Damoh Fake Doctor Arrest: मध्यप्रदेश के दमोह जिले का मिशन अस्पताल इन दिनों एक बेहद गंभीर मामले को लेकर चर्चा में है। इस अस्पताल में इलाज के दौरान 7 हार्ट पेशेंट्स की मौत हो गई और इन मौतों का जिम्मेदार फर्जी कार्डियोलॉजिस्ट एन जॉन कैम को बताया जा रहा है।
इस फर्जी डॉक्टर का असली नाम नरेंद्र विक्रमादित्य यादव है, जिसे सोमवार को दमोह पुलिस ने उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से गिरफ्तार किया। इन मौतों और डॉक्टर की संदिग्ध भूमिका को लेकर न केवल पुलिस ने केस दर्ज किया, बल्कि मानवाधिकार आयोग की टीम ने भी जांच के लिए दमोह में डेरा डाल रखा है।
मामले की शुरुआत और डॉक्टर की गिरफ्तारी
यह पूरा मामला 4 अप्रैल 2025 को तब सुर्खियों में आया, जब राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सदस्य प्रियंक कानूनगो ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए मिशन अस्पताल में 7 मरीजों की मौत और एक फर्जी डॉक्टर की मौजूदगी की जानकारी दी। इसके बाद प्रशासन हरकत में आया और जांच शुरू हुई।
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. मुकेश जैन ने कोतवाली थाने में डॉक्टर नरेंद्र विक्रमादित्य यादव के खिलाफ FIR दर्ज कराई, जिसमें दो अन्य को भी आरोपी बनाया गया। पुलिस ने आरोपी को यूपी के प्रयागराज से गिरफ्तार किया। दमोह के एसपी श्रुत कीर्ति सोमवंशी ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि प्रयागराज सहित अन्य संभावित ठिकानों पर भी तलाशी की गई थी।
7 मरीजों की मौत और फर्जी डिग्री का खुलासा
जांच में सामने आया कि जनवरी और फरवरी 2025 के बीच आरोपी डॉक्टर ने अस्पताल में 15 हार्ट सर्जरी (एंजियोप्लास्टी) की, जिनमें से 7 मरीजों की मौत हो गई। मृतकों में सत्येंद्र सिंह राठौर, रहीसा बेग, इजराइल खान, बुधा अहिरवाल, और मंगल सिंह राजपूत शामिल हैं।
डॉक्टर नरेंद्र यादव ने खुद को लंदन के कार्डियोलॉजिस्ट “डॉ. एन जॉन केम” बताकर अस्पताल में प्रैक्टिस शुरू की थी। जबकि मेडिकल काउंसिल की वेबसाइट पर इस नाम से कोई पंजीकरण नहीं मिला। इतना ही नहीं, जांच में पता चला कि वह फर्जी डिग्रियों के आधार पर इलाज कर रहा था।
परिजनों की आपबीती: इलाज के बाद तुरंत मौत
मृतक मरीजों के परिजनों ने इलाज प्रक्रिया को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। रहीसा बेग के बेटे नबी बेग ने बताया कि 12 फरवरी को हार्ट अटैक के बाद मां को मिशन अस्पताल लाया गया, जहां डॉक्टर ने 80% और 92% ब्लॉकेज बताकर एंजियोप्लास्टी की सलाह दी। 15 फरवरी को सर्जरी हुई और मात्र आधे घंटे में उनकी मां की मौत हो गई और इलाज की रिपोर्ट तक नहीं दी गई।
इसी तरह मंगल सिंह राजपूत के बेटे धर्मेंद्र ने बताया कि जब वे अस्पताल पहुंचे, तब तक सर्जरी हो चुकी थी। उन्होंने देखा कि स्टाफ उनके पिता को बचाने की बजाय सिर्फ औपचारिकताएं पूरी कर रहा था। शाम तक इलाज के नाम पर सिर्फ बहाने चलते रहे और अंततः शव सौंप दिया गया।

छत्तीसगढ़ में भी मौतें, कई मरीज तो भाग गए
दमोह में सात लोगों की जान लेने वाले फर्जी डॉक्टर पहले भी बड़े हॉस्पिटल में ऑपरेशन कर चुका है और इस कारण छत्तीसगढ़ में भी मौतें हो चुकी हैं। बताया जाता है कि नरेंद्र विक्रमादित्य यादव बड़ा शातिर है और वह किसी शहर में ज्यादा दिन टिकता नहीं था। फर्जी डॉक्टर शहर के सबसे लग्जरी हॉस्पिटल में रहता था और वह दवाई लिखने के लिए कोई प्रिस्क्रिप्शन भी नहीं देता था।
सादे कागज पर ही दवा लिखकर मरीजों को देता रहता। उसकी इस हरकत से कई लोगों को शक हुआ और सभी ने फर्जी डॉक्टर से ऑपरेशन कराने से इनकार कर दिया। गनीमत यह रही कि नकली डॉक्टर ने मिशन हॉस्पिटल में जिन 15 लोगों के दिल का ऑपरेशन किया, उनमें से कुछ लोग दिक्कत आने पर दूसरे अस्पताल में सही समय पर पहुंच गए। वर्ना मौतों की तादाद सात से ज्यादा होती।
कई जान ले चुके फर्जी डॉक्टर की डिग्रियां भी फर्जी
मीडिया रिपोर्टस के अनुसार ये फर्जी डॉक्टर पिछले 18 साल से मौत का खेल खेलता रहा है। अगस्त 2006 में विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद शु्क्ल का ऑपरेशन भी इसी फर्जी कार्डियोलॉजिस्ट ने किया था। उस दौरान भी इसके ऑपरेशन से 8 लोगों की जान गई थी, तब मौतों की जांच हुई तो यह नतीजा निकला कि एन जॉन कैम के पास एमबीबीएस की डिग्री है।
जानकारी के मुताबिक इस फर्जी डॉक्टर की आंध्र प्रदेश मेडिकल कॉलेज से जारी कथित एमबीबीएस की डिग्री भी फर्जी है। इसका एमबीबीएस रजिस्ट्रेशन नंबर एक महिला डॉक्टर का निकला है। इसके अलावा एमडी और कॉर्डियोलॉजिस्ट की डिग्री में कोई रजिस्ट्रेशन नंबर नहीं है।
जर्मनी के डॉक्टर ने भेजा कानूनी नोटिस
इस फर्जी डॉक्टर ने दुनिया के विख्यात कार्डियोलॉजिस्ट प्रोफेसर जॉन कैम से मिलते-जुलते नाम से सोशल मीडिया अकाउंट और फर्जी कंपनी भी बनाई। ओरिजिनल प्रोफेसर जॉन कैम दिल के बड़े डॉक्टर हैं और यूरोप के अलावा अमेरिका के कई संस्थाओं के फैलो हैं। विक्रमादित्य यादव उनके नाम के आगे एन. जोड़कर कई सालों तक जानलेवा खेल खेलता रहा।

ये मामला उजागर होने के बाद जर्मनी में कार्यरत सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. एन जॉन कैम ने सुप्रीम कोर्ट के वकील विशाल राणावत के जरिए कानूनी नोटिस भेजा है। उन्होंने बताया कि फर्जी डॉक्टर ने उनके नाम का दुरुपयोग कर उन्हें बदनाम किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनका नाम पहले नरेंद्र विक्रमादित्य यादव था और वे उत्तराखंड निवासी हैं, जबकि आरोपी कानपुर का है। मीडिया में उनकी पहचान को घसीटने से उन्हें मानसिक और आर्थिक नुकसान हुआ है।
मानवाधिकार आयोग की जांच और एजेंसी का जिक्र
सोमवार को मानवाधिकार आयोग की एक टीम भी दमोह पहुंची, जिनमें रिंकल कुमार, ब्रजवीर कुमार, और राजेंद्र सिंह शामिल थे। टीम ने जिला कलेक्टर, एसपी और CMHO से जानकारी ली। साथ ही दो पीड़ित परिवारों रहीसा बेग के बेटे नबी बेग और शिकायतकर्ता कृष्णा पटेल के बयान दर्ज किए। टीम ने अस्पताल के दस्तावेज भी खंगाले और जांच की प्रक्रिया जारी रखी है।
दूसरी ओर मिशन अस्पताल की प्रभारी प्रबंधक पुष्पा खरे ने बताया कि आरोपी डॉक्टर को सीधे अस्पताल ने नहीं नियुक्त किया था, बल्कि IWUS नामक एक अधिकृत एजेंसी के जरिए ट्रेनिंग और शिक्षण के लिए बुलाया गया था। उन्होंने दावा किया कि डॉक्टर ने 1 जनवरी को जॉइन किया और फरवरी में बिना सूचना दिए अस्पताल छोड़ दिया। उनका कहना है कि मौतों का आंकड़ा बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और सीएम के निर्देश
इस ठग ने भौकाल बनाने के लिए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बिहार के सीएम नीतीश कुमार के साथ फोटोशॉप तस्वीरें भी बनवाईं।

सोशल मीडिया में अब ये तस्वीरें वायरल हो रही हैं, जिस पर राजनीति शुरू हो गई है। कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भाजपा पर फर्जी डॉक्टर को प्रमोट करने का आरोप लगाया और कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक उसके सोशल मीडिया पोस्ट्स को रीट्वीट कर चुके हैं।
उधर, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग को पूरे प्रदेश में ऐसे मामलों की जांच कर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
पहले भी विवादों में रह चुका है दमोह का अस्पताल
131 बिस्तर वाला मिशन अस्पताल बीते 10 साल से चल रहा है और यह पहला मौका नहीं है जब यह अस्पताल विवादों में आया हो। अस्पताल के संचालक डॉ. अजय लाल पर पहले भी ह्यूमन ट्रैफिकिंग और धर्मांतरण के आरोप लग चुके हैं। अगस्त 2024 में उनके खिलाफ ह्यूमन ट्रैफिकिंग का केस दर्ज हुआ था, जिसके बाद वे विदेश भाग गए। इससे पहले डॉ. अजय लाल दमोह के मारूताल में अपने आधारशिला संस्थान के ऑफिस के पास ही बाल भवन अनाथालय चलाता था। साल 2023 में बाल कल्याण आश्रम में धर्मांतरण के आरोप लगने के बाद अनाथालय भी बंद कर दिया गया था।
बहरहाल दमोह का मिशन अस्पताल मामला सिर्फ मेडिकल लापरवाही का नहीं, बल्कि संस्थागत असफलता और मानवाधिकारों के उल्लंघन का भी प्रतीक बन गया है। एक फर्जी डॉक्टर की नियुक्ति, कई निर्दोष लोगों की मौत, अस्पताल का गैरजिम्मेदाराना रवैया और प्रशासन की देरी ये सभी मिलकर एक बड़ी स्वास्थ्य व्यवस्था की खामी को उजागर करते हैं। अब देखना यह है कि जांच के बाद दोषियों को कितनी सख्त सजा मिलती है और क्या यह मामला भविष्य में ऐसे फर्जीवाड़ों को रोकने के लिए मिसाल बन पाएगा।
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