Murshidabad Violence: वक्फ कानून के विरोध में भड़की हिंसा ने पश्चिम बंगाल की राजनीति, प्रशासन और न्याय व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है।
मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा के बाद न केवल कई परिवार उजड़े, बल्कि यह घटना देशभर में चर्चा का विषय बन गई।
यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट, कलकत्ता हाईकोर्ट, महिला आयोग, मानवाधिकार आयोग और राजनीतिक दलों के बीच बहस का केंद्र बन गया है।
हिंसा की शुरुआत और दहशत का आलम
8 अप्रैल को वक्फ कानून के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान मुर्शिदाबाद में हिंसा भड़क गई।
भीड़ ने पुलिस और प्रशासनिक वाहनों को आग के हवाले कर दिया, झड़पों में कई पुलिसकर्मी घायल हो गए।
स्थिति इतनी बिगड़ गई कि पुलिस को लाठीचार्ज, आंसू गैस और बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी का सहारा लेना पड़ा।
इस दौरान दिल दहला देने वाली एक घटना सामने आई, जिसमें पिता-बेटे को पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया गया।
पश्चिम बंगाल पुलिस अब तक इस हिंसा के सिलसिले में 278 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है।
मामले की जांच के लिए डीआईजी सैयद वकार रजा के नेतृत्व में 11 सदस्यीय SIT का गठन किया गया है।
STF और विशेष जांच दल के सहयोग से इस जांच में मुख्य आरोपी जियाउल शेख सहित चार लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।
पुलिस के अनुसार, शेख ने भीड़ को उकसाने और हत्या में प्रमुख भूमिका निभाई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने ठुकराई राष्ट्रपति शासन की मांग
इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति शासन लागू करने और पैरामिलिट्री फोर्स की तैनाती की याचिका दाखिल की गई।
लेकिन, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने इस पर कोई आदेश पारित करने से इनकार कर दिया।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह कार्यपालिका का अधिकार क्षेत्र है और न्यायपालिका इस पर हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या आप चाहते हैं कि हम राष्ट्रपति को इसे लागू करने का आदेश भेजें?
हम पर दूसरों के अधिकार क्षेत्र में दखलंदाजी के आरोप लग रहे हैं।
बता दें भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने शनिवार को कहा था कि कोर्ट अपनी सीमाओं से बाहर जा रहा है।
वहीं, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा था कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकते, जज सुपर पार्लियामेंट की तरह काम कर रहे हैं।
मुर्शिदाबाद हिंसा के चलते लोग कर रहे पलायन
जस्टिस सूर्यकांत की बेंच में मुर्शिदाबाद हिंसा से जुड़ी दूसरी याचिका पर सुनवाई हुई। इसमें वकील ने मुर्शिदाबाद हिंसा के चलते लोग पलायन करने को मजबूर है।
बता दें सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से वक्फ कानून पर जवाब देने के लिए 7 दिन का समय दिया है और यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए हैं।
मामले की अगली सुनवाई 5 मई को निर्धारित की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून के खिलाफ दायर 70 से ज्यादा याचिकाओं की जगह सिर्फ 5 याचिकाएं ही दायर की जाएं और उन्हीं पर सुनवाई होगी। दू
सरी ओर सुवेंदु अधिकारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, पश्चिम बंगाल राज्य मानवाधिकार आयोग और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के एक-एक प्रतिनिधियों वाला पैनल हिंसा प्रभावित इलाकों में भेजने का सुझाव दिया।
कोर्ट ने केंद्रीय बलों की 17 कंपनियों की तैनाती को भी यथावत रखने का आदेश सुरक्षित रखा।
राज्यपाल का हस्तक्षेप और विपक्ष के आरोपों की बौछार
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने 19 अप्रैल को मुर्शिदाबाद का दौरा किया और हिंसा में मारे गए लोगों के परिजनों से मुलाकात की।
वहीं, राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजया रहाटकर ने भी हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया।
उन्होंने कहा कि स्थिति अत्यंत गंभीर है, महिलाओं और बच्चों के लिए हालात बेहद असुरक्षित हैं।
उन्होंने बताया कि कई महिलाओं ने दावा किया कि BSF ने उनकी जान बचाई। व
हीं इस हिंसा ने बंगाल की राजनीति में तूफान ला दिया है।
भाजपा नेता सुकांत मजूमदार ने ममता बनर्जी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने बंगाल को बांग्लादेश का लाइट वर्जन बना दिया है। व
हीं, नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने इस मामले की NIA जांच की मांग की और कहा कि हिंदू समाज पश्चिम बंगाल में खतरे में है।
इसके जवाब में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि यह दंगा पूरी तरह से पूर्व नियोजित था और इसके पीछे BJP, BS और केंद्रीय एजेंसियों की मिलीभगत है।
सीएम ममता ने 16 अप्रैल को इमामों के साथ बैठक कर शांति बनाए रखने की अपील करने के साथ राज्यपाल से क्षेत्र का दौरा स्थगित करने की मांग की थी।
‘वक्फ बचाओ अभियान’, सरकार के सामने कई चुनौती
दरअसल, नए वक्फ कानून के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रह है।
वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने भी 87 दिनों का ‘वक्फ बचाओ अभियान’ शुरू किया है, जो 7 जुलाई तक चलेगा।
जिसमें 1 करोड़ लोगों के हस्ताक्षर लेकर प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपा जाएगा।
इसी कानून के विरोध में मुर्शिदाबाद भी हिंसा का आग में जला।
बहरहाल, जहां सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने संवैधानिक मर्यादाओं का ध्यान रखते हुए संतुलित रुख अपनाया है।
वहीं राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को अपने-अपने दृष्टिकोण से भुनाना शुरू कर दिया है।
वहीं स्थिति की गंभीरता को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकार दोनों के सामने शांति बनाए रखने के साख लोकतांत्रिक प्रणाली पर लोगों का भरोसे बनाए रखने की चुनौती है।
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