Raj Thackeray Marathi Controversy: महाराष्ट्र में स्कूली शिक्षा को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे ने सरकार से साफ शब्दों में मांग की है कि राज्य के स्कूलों में पहली कक्षा से केवल मराठी और अंग्रेजी ही पढ़ाई जाए।
उन्होंने कहा कि हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करना सही नहीं है और यदि सरकार ने इस पर कोई लिखित आदेश नहीं दिया तो MNS आंदोलन करेगी।
उनका यह बयान ऐसे समय आया है जब राज्य सरकार नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के तहत स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव करने जा रही है।
क्या है पूरे विवाद की जड़?
16 अप्रैल 2025 को महाराष्ट्र सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 को लागू करने की घोषणा की थी।
इसके तहत पहली से पांचवीं कक्षा के छात्रों को तीन भाषाएं पढ़ाने की योजना बनाई गई।
इन तीन भाषाओं में मराठी, अंग्रेजी और हिंदी को शामिल किया गया।
इसमें हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य किया गया था।
राज्य सरकार के इस फैसले का महाराष्ट्र में कई संगठनों और राजनीतिक दलों ने विरोध किया।
खासतौर पर राज ठाकरे की पार्टी MNS ने इसे महाराष्ट्र की भाषाई पहचान पर हमला बताया और विरोध जताया।
इसके बाद 22 अप्रैल को राज्य सरकार ने अपना फैसला वापस लेते हुए कहा कि हिंदी को अनिवार्य नहीं बनाया जाएगा।
छात्रों को तीसरी भाषा चुनने की आज़ादी होगी।
राज ठाकरे की नाराजगी क्यों बढ़ी?
हालांकि सरकार ने सार्वजनिक रूप से यह घोषणा कर दी कि हिंदी अनिवार्य नहीं होगी, लेकिन अब तक इसका कोई लिखित आदेश जारी नहीं हुआ है।
इसी बात से नाराज़ होकर राज ठाकरे ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सरकार से सवाल पूछे।
उन्होंने कहा, अगर सरकार ने कहा है कि हिंदी जरूरी नहीं होगी तो अब तक उसका लिखित आदेश क्यों नहीं आया?
क्या सरकार अब भी तीन भाषा की योजना पर काम कर रही है?
हमें जानकारी मिली है कि हिंदी की किताबें पहले ही छप चुकी हैं।
अगर किताबें छप रही हैं, तो सरकार पीछे क्यों नहीं हट रही?
सरकार को चेतावनी दी गई अगर जल्द ही लिखित आदेश नहीं दिया, तो हम जनता को साथ लेकर आंदोलन करेंगे।
राज ठाकरे ने कहा इसकी पूरी जिम्मेदारी सरकार की होगी।
ठाकरे का तर्क, हिंदी राष्ट्र भाषा नहीं है
राज ठाकरे ने यह भी कहा कि हिंदी राष्ट्र भाषा नहीं है, बल्कि यह भी एक क्षेत्रीय भाषा ही है, जैसी मराठी, तमिल, तेलुगू, बंगाली आदि हैं।
उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में जब मराठी और अंग्रेजी पहले से पढ़ाई जाती हैं, तो फिर बच्चों पर तीसरी भाषा थोपने की क्या ज़रूरत है?
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि तमिलनाडु, बंगाल जैसे राज्यों ने पहली कक्षा से ही केवल दो भाषाएं रखी हैं और हिंदी को अनिवार्य नहीं किया।
ये राज्य अपनी भाषाई पहचान को बचा रहे हैं। महाराष्ट्र को भी वही करना चाहिए।
शिक्षा नीति का मॉडल – 5+3+3+4
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार स्कूलों में नया 5+3+3+4 मॉडल लागू किया जाएगा। इसका मतलब है:
- 5 साल: फाउंडेशनल स्टेज (नर्सरी से कक्षा 2 तक)
- 3 साल: प्रिपरेटरी स्टेज (कक्षा 3 से 5)
- 3 साल: मिडिल स्टेज (कक्षा 6 से 8)
- 4 साल: सेकेंडरी स्टेज (कक्षा 9 से 12)
इसी के साथ तीन भाषाओं की नीति भी लाई गई है। इसके तहत:
- पहली भाषा – मातृभाषा/स्थानीय भाषा (जैसे मराठी)
- दूसरी भाषा – हिंदी या कोई और भारतीय भाषा
- तीसरी भाषा – अंग्रेजी या कोई अन्य भाषा
महाराष्ट्र सरकार ने इसी के तहत हिंदी को अनिवार्य बनाने की योजना बनाई थी, लेकिन अब विरोध के कारण उसे पीछे हटना पड़ा है।
बालभारती की किताबें और लोकल कंटेंट
महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड के तहत बालभारती संस्था नई किताबें तैयार कर रही है।
ये किताबें NCERT के करिकुलम पर आधारित होंगी, लेकिन इनमें महाराष्ट्र का स्थानीय संदर्भ भी शामिल किया जाएगा।
यानी बच्चों को भारत स्तर की जानकारी के साथ-साथ राज्य की संस्कृति, इतिहास और भाषा का भी ज्ञान मिलेगा।
राज ठाकरे का सवाल है कि अगर हिंदी को अनिवार्य नहीं बनाया गया है, तो हिंदी की किताबें क्यों छप रही हैं?
उन्होंने कहा कि यह जनता को भ्रमित करने वाला कदम है।
भविष्य में क्या हो सकता है?
अगर सरकार स्पष्ट रूप से लिखित आदेश जारी कर देती है कि हिंदी अनिवार्य नहीं होगी, तो विवाद थम सकता है।
लेकिन यदि यह आदेश नहीं आता या सरकार फिर से तीन भाषाएं लागू करने की कोशिश करती है, तो MNS और दूसरे संगठनों के आंदोलन शुरू होने की आशंका है।
राज ठाकरे ने साफ कर दिया है कि अगर सरकार ने मराठी और अंग्रेजी को ही प्राथमिक भाषा नहीं माना और हिंदी थोपने की कोशिश की, तो MNS सड़क पर उतरकर विरोध करेगी।
फिलहाल, यह मामला सिर्फ शिक्षा नीति से जुड़ा नहीं है, बल्कि भाषा, क्षेत्रीय पहचान और राजनीति का भी है।
महाराष्ट्र जैसे राज्य में जहां मराठी अस्मिता एक बड़ा मुद्दा है, वहां हिंदी को अनिवार्य बनाने की कोशिश को लोग भावनात्मक रूप से जोड़कर देख रहे हैं।
राज ठाकरे जैसे नेता इस मुद्दे को लेकर हमेशा मुखर रहे हैं।
उनका मानना है कि महाराष्ट्र में मराठी ही प्रमुख भाषा है और बच्चों को शुरुआती शिक्षा इसी में दी जानी चाहिए।
अंग्रेजी को वैश्विक ज़रूरत के तौर पर शामिल किया जा सकता है, लेकिन हिंदी को थोपना सही नहीं।
सरकार अब इस पर क्या फैसला लेती है, यह देखना बाकी है।
लेकिन इतना साफ है कि आने वाले दिनों में यह विवाद और तेज़ हो सकता है।
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