Chirag In Bihar Politics: बिहार की राजनीति में इन दिनों एक नाम खूब चर्चा में है – चिराग पासवान।
केंद्र में मंत्री चिराग ने हाल ही में बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने के संकेत देकर सियासी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है।
उनकी पार्टी ने बाकायदा एक प्रस्ताव पारित कर उनके चुनाव लड़ने के फैसले को समर्थन दिया है।
यह महज चुनाव लड़ने की घोषणा नहीं, बल्कि एक राजनीतिक दांव है, जिसके पीछे गहरी रणनीति और भविष्य की संभावनाएं छिपी हैं।
केंद्र में मंत्री, राज्य में विधायक बनने की तैयारी?
एक ओर चिराग पासवान केंद्र में मंत्री हैं, दूसरी ओर वह बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं।
सवाल उठता है कि एक केंद्रीय मंत्री आखिर क्यों राज्य की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाना चाहता है?
इसका सीधा उत्तर है – राजनीतिक जमीनी पकड़ मजबूत करना और भविष्य की सत्ता की राह तैयार करना।
चिराग भली-भांति समझते हैं कि राष्ट्रीय राजनीति में बने रहने के लिए राज्य की राजनीति में जड़ें मजबूत होना जरूरी है।
बिहार उनकी सियासत का आधार है और वहीं से उन्हें ताकत मिलती है।
‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट‘ का लंबे समय से दे रहे नारा
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान लंबे समय से ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ का नारा दे रहे हैं।
यह नारा महज एक चुनावी स्लोगन नहीं, बल्कि उनकी रणनीति का हिस्सा है, जिससे वे खुद को एक समग्र नेता के रूप में पेश कर रहे हैं – न कि सिर्फ एक दलित नेता के रूप में।
यही कारण है कि वे किसी आरक्षित सीट से नहीं, बल्कि सामान्य सीट से चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं ताकि सभी वर्गों का समर्थन हासिल किया जा सके।
20 साल बाद फिर दोहराया जाएगा पासवान दांव
बिहार के राजनीतिक इतिहास में 2005 एक अहम वर्ष रहा है।
उस समय चिराग के पिता रामविलास पासवान केंद्र में मंत्री थे और एलजेपी ने बिहार चुनाव अकेले लड़ा था।
पार्टी ने 29 सीटें जीती थीं और सत्ता की चाबी पासवान परिवार के पास आ गई थी।
लेकिन रामविलास ने मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग कर स्थिति को उलझा दिया।
अंततः नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने सरकार बना ली।
दूसरी बार चुनाव हुए और एलजेपी हाशिये पर चली गई।
अब एक बार फिर 20 साल बाद क्या चिराग पासवान उसी कहानी को दोहराने की तैयारी में हैं?
क्या वे कुछ सीटें जीतकर सत्ता की चाबी फिर से अपने हाथ में लेने की रणनीति बना रहे हैं?
यह संभव है, खासकर उस परिस्थिति में जब नीतीश कुमार के राजनीतिक भविष्य को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
साल 2020 के चुनाव की गलती पड़ी चिराग पर भारी
2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया था।
उन्होंने 137 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, ज्यादातर जेडीयू के खिलाफ।
नतीजा? पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली।
उस चुनावी प्रयोग को कुछ लोग आत्मघाती कदम मानते हैं।
लेकिन कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चिराग ने जेडीयू को नुकसान पहुंचाकर एनडीए में अपनी शक्ति दिखाने की कोशिश की थी।
अब अगर वह खुद चुनाव मैदान में उतरते हैं, तो इससे पार्टी को कुछ सीटें मिलने की संभावना बढ़ेगी और चिराग की साख भी मजबूत होगी।
एनडीए में संतुलन और सीएम पद की दावेदार का खेल
वर्तमान में बिहार में एनडीए की सरकार है – मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (जेडीयू), दो उपमुख्यमंत्री (बीजेपी) और सहयोगी दलों की भूमिका।
चिराग की पार्टी भी एनडीए का हिस्सा है, लेकिन उन्हें बराबरी का दर्जा नहीं मिला है।
ऐसे में चिराग का विधानसभा चुनाव लड़ना एनडीए के अंदर असहजता पैदा कर सकता है।
अगर चिराग चुनाव जीतते हैं और उनकी पार्टी को कुछ सीटें मिलती हैं, तो सत्ता में हिस्सेदारी की मांग स्वाभाविक होगी।
क्या जेडीयू और बीजेपी इसके लिए तैयार हैं? यह सवाल सियासी हलचलों को और तेज कर रहा है।
इसके अलावा तीन बार के सांसद और अब मंत्री रह चुके चिराग पासवान महज विधायक बनना चाहते हैं, यह मानना शायद गलत होगा।
उनके समर्थकों और पार्टी नेताओं के बयान इस ओर इशारा करते हैं कि चिराग खुद को भविष्य के मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश करना चाहते हैं।
तेजस्वी से पारिवारिक संबंध, लेकिन गठबंधन से इंकार
चिराग पासवान ने यह स्वीकार किया है कि उनके और तेजस्वी यादव के बीच पारिवारिक संबंध हैं, लेकिन वैचारिक मतभेद के कारण राजनीतिक गठबंधन संभव नहीं है।
हालांकि राजनीति में स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होते।
यदि चुनाव परिणाम त्रिशंकु आते हैं, तो चिराग की भूमिका किंगमेकर की हो सकती है और यह भी संभव है कि वह विपक्ष से बातचीत करें।
2005 की तरह ही यदि सत्ता की चाबी उनके हाथ आती है, तो गठबंधन की शर्तें भी वही तय करेंगे।
हालांकि, दूसरी ओर आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने चिराग की संभावित चुनावी भूमिका पर चुटकी ली है और इसे एनडीए में सिर फुटव्वल की शुरुआत बताया है।
उनका कहना है कि अब एनडीए में कई मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं – जेडीयू के पास नीतीश, बीजेपी के पास अपने दावेदार और एलजेपी के पास चिराग।
ऐसे में आंतरिक संघर्ष विपक्ष के लिए अवसर बन सकता है।
वक्त तय करेगा बिहार की राजनीति का अगला अध्याय
बिहार की राजनीति में चिराग पासवान की वापसी साधारण नहीं है।
यह एक गहराई से सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है, जिसमें नेतृत्व की दावेदारी, पार्टी का पुनर्जीवन और सत्ता के समीकरणों में प्रभावशाली भूमिका निभाना शामिल है।
चिराग की चुनौती यह होगी कि वे 2020 की तरह नाकामी से बचें और 2005 की तरह सत्ता की चाबी हासिल कर पाएं।
उनके सामने सबसे बड़ा सवाल यह रहेगा कि क्या एनडीए उन्हें बराबरी का दर्जा देगा या एक बार फिर वे सियासी समीकरणों के बीच अकेले खड़े रह जाएंगे।
चिराग उन युवाओं में गिने जाते हैं, जो नीतीश कुमार के बाद मुख्यमंत्री पद के मजबूत दावेदार माने जाते हैं
हालांकि, अभी यह कहना जल्दबाज़ी होगा कि चिराग बिहार के अगले सीएम होंगे, लेकिन इतना तय है कि उनकी अगली चाल बिहार की राजनीति का अगला अध्याय जरूर लिखेगी।
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