Red Fort Controversy: दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एक दिलचस्प मामला सुनवाई के लिए आया, जिसमें खुद को मुगल सल्तनत की बहू बताने वाली रजिया सुल्ताना बेगम ने ऐसा दावा कर डाला कि अदालत भी हैरान रह गई।
उन्होंने कहा कि “लाल किला हमारी पुश्तैनी संपत्ति है, उस पर भारत सरकार ने कब्जा कर रखा है। या तो वापस दिलाइए, या 1857 से अब तक का किराया-मुआवजा दीजिए!”
सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की पीठ में मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार बैठे थे।
उन्होंने यह सुनते ही मुस्कराते हुए पूछा – आपका दावा केवल लाल किले तक ही क्यों है? ताजमहल, फतेहपुर सीकरी और आगरा किला भी तो आपके ही पूर्वजों ने बनवाया है, उन पर भी दावा ठोक दीजिए!
इसके बाद कोर्ट ने याचिका को “बेबुनियाद और हास्यास्पद” बताते हुए खारिज कर दिया।
मुगलों की बहू की लाल किले में टिकट लेकर एंट्री
रजिया सुल्ताना बेगम का दावा है कि वे आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के पड़पोते मिर्जा बेदार बख्त की विधवा हैं।
उन्होंने बताया कि 15 अगस्त 1965 में उनकी शादी हुई थी, तब वे सिर्फ 12 साल की थीं। वर्तमान में वे पश्चिम बंगाल के हावड़ा के शिवपुरी इलाके में एक मामूली सी बस्ती में रह रही हैं।
बेगम साहिबा का दर्द भी कुछ कम नहीं है। उन्होंने कहा, मैं मुगलों की बहू हूं, लेकिन लाल किले में जाने के लिए 50 रुपये का टिकट खरीदना पड़ता है।
हुमायूं के मकबरे में भी टिकट लेकर जाती हूं। ये मेरे खानदान की विरासत है, सरकार ने उस पर कब्जा कर लिया!
इतना कहने के बाद उन्होंने यह भी दावा किया “अगर कोई ये साबित कर दे कि मुगलों ने भारत को लूटकर विदेश भेजा, तो मैं अपना सिर झुका लूंगी।”
150 साल देर से खटखटाया अदालत का दरवाज़ा
असल में यह कोई नई कोशिश नहीं है। इससे पहले दिसंबर 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सुल्ताना बेगम की याचिका यह कहकर खारिज कर दी थी कि यह दावा 150 साल की देरी से किया गया है।
कोर्ट ने कहा था कि इतने वर्षों बाद इस तरह की याचिका का कोई औचित्य नहीं है।
इसके बावजूद 13 दिसंबर 2024 में उन्होंने एक बार फिर याचिका दाखिल कर दी, जिसे एक बार फिर खारिज कर दिया गया।
सुल्ताना बेगम ने यह भी कहा कि 1960 में जवाहरलाल नेहरू सरकार ने उनके पति मिर्जा बेदार बख्त को बहादुर शाह जफर का उत्तराधिकारी माना था और उन्हें राजनीतिक पेंशन दी गई थी।
इस आधार पर उन्होंने लाल किले पर मालिकाना हक की मांग की। लेकिन अदालत ने साफ कहा कि यह राजनीतिक सम्मान था, कानूनी अधिकार नहीं।
अब कोई अकबर के किले का वारिस बनकर आएगा
इस याचिका ने सोशल मीडिया पर भी हलचल मचा दी है। लोग कह रहे हैं कि “अब तो कोई राजा हरिश्चंद्र का वंशज बनकर वाराणसी की जमीन मांगेगा!”
कुछ ने तो यह भी कहा, “अगर कोर्ट में वंशावली दिखाकर महल मिल जाए, तो हम सब पृथ्वीराज चौहान की औलाद निकले!”
इस मामले ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि इतिहास से भावनाएं जुड़ी हो सकती हैं, लेकिन कानून केवल प्रमाणों से चलता है।
अदालत ने यह भी कहा कि कोई संपत्ति अगर अब राष्ट्रीय धरोहर बन चुकी है, तो उस पर व्यक्तिगत मालिकाना हक नहीं जताया जा सकता।
इतिहास पर गर्व होना अच्छी बात है, लेकिन अदालतें सबूतों और समयसीमा की सख्त चौखट से गुजरती हैं।
रजिया बेगम की याचिका एक दिलचस्प दास्तान बन गई है, जहां मुगलिया शान का दावा आज के भारत के संविधान से टकरा गया।
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