Article 142- निरंकुश होती जा रही न्यायपालिका को जवाबदेह बनाना होगा-उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़
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Article 142 Vice President raised questions-दिल्ली। वक्फ संशोधन बिल पर चुनौती देने वाली याचिकाओं सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कर रहा है। उसने अंतरिम आदेश जारी करते हुए वक्फ बोर्ड में नई नियुक्तियों पर एक हफ्ते के लिए रोक लगा दी है। इस पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने दो टूक शब्दों में कहा, Article 142 एक ऐसा ‘न्यूक्लियर मिसाइल’ बन गया है जो लोकतंत्र को चौबीस घंटे धमकाता रहता है। पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने के लिए तीन महीने का समय निर्धारित किया था। उपराष्ट्रपति ने इस पर आपत्ति जताई है।
धनखड़ ने एक कार्यक्रम में न्यायपालिका पर तीखा निशाना साधा। उन्होंने कहा राष्ट्रपति के निर्णय के ख़िलाफ़ निर्णय दिया जा रहा है लेकिन एक जज के घर पर करोड़ो का कैश मिलने के बावजूद कोई कार्यवाही नहीं हुई। उन्होंने देश में न्यायिक सुधारों की जरूरत पर जोर देते हुए अब ये इतने आवश्यक हैं कि संसद अब कोई बड़ा कानून पारित भी कर ले तो उसे कोई एक जज एक याचिका पर रोक देता है। निरंकुश होती जा रही न्यायपालिका को जवाबदेह ना बनाया गया तो सरकार बस नाम की रह जाएगी। बड़े फैसले सिर्फ सुप्रीम कोर्ट करेगा।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समयसीमा तय किये जाने पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं रख सकते, जहां अदालतें भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शक्तियों के विभाजन पर जोर देते हुए कहा, “कार्यपालिका, सरकार और संसद के कर्तव्यों की व्याख्या भी की।
हम आपको बता दें अनुच्छेद 142 के तहत भारत का सुप्रीम कोर्ट पूर्ण न्याय (कम्पलीट जस्टिस) करने के लिए कोई भी आदेश, निर्देश या फैसला दे सकता है, चाहे वह किसी भी मामले में हो। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ फैसलों को लेकर समय सीमा निश्चित कर दी। इसी को लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां जज कानून बनाएंगे। कार्यपालिका का काम स्वयं संभालेंगे और एक सुपर संसद के रूप में कार्य करें।
राष्ट्रपति को कैसे दे सकते हैं निर्देश
उपराष्ट्रपति ने कहा, “भारत में राष्ट्रपति का पद बहुत ऊंचा है और राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण एवं बचाव की शपथ लेते हैं, जबकि मंत्री, उपराष्ट्रपति, सांसदों और न्यायाधीशों सहित अन्य लोग संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं। हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है। ”
उपराष्ट्रपति ने राज्यसभा के 6वें बैच के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए कहा, “मैं हाल ही की घटनाओं का उल्लेख करता हूं। यह घटना हम सभी के दिमाग पर छाई हुई है। 14 और 15 मार्च की रात को नई दिल्ली में एक जज के निवास पर एक घटना हुई। सात दिनों तक किसी को इसके बारे में पता नहीं था। हमें अपने आप से सवाल पूछने होंगे। यह देरी क्यों हुई? क्या देरी क्षमा करने योग्य है? क्या यह घटना कई सवाल नहीं उठाती। ”
क्या है अनुच्छेद 142, न्यायपालिका का विशेषाधिकार
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने जिस तरह से न्यायपालिका को लेकर क्षुब्धता जाहिर की है, उसमें ये जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर अनुच्छेद 142 है क्या, जो न्यायपालिका को विशेषाधिकार देता है. जानते हैं कि संविधान ने इसे किस तरह पारिभाषित किया है-
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 एक ऐसा प्रावधान है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट को कुछ विशेषाधिकार मिले हुए हैं। इस अनुच्छेद के जरिए जिन मामलों में अभी तक कोई कानून नहीं बना है, उन मामलों में सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना सकता है। हालांकि यह फैसला संविधान का उल्लंघन करने वाला ना हो।
आसान शब्दों में कहें तो यह अनुच्छेद सुप्रीम कोर्ट को किसी भी मामले में न्याय सुनिश्चित करने के लिए विशेष अधिकार देता है। यह न्यायालय को कानून के अनुसार ऐसा कोई भी आदेश देने की अनुमति देता है जो न्याय के हित में हो। यह अनुच्छेद न्यायालय को विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है, जिसका अर्थ है कि न्यायालय किसी भी मामले में अपनी समझ के अनुसार फैसला ले सकता है।
क्यों महत्वपूर्ण है अनुच्छेद
अनुच्छेद का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है कि यह अनुच्छेद न्याय के सिद्धांत का संरक्षण करता है। कई मामलों में, सर्वोच्च न्यायालय ने इस अनुच्छेद का उपयोग सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए किया है। यह अनुच्छेद कानून में सुधार लाने में भी मदद करता है।
कई बड़े निर्णय भी
अनुच्छेद 142 के विकास के शुरुआती वर्षों में आम जनता और वकीलों दोनों ने समाज के विभिन्न वंचित वर्गों को पूर्ण न्याय दिलाने या पर्यावरण की रक्षा करने के प्रयासों के लिये सर्वोच्च न्यायालय की सराहना की थी। ताजमहल की सफाई और अनेक विचाराधीन कैदियों को न्याय दिलाने में इस अनुच्छेद का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। हालांकि हाल के बरसों में अतिरेक के मामले भी हुए हैं।
आर्टिकल 142 से जुड़े कुछ ऐतिहासिक फैसले
1. बाबरी मस्जिद–राम जन्मभूमि केस (2019)
सुप्रीम कोर्ट ने 5 जजों की पीठ के फैसले में 142 का इस्तेमाल करते हुए रामलला को जमीन देने का आदेश दिया। साथ ही मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक 5 एकड़ जमीन देने का आदेश भी दिया गया। इस फैसले में अदालत ने साफ कहा कि वह “पूर्ण न्याय” कर रही है।
2. बोफोर्स घोटाले से जुड़े आदेश (1991)
सुप्रीम कोर्ट ने एक आरोपी को राहत दी, यह कहते हुए कि केस लंबा खिंच चुका है. ट्रायल में देरी से आरोपी का मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहा है।
3. सहारा-सेबी केस
सुप्रीम कोर्ट ने अंडरट्रायल निवेशकों को पैसा वापस दिलवाने के लिए सहारा ग्रुप की संपत्तियों की बिक्री के आदेश दिए।ये कदम 142 के तहत उठाया गया।
4. सुपारी किलिंग केस में सजा माफ (Union Carbide, 1989)
यूनियन कार्बाइड गैस त्रासदी के मामलों में भी कोर्ट ने आर्टिकल 142 के तहत कंपनियों को राहत दी, जो बाद में काफी विवादित रहा।
5. अयोध्या के बाद शांति बनाए रखने के आदेश
फैसले के बाद शांति और व्यवस्था सुनिश्चित करने हेतु सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिए, यह भी 142 के दायरे में आता है।
इसीलिए है यह खास
इससे सुप्रीम कोर्ट केवल कानून के अनुसार नहीं, बल्कि न्याय के अनुसार फैसला कर सकती है. यह कोर्ट को एक मनोवैज्ञानिक संतुलन देने वाला टूल है, मतलब या भाव ये है कि जहां कानून चुप हो, वहां न्याय बोले।
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