ज्योतिरादित्य के खास सिलावट क्या सिर्फ ‘पानीदार’ पद पाने कांग्रेस छोड़कर आये थे… संघ और महाराज के बीच खिलेगी तुलसी की राजनीति
पंकज मुकाती (राजनीतिक विश्लेषक )
तुलसी सिलावट। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बगावती ध्वज तले खड़े सबसे बड़े योद्धा। महाराज के सबसे करीबी तुलसी सिलावट। बेंगलुरु से भी सिर्फ और सिर्फ उनके ही वीडियो आते रहे। वे लगातार कहते रहे, हम बंधक नहीं है। क्या इस सबसे बड़े योद्धा को आज भी अपने फैसले पर उतनी ही ख़ुशी है। शायद, नहीं। शिवराज सिंह चौहान ने एक नन्हा मंत्रिमंडल बनाया। इसमें कुल जमा पांच मंत्रियों में भी सबसे कमजोर,कमतर ओहदा तुलसी सिलावट को मिला। क्या वे इसी सम्मान को पाने के लिए कांग्रेस छोड़कर आये थे। कमलनाथ सरकार में वे स्वास्थ्य मंत्री थे। अब शिवराज सरकार में जल संसाधन मंत्री। क्या जल संसाधन स्वास्थ्य से बड़ा है ? कोई राजनीति और प्रसाशन का नौसिखिया भी यही कहेगा, तुलसी ठगे गए?
तुलसी राम सिलावट सांवेर से विधायक रहे हैं। विधायकी भी अपने आका के लिए कुर्बान कर दी। आस्था का हमेशा सम्मान है। तुलसी सिलावट ने इस पालाबदल राजनीति के दौर में कभी भी महल यानी सिंधिया फेमिली के इतर किसी दरवाजे के तरफ दस्तक नहीं दी। वे ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया से जुड़े रहे। उनकी मौत के बाद भी वे ज्योतिरादित्य से उसी तरह जुड़े रहे। पिता के बाद पुत्र के साथ उसी आस्था से जुड़े रहना कोई आसान नहीं होता। पर तुलसी ने ये निभाया। कुल पांच मंत्रालय शिवराज ने कोरोना आपदा के दौर में बांटे। स्वास्थ्य, गृह, खाद्य आपूर्ति, कृषि, आदिम जाति कल्याण और जलसंसाधन जैसे विभाग मंत्रियों को दिए। इसमें सबसे कमजोर विभाग तुलसी सिलावट को मिला। कोरोना के इस दौर में प्रदेश को अभी जरुरत स्वास्थ्य, गृह, खाद्य आपूर्ति और कृषि जैसे विभागों की है। इसमें से कोई भी विभाग तुलसी को नहीं मिला। जल संसाधन की इस लॉकडाउन में कोई जरुरत नहीं है। ऐसे में क्या ये माना जाए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने ख़ास तुलसी सिलावट के लिए दमदारी से बात नहीं रखी। आखिर कांग्रेस सरकार से कमतर विभाग लेकर कोई नेता कैसे खुद को संतुष्ट मानेगा। क्या अंदर से तुलसी भी ऐसा मानते हैं कि महाराज ने उनका पक्ष नहीं रखा?
ये विश्लेषण मैं मंत्रिमंडल बनने के पूरे एक सप्ताह बाद लिख रहा हूं। ताकि हड़बड़ी में कोई ऐसा अनुमान या विश्लेषण न कर लूं जो आगे गलत साबित हो। इंतज़ार करने का ठोस कारण रहा। उम्मीद थी कि जल संसाधन के अलावा सिलावट को कोई और बड़ा जिम्मा भी मिलेगा। अब ऐसी कोई उम्मीद आनेवाले छह महीनो तक तो दिखाई नहीं दे रही। सिलावट के पास इंदौर का प्रभार भी है। पर खुद सिलावट न अपने विभाग में न इंदौर में सक्रिय दिख रहे हैं। उनसे ज्यादा सक्रिय तो बिना किसी औहदेवाले भाजपा के पश्चिम बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय हैं। अनमने से खींचे-खींचे से तुलसी सिलावट। स्वास्थ्य मंत्री रहते
तुलसी सिलावट की सक्रियता सबने देखी। इसमें भी कोई शक नहीं कि नाथ सरकार के गिने-चुने सक्रिय और जनता के बीच अच्छी छवि वाले मंत्री रहे हैं, सिलावट। कहीं आस्था निभाने में तुलसी सिलावट ने अपने राजनीतिक भविष्य पर ब्रेक तो नहीं लगा लिया ?
कांग्रेस के मीडिया अध्यक्ष और पूर्व मंत्री जीतू पटवारी लगातार कह रहे हैं कि सिंधिया जी ने राज्यसभा में अपने छह साल पक्के कर लिए, पर अपने करीबियों को भाजपा के पाले में छोड़ कर दिल्ली चले गए। तुलसी सहित 23 विधायकों ने अपनी विधायकी भी छोड़ी है। ऐसे में यदि केबिनेट में अच्छा पद नहीं रहेगा तो उपचुनाव में इनका क्या होगा। दिग्विजय सिंह का भी यही कहना है कि नाथ सरकार मेंसिंधिया जी अपने ख़ास तुलसी सिलावट को उप मुख्यमंत्री बनवाना चाहते थे, पर शिवराज जी से कहकर एक अच्छा विभाग भी नहीं दिलवा सके। तमाम राजनीतिक विश्लेषक इसके आगे की कहानी भी देख रहे हैं। उनका मानना है कि सिंधिया के सबसे खास नेता को ढंग का विभाग नहीं मिल सका तो बाकी का क्या होगा?
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटेरिया का मानना है कि तुलसी सिलावट के बारे में अभी इंतज़ार करिये। कोरोना की जंग के बाद उन्हें बड़ा पद मिलेगा। भाजपा हर हाल में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ हुए कथित समझौते को निभाएगी। सिंधिया भी चाहते हैं, तुलसी सिलावट को बड़ा पद मिले।
वही राजनीतिक जानकारों की राय है कि उपचुनाव के पहले सिलावट को उप मुख्यमंत्री बनाने से भाजपा बच रही है, क्योंकि यदि सिंधिया खेमे से कोई उपमुख्यमंत्री बनेगा तो भाजपा से नरोत्तम मिश्रा इससे कम पर नहीं रहेंगे। यानी दो उप मुख्यमंत्री रहेंगे। शिवराज सिंह चौहान इस फॉर्मूले से थोड़ा घबराये हैं। शायद इसीलिए नरोत्तम को गृह और स्वास्थ्य जैसे दो विभाग देकर खुश किया गया है।
राजनीति में क्रिकेट से ज्यादा अनिश्चतता है। ऐसे में बहुत कुछ खेल बाकी है। बस पंक्ति में सीधी बात यही है-क्या सिर्फ ये ‘पानीदार’ पद पाने मलाई छोड़कर आये थे सिलावट।
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