सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार)
हिंदुस्तान में चारों तरफ से खबरेें आती हैं कि किस तरह मोबाइल फोन को लेकर परिवार में विवाद इतना हुआ कि कहीं पति ने पत्नी को मार डाला, तो कहीं पत्नी ने पति को। मोबाइल फोन का अंधाधुंध इस्तेमाल रोकने पर बहुत से छोटे-छोटे बच्चे खुदकुशी कर रहे हैं। एक टेक्नालॉजी और उसका औजार जिंदगी का इतना बड़ा हिस्सा बन गए हैं कि सार्वजनिक जगहों पर बैठे हुए लोग अपने मोबाइल फोन में डूबे रहते हैं, और दुपहिया चलाने वाले अनगिनत लोग एक हाथ में मोबाइल थामे, उस पर कुछ पढ़ते या टाईप करते, उस पर बात करते, एक हाथ से दुपहिया चलाते रहते हैं। सुबह-शाम पैदल घूमने वाले न तो आसपास के तालाब को देखते, न बगीचे को, और न ही पेड़ों को, लोग मोबाइल को देखते हुए पैदल चलते हंै। अभी बीस-पच्चीस बरस पहले तक इस देश में मोबाइल फोन का इस्तेमाल सिर्फ कॉल और एसएमएस के लिए होता था। लेकिन इन दिनों कैमरे से लेकर ई-मेल तक, इंटरनेट से लेकर खरीदी का भुगतान करने तक दर्जनों किस्म के काम एक स्मार्टफोन से होने लगे हैं, और लोगों के पास इसके बिना जी पाने का विकल्प मानो रह नहीं गया है। अब तो तरह-तरह की पहचान और शिनाख्त भी इसी फोन के रास्ते होने लगी है, और एक स्मार्टफोन न होने से जाने कितने तरह के काम हो ही नहीं सकते।
लेकिन स्मार्ट फोन एक औजार की तरह जितने काम का है, उतना ही वह एक आत्मघाती हथियार भी है जब वह इंटरनेट और सोशल मीडिया के साथ जुडक़र लोगों के लिए नशे के सामान की तरह हो जाता है। लोग तरह-तरह के खतरे उठाकर भी अपनी अनोखी और असाधारण रील बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के दबाव में रहते हैं। ऐसा न कर पाने पर उनके दायरे के दूसरे लोगों से पिछड़ जाने का एक तनाव उन पर मंडराते रहता है, और अब तो किशोरावस्था में पहुंचने से पहले भी भारत जैसे देश में बच्चे किसी रोक-टोक के अपने सोशल मीडिया अकाउंट खोल सकते हंै, और उसके बाद उन पर आसपास के हमउम्र लोगों का यह दबाव शुरू हो जाता है कि तरह-तरह की पोस्ट की जाए, तरह-तरह के संदेश भेजे जाएं। और यह सिलसिला तब तक आगे बढ़ता रहता है, जब तक बहुत से नाबालिग बच्चे सोशल मीडिया पर शिकार ढूंढते हुए पेशवर मुजरिमों के जाल में नहीं फँस जाते। बहुत से देहशोषण के मामले सोशल मीडिया से ही शुरू होते हैं और फिर वॉट्सऐप जैसी मैसेंजर सर्विसों पर आगे बढ़ते हैं।
इन निजी संबंधों से परे भी इन दिनों लोग मोबाइल फोन पर हजार किस्म की धोखाधड़ी और जालसाजी के शिकार हो रहे हैं, और अपनी जिंदगी भर की कमाई को कुछ दिनों, घंटों, या मिनटों में गंवा दे रहे हैं। अमरीका जैसे कई पश्चिमी देश मोबाइल फोन पर स्कूली बच्चों को फंसाकर उनसे उगाही के सेक्सटॉर्शन के शिकार हैं, और हर बरस हजारों बच्चे ब्लैकमेल होते-होते थककर खुदकुशी कर रहे हैं। यही सब देखकर अभी ऑस्ट्रेलिया ने नया कानून बनाया है कि नाबालिग बच्चे किसी भी तरह से सोशल मीडिया का खाता नहीं खोल सकते। जो सोशल मीडिया कंपनी ऐसा करेगी, उस पर एक आसमान छूते जुर्माने का इंतजाम भी किया गया है। अगर मोबाइल फोन सिर्फ बातचीत और संदेश का औजार रहता, तो उससे कोई खूनखराबा नहीं होता। लेकिन अब वह असल जिंदगी से परे एक आभासी जिंदगी का मंच बन गया है, और बहुत से लोग अपनी असल निजी जिंदगी से कहीं अधिक घंटे इस आभासी जिंदगी में गुजारने लगे हैं। यह सिलसिला बहुत भयानक है। दसियों हजार बरसों से इंसान एक व्यक्ति से परे पारिवारिक और सामाजिक प्राणी रहते आए हैं। पिछले कुछ हजार बरसों से आधुनिक सभ्यता धीरे-धीरे लेकिन लगातार विकसित होती रही है। लेकिन पिछली चौथाई सदी में सोशल मीडिया और उसके इस्तेमाल के औजार इस रफ्तार से जिंदगी को ढांक चुके हैं कि असल जिंदगी के लोगों को इस धुंध के बीच कम दिखने लगे हैं। ऐसे में नई और अधेड़ पीढ़ी, दोनों ही मोबाइल फोन और सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में इस तरह डूब रही हैं कि आसपास के जीते-जागते करीबी लोगों से उनकी तनातनी और टकराव का खतरा रहना ही है। जिस तरह किसी का नशा छुड़ाने पर उनकी बेचैनी उन्हें खुदकुशी की कगार तक ले जाती है, उसी तरह मोबाइल फोन और सोशल मीडिया छीन लेने पर बहुत से बच्चे और बड़े खुदकुशी पर उतारू हो जाते हैं।
हमने इस बारे में एक मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता से पूछा तो उनका कहना है कि जब मां-बाप अपने बच्चों से मोबाइल फोन या सोशल मीडिया एकदम से छीन लेते हैं, तो ऐसा खतरा खड़ा होता है। वे बच्चों को सीमित समय के लिए मोबाइल दे सकते हैं, और इसके अलावा उन्हें खेलकूद, योग, या बच्चों की दिलचस्पी के पेंटिंग, डांस, संगीत, जैसे किसी शौक में शामिल करके व्यस्त रख सकते हैं। और एक सबसे जरूरी बात यह भी है कि परिवार के बड़े लोग खुद भी मोबाइल की लत छोडक़र एक साथ बैठने, और कुछ मनोरंजक करने जैसे काम कर सकते हैं जिसमें मोबाइल के आदी हो गए बच्चों का कुछ वक्त लग सके। यह सलाह बच्चों पर तो लागू होती है, लेकिन जब बालिग और अधेड़ लोग फोन पर कई किस्म के रिश्ते बनाने लगते हैं, कई किस्म के वयस्क मनोरंजन के खतरे भी उठाने लगते हैं, तो उनसे ऐसी लत, और ऐसे नशे को छुड़ाना एक अलग किस्म की समस्या है। चौथाई सदी में असल जिंदगी को बेदखल करके काबिज हो गई इस आभासी जिंदगी से छुटकारा पाना आसान नहीं है। लेकिन इससे जो पारिवारिक रिश्ते बिगड़ रहे हैं, परिवार टूट रहे हैं, उन्हें बचाना आज की समाज-व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती है।
You may also like
-
केंद्रीय मंत्री चिराग पर एफआईआर की तलवार- पायल मोदी का हॉस्पिटल से वीडियो-जान देने के अलावा कोई चारा नहीं बचा
-
एसटी एससी क्रीमीलेयर के बिना इंसाफ नामुमकिन
-
13 साल वाली बच्ची को संन्यास दिलाने वाले महंत कौशल गिरि 7 साल के लिए निष्कासित
-
मंत्री गुट के करीबी पार्षद जीतू यादव का इस्तीफा,पार्टी से भी निष्कासित
-
प्रेसनोट से शुरू बदनामी की बेगुनाही के बाद भरपाई?