लोकसभा चुनाव के दौरान जेपी नड्डा ने कहा था कि अब BJP खुद को संभालने में सक्षम है और उसे पहले जितनी RSS की जरूरत नहीं है। इस बयान से RSS में असंतोष उत्पन्न हुआ था, क्योंकि इसे संघ की भूमिका को कम आंकने के रूप में देखा गया। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद पार्टी और संगठन के बीच यह खटास और अधिक स्पष्ट हो गई।

हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली के हालिया चुनावों में BJP की जीत के बाद पार्टी और संघ के बीच यह मतभेद और गहराया। इससे यह तो साफ है कि पार्टी और संघ के बीच केवल नेतृत्व चयन को लेकर ही नहीं, बल्कि चुनावी रणनीति और उसकी सफलता के श्रेय को लेकर भी मतभेद हैं।

RSS की रणनीति: संगठन पर नियंत्रण मजबूत करने की कोशिश?

RSS का दृष्टिकोण यह संकेत देता है कि वह BJP की स्वायत्तता को एक सीमित दायरे में रखना चाहता है। संघ का मानना है कि BJP भले ही सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन चुकी हो, लेकिन उसका मूल संगठनात्मक आधार RSS ही है। संघ यह सुनिश्चित करना चाहता है कि पार्टी का नेतृत्व संघ के मूल सिद्धांतों के अनुसार चले और स्वतंत्र रूप से फैसले न ले।

21 से 23 मार्च को RSS की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक होने वाली है। तारीखों के ऐलान के वक्त RSS के एक पदाधिकारी ने बताया था कि यह RSS की अहम सालाना बैठक है। इसमें एक साल पहले किए गए कामों की समीक्षा और अगले साल के लक्ष्य तय होते हैं। ये बैठक टाली नहीं जा सकती, इसलिए 5 मार्च को इसकी तारीख का ऐलान कर दिया गया।

माना जा रहा है कि इस बैठक में BJP के नए अध्यक्ष के चयन का मुद्दा प्रमुख रहेगा। इसलिए बैठक से पहले BJP को नया अध्यक्ष चुनना ही पड़ेगा। RSS चाहता है कि इस बैठक से पहले BJP अपने नए अध्यक्ष का ऐलान करें, लेकिन पार्टी अभी तक किसी नाम पर सहमति नहीं बना पाई है।

BJP-RSS संबंधों का भविष्य क्या होगा?

फिलहाल, जेपी नड्डा को 40 दिनों का अतिरिक्त कार्यकाल दिया गया है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि 20 अप्रैल तक वे ही अध्यक्ष बने रहेंगे। इस अवधि के दौरान BJP की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठकें होंगी, जिनमें नए अध्यक्ष के नाम की घोषणा संभव है।

BJP और RSS के बीच यह गतिरोध बताता है कि संगठन और राजनीतिक दल के बीच संतुलन बनाए रखना कितना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। BJP अब एक स्वतंत्र राजनीतिक शक्ति के रूप में उभर चुकी है और RSS के हर निर्देश को मानने के बजाय अपने निर्णय खुद लेने लगी है।

हालांकि, यह टकराव पूरी तरह से विरोध का संकेत नहीं है, बल्कि यह संघ और पार्टी के बीच संतुलन स्थापित करने की कोशिश भी हो सकती है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि BJP और RSS के बीच यह खींचतान पार्टी की भविष्य की राजनीति को किस दिशा में मोड़ती है।

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