विष्णुदेव साय के एक बरस के रिपोर्ट कार्ड पर एक नजर

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सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार)

छत्तीसगढ़ में भाजपा की विष्णुदेव साय सरकार का पहला बरस कल पार्टी और सरकार ने जनादेश परब के नाम से मनाया। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, और पहले पार्टी के छत्तीसगढ़ प्रभारी रह चुके केन्द्रीय मंत्री जे.पी.नड्डा इस मौके पर समारोह में आए, और उन्होंने पिछली कांग्रेस सरकार पर खासे हमले भी किए। और दरअसल सच्चाई भी यही है कि पिछली कांग्रेस सरकार की पृष्ठभूमि में जब मौजूदा भाजपा सरकार को देखा जाता है, तो राज्य के लोकतंत्र के लिए यही एक राहत की पहली बात दिखती है कि अब राज्य शासन के नाम से संविधानेत्तर सत्ता काम नहीं कर रही है, और जो घोषित और निर्वाचित सरकार है, वही सरकार के एक नियमित ढांचे के भीतर काम कर रही है। यह कम राहत की बात नहीं है कि अब सरकार में कोई मनमाने फैसले लिए जाते नहीं दिखते जो कि पिछली कांग्रेस सरकार के पूरे कार्यकाल की एक खास पहचान रही। कुछ लोगों को लग सकता है कि विष्णुदेव साय की सरकार सत्ता के भीतर, और सत्ता के बाहर संगठन या संघ के स्तर पर कई जगह बंटे हुए अधिकारों की सरकार है। लेकिन यह समझने की जरूरत है कि नेहरू के वक्त भी सत्ता और संगठन से बाहर के गांधी अपने कड़े फैसलों, और जिद के साथ सरकार पर हावी रहते थे, और सरकार उनके अनकहे दबाव में भी फैसले लेती थी। नेहरू बहुत विचलित होते थे, लेकिन गांधी के सामने बेबस थे। बाद की कई सरकारों में भी सरकार से परे सत्ता के केन्द्र रहते थे। लोगों को याद होगा कि इंदिरा के राजनीतिक जीवन में संजय गांधी संगठन और सरकार पर किस हद तक हावी रहते थे, और एक दुर्घटना में उनकी अकाल-मौत की वजह से उनके एक बेहतर भाई, राजीव गांधी को मौका मिला, या उन्हें मजबूरी में राजनीति में आना पड़ा, और संजय गांधी का बदनाम युग खत्म हुआ। लोगों को याद होगा कि जब-जब देश-प्रदेश में भाजपा की सरकारें रहीं, संघ का उन पर एक बड़ा वैचारिक दबाव रहा, और यह बात पूरी तरह से लुकी-छिपी भी नहीं रही। मनमोहन सिंह के दस बरस के कार्यकाल में सोनिया गांधी की अगुवाई में एक राष्ट्रीय सलाहकार परिषद बनी थी, जिसका एक सरकारी दर्जा भी था, और इसमें तमाम गैरराजनीतिक सदस्य थे जो कि जनसंगठनों से, या जनसरोकारों से आए हुए थे, और सरकार के बहुत से फैसले इसी परिषद के लिए हुए थे। हम मनमोहन सिंह सरकार का वह एक दिन देखें जब दिल्ली प्रेस क्लब में राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह कैबिनेट के मंजूर किए गए एक विधेयक के मसौदे को फाडक़र फेंक दिया था, और उनका यह फैसला कैबिनेट को मानना पड़ा था। इसलिए आज अगर छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार में अलग-अलग मंत्रियों की कुछ मजबूती दिखती है, अगर भाजपा-संगठन या संघ परिवार की पकड़ दिखती है, तो यह किसी मजबूरी में सत्ता का बंटवारा नहीं है, किसी भी जिम्मेदार संगठन को अपनी सरकार के अलग-अलग स्तरों पर अपनी पकड़ या दखल रखनी चाहिए। इसलिए विष्णुदेव साय सरकार के बारे में यह धारणा निराधार है कि इसमें सत्ता के बहुत से केन्द्र हैं। सच तो यह है कि पार्टी ने बिना मुनादी किए हुए कुछ कड़े फैसले लिए, और मुख्यमंत्री साय की स्थिति को अधिक मजबूत करके सबको एक संदेश दिया। मंत्रिमंडल में सबसे वरिष्ठ और अनुभवी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के बारे में जब यह लगने लगा कि वे मुख्यमंत्री के समानांतर एक प्रभामंडल बना रहे हैं, तो पार्टी ने उन्हें राज्य की राजनीति से अलग करके सांसद बना दिया, और गृहमंत्री विजय शर्मा जिस तरह नक्सल मोर्चे को अपना विभागीय मामला मानकर नीतियां तय कर रहे थे, घोषणाएं कर रहे थे, उन्हें किसी अदृश्य ताकत ने बंद कर दिया। इन दो बातों से दूसरे लोगों तक यह साफ संदेश चले गया कि पार्टी विष्णुदेव साय के मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारों के साथ किसी दूसरे मंत्री या नेता की दखल नहीं चाहती। यह एक अलग बात है कि किसी भी जिम्मेदार पार्टी को अपनी सरकार के राजनीतिक फैसलों और कामकाज पर नजर भी रखनी चाहिए, और उसे मार्गदर्शन भी देते रहना चाहिए। इसलिए हम सरकार पर संगठन की पकड़ को संविधानेत्तर नहीं मानते, अगर वह कामकाज में सीधी दखल नहीं है, और निर्वाचित-सत्तारूढ़ नेताओं के माध्यम से पार्टी की रीति-नीति में अमल करवाना है। इसी बात की कमी ने पिछले कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को तबाह किया, और उन्हें एक तानाशाह मिजाज पाने का मौका दिया। कोई भी जिम्मेदार पार्टी होती, तो वह कांग्रेस सरकार की भयानक गलतियों, गलत कामों, और अपराधों को बर्दाश्त नहीं करती। लेकिन कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन के कमजोर हो जाने, और गिने-चुने राज्यों में सरकार रह जाने का नतीजा यह था कि कांग्रेस एक किस्म से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के पास गिरवी रख दी गई थी, और भाजपा ऐसे किसी भी दबाव से मुक्त है।

अब हम साय सरकार के पहले बरस के प्रदर्शन को देखें, तो विधानसभा चुनाव में पार्टी जिन चुनावी वायदों के साथ सत्ता में आई थी, उनमें से अधिकतर प्रमुख वायदों पर अमल हो चुका है। बड़े-बड़े आर्थिक कार्यक्रम ठीक से चल रहे हैं। चूंकि छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार बनने के बाद साल भर में लोकसभा और म्युनिसिपल-पंचायत चुनाव होते हैं, इसलिए सरकार का यह पहला साल किसी ठोस काम को करने का नहीं रहता है, बल्कि चुनावी वायदों पर अमल करने का रहता है ताकि सत्ता पर आने के बाद अगले ये दो चुनाव हारने की नौबत न आ जाए। जब खजाने से किसी बड़े काम को करने के बजाय लोगों को सीधा फायदा पहुंचाने वाले रियायत और अनुदान के आर्थिक कार्यक्रम लागू किए जाएं, तो इनकी वजह से लोकप्रियता और वाहवाही मिलना आसान भी रहता है। अब पंचायत-म्युनिसिपल चुनावों के बाद इस सरकार की असली और कड़ी चुनौतियां सामने आएंगी कि राज्य के दीर्घकालीन हितों के लिए क्या किया जा सकता है? राज्य के औद्योगिक विकास, ढांचागत विस्तार, जीडीपी में बढ़ोत्तरी, बेरोजगारी में कमी, और राज्य की नौजवान पीढ़ी की हुनर में इजाफा, इन मोर्चों पर सरकार की सफलता या विफलता पहले बरस में सामने नहीं आती है, इसलिए आने वाले बरस इसका सुबूत बनेंगे। फिलहाल यह पहला बरस भ्रष्टाचार के किसी स्कैंडल के बिना गुजरा है, जो कि पिछले पांच बरस की तुलना में कोई छोटी कामयाबी नहीं है।

सरकार ने अपना जो रिपोर्ट कार्ड पेश किया है, उसकी कुछ बातों की चर्चा करें, तो कांग्रेस के पांच बरसों में कुल जितने नक्सली मारे गए थे, उससे अधिक नक्सली इस एक बरस में भाजपा सरकार के राज में उन्हीं सुरक्षाबलों ने मारे हैं। यह हैरानी की बात है कि कांग्रेस राज में 2023 में कुल 20 नक्सली मारे गए थे, और 2024 में भाजपा राज में इसके दस गुना से अधिक! चूंकि हथियारबंद आंदोलनों को खत्म करना सरकार की जिम्मेदारी है इसलिए यह एक बड़ा काम हुआ है, लेकिन सरकार के पहले दिन से गृहमंत्री विजय शर्मा नक्सलियों से शांतिवार्ता की बात करते आ रहे थे, और सरकार अब तक किसी शांतिवार्ता की जमीन तैयार नहीं कर पाई है। सुरक्षाबलों की इतनी बड़ी तैनाती की बहुत बड़ी लागत रहती है, इसलिए भी, और बेकसूर आदिवासियों की मौतें रोकने के लिए भी शांतिवार्ता की जरूरत है। सरकार को इसकी कोशिश करनी चाहिए। पिछली सरकार के समय प्रधानमंत्री आवास योजना में इतने अड़ंगे लगे थे कि चुनाव हो गए, और लाखों मकान बनना रह गए थे। इस बार केन्द्र से कोई टकराव न होने से डबल इंजन की सरकार के चलते 18 लाख से अधिक प्रधानमंत्री आवास बनने जा रहे हैं जो कि 70 लाख से अधिक नागरिकों की बसाहट बनेंगे। लोगों को याद होगा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मोदी सरकार से टकराव के चलते ये मकान न बनने पर इसी के विरोध में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टी.एस.सिंहदेव ने यह विभाग छोड़ दिया था।हम यहां पर एक-एक कार्यक्रम और उपलब्धि के आंकड़ों पर चर्चा करना नहीं चाहते, लेकिन हम मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार के एक बरस की चर्चा को पिछली सरकार से कुछ बातों पर तुलना किए बिना पूरा नहीं कर पा रहे हैं, और आज की इस कॉलम की जगह इसी में खत्म हो गई। बाकी फिर कभी।

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