Robert Vadra: कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा के पति और बिजनेसमैन रॉबर्ट वाड्रा मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) के ऑफिस पैदल ही पहुंचे।
वह गुरुग्राम के शिकोहपुर लैंड डील से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में पूछताछ के लिए हाजिर हुए।
इससे पहले ED ने उन्हें दूसरा समन भेजा था, क्योंकि वाड्रा 8 अप्रैल को भेजे गए पहले समन पर पेश नहीं हुए थे।
मैं 20 बार ईडी के सामने पेश हो चुका हूं- वाड्रा
रॉबर्ट वाड्रा ने ईडी ऑफिस जाते हुए मीडिया से बातचीत में कहा कि जब भी मैं जनता की आवाज़ बुलंद करूंगा, जब भी मैं राजनीति में कदम रखने की कोशिश करूंगा, ये एजेंसियों का इस्तेमाल कर मुझे डराने की कोशिश करेंगे।
मैं 20 बार ईडी के सामने पेश हो चुका हूं, 15-15 घंटे तक बैठ चुका हूं, 23 हजार से ज्यादा दस्तावेज दे चुका हूं। फिर भी बार-बार वही पूछते हैं, कहते हैं दोबारा डॉक्यूमेंट दो, ये कोई तरीका नहीं है।
क्या है शिकोहपुर जमीन घोटाला?
इस पूरे मामले की शुरुआत साल 2008 में हुई थी, जब रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी ने ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से गुरुग्राम के शिकोहपुर गांव में करीब 3.5 एकड़ जमीन 7.5 करोड़ रुपए में खरीदी थी।
उसी साल हरियाणा की तत्कालीन भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार ने इस जमीन पर 2.7 एकड़ के लिए कॉलोनी विकसित करने का लाइसेंस दे दिया।
कॉलोनी बनाने की बजाय वाड्रा की कंपनी ने इस जमीन को DLF के साथ एक डील में शामिल कर लिया।
कुछ ही महीनों में यह जमीन 58 करोड़ रुपए में DLF को बेच दी गई, जिससे स्काईलाइट को करीब 50 करोड़ रुपए का लाभ हुआ।
डील की आलोचना करने वाले IAS का तबादला
इस डील की पहली बार आलोचना IAS अधिकारी अशोक खेमका ने की थी।
2012 में खेमका ने इस जमीन के म्यूटेशन (स्वामित्व परिवर्तन) को रद्द कर दिया और आरोप लगाया कि इस पूरे सौदे में नियमों का उल्लंघन हुआ है।
उन्होंने कहा कि स्काईलाइट को कॉलोनी बनाने का लाइसेंस देना गलत था।
इस कार्रवाई के कुछ ही दिन बाद उनका तबादला कर दिया गया, जिससे मामला और विवादास्पद बन गया।
वहीं इस डील को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कांग्रेस पर हमला बोला था।
गुरुग्राम की एक रैली में उन्होंने कहा था, लोग जानना चाहते हैं वो बाज़ीगर कौन है जिसने तीन महीने में 50 करोड़ कमाए। शहजादा से लोग पूछ रहे हैं कि जीजा जी की ये जादूगरी कैसे हुई?
2018 में FIR, IPC की गंभीर धाराएं
हरियाणा पुलिस ने इस मामले में 2018 में रॉबर्ट वाड्रा, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, DLF और ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज के खिलाफ FIR दर्ज की थी।
उन पर धोखाधड़ी (IPC 420), आपराधिक साजिश (120B), जालसाजी (467, 468, 471) और बाद में धारा 423 के तहत भी आरोप जोड़े गए।
इसके बाद ED ने भी इस मामले में मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की।
उन्हें संदेह है कि यह सिर्फ एक साधारण जमीन सौदा नहीं था, बल्कि इसमें बड़े स्तर पर धनशोधन (money laundering) हुआ।
ED की जांच में अब तक जो बिंदु सामने आए हैं-
- जमीन की कीमत कुछ महीनों में असामान्य रूप से कैसे बढ़ी?
- ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज क्या एक असली कंपनी थी या सिर्फ सौदे के लिए बनाई गई एक शेल फर्म?
- स्काईलाइट कंपनी द्वारा जो चेक ओंकारेश्वर को दिया गया था, वह कभी बैंक में जमा ही नहीं किया गया – क्या ये एक फर्जी ट्रांजैक्शन था?
- क्या भूपेंद्र हुड्डा ने अपने पद का दुरुपयोग कर DLF और वाड्रा को लाभ पहुंचाया?
ED को यह भी संदेह है कि इस पूरे सौदे की आड़ में DLF को वजीराबाद में 350 एकड़ जमीन दी गई थी, जिससे उसे करीब 5,000 करोड़ रुपए का लाभ हुआ।
अगर यह साबित होता है कि नियमों का उल्लंघन कर प्राइवेट कंपनियों को फायदा पहुंचाया गया, तो यह मामला बेहद गंभीर हो सकता है।
वाड्रा का दावा ये सब बदले के लिए किया गया
रॉबर्ट वाड्रा लगातार कहते आए हैं कि वह जांच में पूरा सहयोग कर रहे हैं और यह सब राजनीतिक बदले की भावना से किया जा रहा है।
उनका कहना है कि उन्होंने अब तक हजारों दस्तावेज़ जमा किए हैं और 20 से अधिक बार पेश होकर हर सवाल का जवाब दिया है।
हालांकि ED का कहना है कि उन्हें अभी और दस्तावेजों और सवालों के जवाब चाहिए, क्योंकि वित्तीय लेनदेन में कई विसंगतियां हैं।
बहरहाल अब यह मामला ना सिर्फ रॉबर्ट वाड्रा के लिए, बल्कि कांग्रेस पार्टी के लिए भी एक बड़ा सिरदर्द बना हुआ है।
एक तरफ हुड्डा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं और दूसरी ओर वाड्रा गांधी परिवार से जुड़े हुए हैं, इसलिए बीजेपी और अन्य दल इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस पर हावी रहेंगे।
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