Arvind Kejriwal

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AAP की ‘सोलो पॉलिटिक्स’: गुजरात में अरविंद केजरीवाल का ऐलान, अकेले लड़ेंगे बिहार विधानसभा चुनाव

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Arvind Kejriwal: गुजरात दौरे पर गए आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने बड़ा राजनीतिक ऐलान किया कि AAP बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अकेले मैदान में उतरेगी।

इस घोषणा के साथ ही AAP ने न सिर्फ बिहार की सियासत में हलचल पैदा कर दी है, बल्कि विपक्षी गठबंधन INDIA की एकजुटता पर भी बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।

केजरीवाल का यह बयान उस समय आया है जब बिहार में सभी प्रमुख दलों ने चुनावी रणनीति बनानी शुरू कर दी है और गठबंधन की राजनीति अपने सबसे नाजुक मोड़ पर है।

ऐसे में AAP का यह ‘सोलो प्ले’ न केवल राजनीतिक समीकरणों को बदलने की क्षमता रखता है।

बल्कि यह भी संकेत देता है कि अरविंद केजरीवाल अब राष्ट्रीय स्तर पर एक स्वतंत्र राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित होने की दिशा में निर्णायक कदम उठा चुके हैं।

INDIA गठबंधन में ‘INDIVIDUAL’ की वापसी?

लोकसभा चुनावों में INDIA गठबंधन के अहम सदस्य के तौर पर आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सीट साझा की थी।

लेकिन अब केजरीवाल का कहना है कि INDIA गठबंधन केवल लोकसभा चुनावों तक था, अब हमारा किसी से कोई गठबंधन नहीं है।

यह साफ इशारा है कि INDIA गठबंधन केवल एक चुनावी जुगलबंदी थी, विचारधारात्मक मेल नहीं।

AAP का यह स्टैंड विपक्षी एकता के दावे को सीधे चुनौती देता है, खासकर तब जब कांग्रेस और RJD के बीच बिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर खींचतान चल रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, AAP के इस फैसले से INDIA गठबंधन में दरार गहराने वाली है।

यह कदम 2025 ही नहीं बल्कि 2027 के अन्य राज्यों और 2029 के आम चुनावों के लिए AAP की स्वतंत्र पहचान स्थापित करने की कोशिश भी है।

बिहार में सभी 243 सीटों पर लड़ने की तैयारी

केजरीवाल ने बिहार चुनाव में उतरने का ऐलान केवल चुनाव लड़ने की घोषणा के तौर पर नहीं, बल्कि खुद को एक सशक्त विकल्प के रूप में पेश करते हुए किया।

उन्होंने कहा, बिहार में हम अकेले लड़ेंगे, जीतेंगे और सरकार बनाएंगे। पंजाब में हमने कर दिखाया है, गुजरात में भी जीत हमारी होगी।

गौरतलब है कि AAP ने पहले दिल्ली और फिर पंजाब में बहुमत की सरकार बनाकर दिखाया है।

बिहार जैसे राज्य में जहां जातीय और क्षेत्रीय समीकरण लंबे समय से निर्णायक भूमिका निभाते हैं, वहां AAP की यह कोशिश एक बोल्ड एक्सपेरिमेंट मानी जा रही है।

केजरीवाल ने साफ किया कि पार्टी बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी।

यह फैसला स्पष्ट करता है कि AAP बिहार को केवल एक राज्य नहीं, बल्कि एक राजनीतिक प्रयोगशाला के रूप में देख रही है, जैसे उसने दिल्ली और पंजाब में किया।

हालांकि बिहार की राजनीति में AAP की अभी तक प्रभावी मौजूदगी नहीं रही है, लेकिन यह कोशिश 2025 के विधानसभा चुनाव के जरिए राज्य में राजनीतिक जमीन तलाशने की गंभीर कोशिश मानी जा रही है।

कांग्रेस पर तीखा हमला, बीजेपी से भी दो-दो हाथ

अरविंद केजरीवाल ने जहां बीजेपी पर जोरदार हमला बोला, वहीं कांग्रेस पर भी निशाना साधा।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस और बीजेपी का रिश्ता क्या कहलाता है। क्या ये भाई-बहन का रिश्ता है या ये पति-पत्नी का रिश्ता है।

गुजरात में बीजेपी और कांग्रेस के बीच ये प्रेमी और प्रेमिका का रिश्ता है जो छुप छुपकर मिलते हैं।

कांग्रेस केवल और केवल बीजेपी की नौकरी करती है। केवल आम आदमी पार्टी है, जो देश की और गुजरात के लोगों की सेवा करती है।

बीजेपी का 30 सालों तक गुजरात में राज कैसे चला, क्योंकि कांग्रेस इनकी जेब में थी।

बीजेपी को अहंकार हो गया कि गुजरात के लोग कहां जाएंगे, उनके पास तो विकल्प ही नहीं है।

गुजरात वालों को वोट तो देना ही पड़ेगा, कमल का बटन दबाना ही पड़ेगा क्योंकि कांग्रेस इनकी जेब में है।

70 फीसदी ठेके इनकी पार्टी को मिलते हैं और 30 फीसदी ठेके उनकी पार्टी को मिलते हैं।

दोनों मिलकर करते हैं और दोनों के नेताओं ने अपनी-अपनी कंपनियां खोल रखी हैं।

AAP की ‘सोलो पॉलिटिक्स’ Vs RJD-JDU-BJP

गुजरात में सूरत बाढ़ को ‘मानव निर्मित आपदा’ बताते हुए केजरीवाल ने BJP पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और कहा कि युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है, किसानों को यूरिया तक नहीं मिलता।

यही नैरेटिव AAP बिहार में भी दोहराने वाली है। AAP अपने पुराने मॉडल — शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली-पानी और भ्रष्टाचार पर प्रहार — के साथ बिहार की जनता को आकर्षित करना चाहती है।

लेकिन यह देखना बाकी है कि क्या बिहार के जातीय और पारंपरिक वोट बैंक इस नई राजनीति को स्वीकार करते हैं या नहीं।

हालांकि AAP के हौसले बुलंद हैं, लेकिन बिहार की जमीनी हकीकत अलग है।

राज्य में राजनीति जातीय समीकरणों, क्षेत्रीय नेताओं के प्रभाव और सामाजिक ध्रुवीकरण पर टिकी है।

AAP के पास यहां न तो कोई बड़ा चेहरा है, न ही स्थानीय सांगठनिक ढांचा अभी इतना मजबूत है।

इसके अलावा, RJD, JDU और बीजेपी जैसे स्थापित दलों की मौजूदगी में AAP को शुरुआत में संघर्ष करना होगा।

लेकिन, अगर पार्टी युवाओं, शिक्षित वर्ग और भ्रष्टाचार विरोधी मतदाताओं को आकर्षित करने में सफल रही, तो वह 2025 में गेमचेंजर भी बन सकती है।

 

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