RSS Chief Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने अमेरिका द्वारा भारत पर टैरिफ बढ़ाने और H-1B वीजा फीस में भारी इजाफे पर तीखा बयान दिया है।
रविवार को दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि भारत को इस स्थिति से निपटने के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए, लेकिन हम आंख मूंदकर आगे नहीं बढ़ सकते हैं।
RSS चीफ मोहन भागवत ने बिना नाम लिए अमेरिका की नीति पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि तीन साल पहले एक शीर्ष अमेरिकी नेता से उनकी मुलाकात हुई थी।
उस दौरान सुरक्षा, आतंकवाद-निरोध और अर्थव्यवस्था जैसे विषयों पर बातचीत हुई। लेकिन हर बार वही शर्त दोहराई गई – बशर्ते अमेरिकी हित सुरक्षित रहें।
भागवत ने कहा कि यह सोच दुनिया में हर जगह दिखती है। हर देश अपने हित को सर्वोपरि रखता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे फूड चेन में ऊपर वाला नीचे वाले को खा जाता है।
वैसे ही वैश्विक राजनीति में ताकतवर हमेशा कमजोरों पर दबाव बनाते हैं। इसलिए भारत को भी अब अपनी नीतियां दूसरों पर निर्भर होकर नहीं, बल्कि अपने दृष्टिकोण के आधार पर तय करनी होंगी।
H-1B वीजा फीस और टैरिफ पर असर
हाल ही में अमेरिका ने भारतीय IT प्रोफेशनल्स के लिए H-1B वीजा की फीस कई गुना बढ़ा दी है। इसके अलावा भारतीय सामानों पर टैरिफ भी बढ़ाया गया है।
इन फैसलों का सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था, खासकर टेक सेक्टर पर पड़ रहा है।
RSS प्रमुख ने कहा कि भारत को इस तरह के कदमों का जवाब अपनी नीति और रणनीति से देना होगा।
उन्होंने स्पष्ट किया कि आंख मूंदकर अमेरिका या किसी भी अन्य देश के फैसलों को मानना भारत के हित में नहीं है।
भारत का पारंपरिक और सनातन दृष्टिकोण
भागवत ने कहा कि दुनिया जिन चुनौतियों का सामना कर रही है, वे उस खंडित दृष्टिकोण का नतीजा हैं, जो पिछले दो हजार सालों से केवल सीमित विकास और सुख की सोच पर आधारित है।
उन्होंने कहा कि अगर भारत विश्वगुरु और विश्वामित्र बनना चाहता है तो उसे अपने पारंपरिक दृष्टिकोण के आधार पर आगे बढ़ना होगा।
उन्होंने कहा कि भारत ही एकमात्र देश है जिसने पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं को पूरी तरह निभाया है। बाकी देशों के पास न तो प्रामाणिकता है और न ही स्थायी सोच।
भारत को अपने पूर्वजों के अनुभवों से सीखे सनातन मूल्यों को अपनाकर अपनी राह बनानी होगी।
कुल मिलाकर मोहन भागवत ने दो टूक कहा कि भारत को वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में अपने हितों की रक्षा करनी होगी।
सिर्फ राष्ट्रहित ही नहीं, बल्कि जीवन और विकास के सनातन दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए भारत को अपनी नीतियां तय करनी चाहिए।
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