Bihar 950 Crore Scam: बिहार में चारा घोटाला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। बिहार सरकार ने गबन किए गए 950 करोड़ रुपये की वसूली के लिए कानूनी कार्रवाई करने का फैसला लिया है।
उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री सम्राट चौधरी ने इस मामले में बड़ा बयान देते हुए कहा कि सरकार सभी संभावित उपायों को अपनाएगी ताकि यह राशि सरकारी खजाने में वापस आ सके। उन्होंने कहा कि कोर्ट का आदेश है कि यह पैसा सरकारी खजाने में लौटना चाहिए। यदि जरूरत पड़ी तो सरकार अदालत भी जाएगी और जांच एजेंसियों से भी संपर्क करेगी।
सरकारी खजाने में आएगा घोटाले का पैसा
डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी के इस बयान के बाद बिहार की राजनीति गरमा गई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि चारा घोटाले के दोषियों की संपत्तियों को कुर्क किया जाएगा और नीलामी की प्रक्रिया तेज की जाएगी। बिहार सरकार इस राशि को वापस लाने के लिए कोर्ट का रुख करने की तैयारी कर रही है।
चारा घोटाले की जांच को 29 साल हो चुके हैं, लेकिन अब तक सरकार के खजाने में एक भी रुपया वापस नहीं आया है। पटना हाईकोर्ट ने 1996 में इस घोटाले की जांच सीबीआई को सौंपते समय आदेश दिया था कि घोटाले की राशि को बिहार सरकार को लौटाया जाए। इसके लिए दोषियों की संपत्तियों को जब्त करके नीलाम करने का निर्देश दिया गया था, लेकिन यह प्रक्रिया कानूनी अड़चनों में उलझी हुई है।
JDU का आरोप- लालू परिवार ने लूटा राजकोष
जदयू मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने भी राजद पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि लालू यादव और उनके परिवार ने चारा घोटाले के जरिए सरकारी खजाने को लूटा और अवैध संपत्तियां बनाई। उन्होंने मांग की कि भ्रष्टाचार से अर्जित संपत्तियों को कुर्क करके समाज के पिछड़े और दलित वर्ग के लिए छात्रावास बनाए जाएं। उनका कहना था कि लालू परिवार को केवल जेल नहीं बल्कि उनकी संपत्तियों की जब्ती और नीलामी का दंड भी मिलना चाहिए।
‘तेजस्वी की सरकार आ रही है, इसलिए बौखलाहट‘
बिहार सरकार के इस कदम पर राष्ट्रीय जनता दल ने तीखा पलटवार किया है। RJD प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि जब भी बीजेपी लालू यादव से राजनीतिक लड़ाई नहीं जीत पाती, तब चारा घोटाले को चुनाव से पहले मुद्दा बना लिया जाता है। उन्होंने सवाल उठाया कि वर्तमान सरकार खुद भ्रष्टाचार में लिप्त है और ईडी ने हाल ही में भवन निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता के घर से करोड़ों रुपये बरामद किए हैं।
RJD प्रवक्ता ने आगे कहा कि चारा घोटाले का मामला अभी भी कोर्ट में लंबित है और सुप्रीम कोर्ट ने लालू प्रसाद यादव को दोषी नहीं ठहराया है। उन्होंने दावा किया कि इस बार बिहार में एनडीए की सरकार नहीं बनेगी, बल्कि तेजस्वी यादव की सरकार आएगी। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी और जदयू मिलकर चुनाव से पहले लालू परिवार को निशाना बना रही हैं।
पटना में आरोपियों की जब्त संपत्तियां
पटना के कई पॉश इलाकों में आरोपियों की जब्त संपत्तियों पर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के बोर्ड लगे हुए हैं। उदाहरण के तौर पर, बोरिंग रोड स्थित पुष्पांजलि प्लाजा अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 102 को आयकर विभाग ने कुर्क किया हुआ है।
यह फ्लैट चारा घोटाले के आरोपी त्रिपुरारी मोहन प्रसाद का है, जिन पर 15.76 करोड़ रुपये का टैक्स बकाया है। इसी तरह, बोरिंग रोड स्थित 4 कट्ठा जमीन, जो मुख्य आरोपी श्याम बिहारी सिन्हा की थी, भी कुर्क कर ली गई है। लेकिन इन संपत्तियों की नीलामी अब तक नहीं हो पाई है।
त्रिपुरारी मोहन के 18 फ्लैट हुए नीलाम
29 साल की लंबी प्रक्रिया में केवल एक बड़ा मामला सामने आया, जिसमें चारा घोटाले के आरोपी त्रिपुरारी मोहन प्रसाद के 18 फ्लैटों की नीलामी हुई। यह फ्लैट सगुना मोड़ स्थित वसी कुंज कॉम्प्लेक्स में थे। इनकी नीलामी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट द्वारा की गई और इससे मिली राशि विभाग के पास जमा कर दी गई।
त्रिपुरारी मोहन पर कुल 43 करोड़ रुपये की टैक्स देनदारी थी। हालांकि, बाकी आरोपियों की संपत्तियों को नीलाम करने की प्रक्रिया अभी भी कानूनी पेचीदगियों में उलझी हुई है।
चारा घोटाला सबसे बड़ा भ्रष्टाचार वाला कांड
चारा घोटाला बिहार का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार कांड माना जाता है। इसमें नकली पशुओं और चारा आपूर्ति के नाम पर सरकारी खजाने से फर्जी बिलों के जरिए 950 करोड़ रुपये की हेराफेरी की गई थी। यह घोटाला तब सामने आया, जब 1996 में चाईबासा के उपायुक्त अमित खरे ने पशुपालन विभाग के दफ्तरों पर छापा मारा और फर्जी दस्तावेजों का खुलासा किया।
इसमें नकली पशुओं और चारा आपूर्ति के बहाने कोषागार यानी सरकारी खजाने से पैसे निकाले गए। मुख्य आरोपी लालू प्रसाद यादव (जो उस समय बिहार के मुख्यमंत्री थे) सहित कई नेता, अधिकारी और सप्लायर इस घोटाले में शामिल थे। वहीं लालू यादव चारा घोटाला के पांच मामलों में सजायाफ्ता हैं।
संपत्तियों की जब्ती और नीलामी आसान नहीं
चारा घोटाले से जुड़ी संपत्तियों की जब्ती और नीलामी आसान नहीं है। इस प्रक्रिया में कानूनी अड़चनें, आरोपियों के प्रभाव और लंबी न्यायिक प्रक्रिया सबसे बड़ी बाधाएं हैं। आरोपी अपनी संपत्तियों को बचाने के लिए हरसंभव कानूनी प्रयास कर रहे हैं। इससे जब्ती और नीलामी की प्रक्रिया लगातार टलती जा रही है।
अब बिहार सरकार इस मामले को फिर से सक्रिय हो रही है, लेकिन 29 साल की लंबी जांच और अदालती प्रक्रियाओं को देखते हुए यह सवाल उठता है कि क्या वास्तव में यह राशि कभी बिहार के खजाने में वापस आएगी? या फिर यह मामला फिर से राजनीतिक हथकंडों का शिकार होकर चुनावी बहस तक ही सीमित रह जाएगा?
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