इंदौर मुख्यमंत्री के सपनों का शहर। इसकी कमान हमेशा शिवराज ने अपने हाथ रखी। अपने दो कार्यकाल से किसी को मंत्री भी नहीं बनाया। अफसरों के जरिये शहर के विकास और राजनीति दोनों को साधा। अब शिवराज से पटरी न बैठने वाले नरोत्तम को इंदौर का प्रभार मिला। इस बदलाव के सियासी
‘अर्थ’ पर एक रिपोर्ट
अरविन्द तिवारी (वरिष्ठ पत्रकार )
मध्यप्रदेश की राजनीति में भले ही इन दो दिग्गजों के बीच तालमेल नहीं बैठ रहा लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यह बहुत अच्छे से जानते हैं कि गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का सबसे बेहतर उपयोग कहां और कैसे हो सकता है।
मध्यप्रदेश में भाजपा को 15 महीने बाद वापस सत्ता में लाने में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले मिश्रा और मुख्यमंत्री के संबंध इन दिनों कैसे यह सब अच्छे से जानते हैं। यह भी किसी से छुपा हुआ नहीं है कि एक जमाने में नरोत्तम, शिवराज के संकटमोचक भी रहे है।
कुछ दिनों पहले कैबिनेट की बैठक में नरोत्तम ने जो तेवर दिखाए थे उससे साफ है उनकी भृकुटी बनी हुई है। ऐसे वाकये पहले भी हो चुके हैं लेकिन इसके बावजूद वे सरकार के मुख्य प्रवक्ता की भूमिका में हैं।
रोज सुबह सरकार के प्रतिनिधि के रूप में मीडिया से रूबरू होते हैं। अब राजनीतिक रूप से सबसे संवेदनशील माने जाने वाले इंदौर के प्रभारी भी बन गए। इसलिए यह बिल्कुल सही कहा गया है कि मंत्री हो या अफसर किसका कहां सबसे बेहतर उपयोग हो सकता है यह शिवराज से ज्यादा अच्छा कोई नहीं जानता।
बतौर प्रभारी मंत्री नरोत्तम मिश्रा की पहली यात्रा हो चुकी है और लंबे अनुभव से मिली परिपक्वता का एहसास उन्होंने इस यात्रा के दौरान करवा दिया। सालों से हम देखते हैं कि चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की इंदौर के दिग्गज नेता प्रभारी मंत्री को कुछ समझते ही नहीं।
हमने अर्जुन सिंह के मुख्यमंत्री काल में वह दौर भी देखा है जब तत्कालीन मुख्यमंत्री शिव भानु सिंह सोलंकी जिला 20 सूत्रीय कार्यक्रम समिति की बैठक ले रहे थे तब अर्जुन सिंह के कट्टर समर्थक गिरधर नागर ने उनकी धोती खोलने का दुस्साहस कर लिया था।
दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री बनने के बाद कर्नल अजय नारायण मुशरान को इंदौर का प्रभारी बनाया तो तब के सुपर सीएम महेश जोशी के खासमखास लोगों ने उन्हें ज्यादा देर टिकने नहीं दिया। भाजपा सरकार के दौर में भी इंदौर आधा दर्जन प्रभारी तो देख ही चुका है।
लेकिन इंदौर में इस बार हमने नरोत्तम मिश्रा को एक अलग अंदाज में देखा। उनका जलवा किसी मुख्यमंत्री से कम नहीं था और जिस रास्ते से गुजरे ऐसा लगा मानो मुख्यमंत्री का काफिला ही गुजर रहा हो।
वे यहां के तमाम दिग्गज नेताओं जिनमें मंत्री, विधायक और पार्टी के वरिष्ठ नेता शामिल हैं से खुद मिलने पहुंचे। किसी के साथ चाय पी कहीं नाश्ता किया तो कहीं भोजन किया। जिनसे मिलने नहीं पहुंच पाए थे उन्हें फोन करके मिलने बुला लिया।
इसी का नतीजा था कि जिस से भी वह मिले वह बाद में यह कहता पाया गया कि यह आदमी यहां चल जाएगा। गृह मंत्री के नाते जिस पद की वे अगुवाई कर रहे हैं उसका मनोबल बढ़ाने में भी उन्होंने कोई कसर बाकी नहीं रखी और जिला योजना समिति की पहली बैठक को जिस अंदाज में उन्होंने संचालित किया ऐसा सालों बाद देखने को मिला।
इंदौर से पूरे मध्यप्रदेश में संदेश जाता है यही कारण है कि गहरी मत भिन्नता और लाख न पटने के बावजूद शिवराज ने नरोत्तम को इंदौर का प्रभार सौंपा है। गृहमंत्री की अपनी एक वर्किंग स्टाइल है और वक्त बेवक्त तेवर दिखाने का अपना एक अंदाज। इसका एहसास इंदौर में होने लगा है। संगठन के लोगों से जब रूबरू हुए तब उनका मिजाज अलग था, नौकरशाहों से एक अलग अंदाज में मिले तो निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को साधने की उनकी स्टाइल बिल्कुल अलग रही। पार्टी कार्यकर्ताओं को उनके इसी अंदाज़ के कारण शायद पहली बार यह एहसास हुआ कि हां हमारी सरकार है और इसमें हमारी भी भागीदारी रहने वाली है। अपने साथ लाए गए कागजों के पुलिंदे को पार्टी की बैठक में लहराते हुए वह बोले चिंता मत करो ढेरों कमेटियां बनना है और हमारी कोशिश रहेगी कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इनमें मौका मिले। सरकार के लिए हमेशा परेशानी का कारण बनने वाले तबादलों के मुद्दे पर उन्होंने जिस अंदाज में पल्ला झाड़ा वह भी देखने लायक था। उन्होंने कहा आप लोग मिल बैठकर तय कर लो, सूची बनाकर मुझे दे दो पर यह ध्यान रखना की इस सूची के आधार पर यदि एक बार तबादला हो जाएगा तो फिर निरस्त नहीं होगा। यानी तबादलों की आड़ में शुभ लाभ का गणित देखने वालों को अलर्ट कर दिया।
विजयवर्गीय खेमे को मिलेगी ताकत
नरोत्तम मिश्रा के इंदौर का प्रभारी बनने के बाद एक बार उनके और कैलाश विजयवर्गीय संबंधों को खंगालना भी जरूरी है दोनों में सबसे बड़ी समानता यह है मध्य प्रदेश भाजपा की राजनीति इनकी शिवराज से पटरी नहीं बैठती है। जब जब मध्यप्रदेश में शिवराज विरोधी मुहिम शुरू होती है उसके केंद्र में यह दोनों नेता जरूर रहते हैं। नरोत्तम के इंदौर का प्रभारी बनने के बाद कैलाश विजयवर्गीय का वजन कितना बढ़ेगा यह भी चर्चा का विषय है। ऐसा माना जाता है कि इन दिनों इंदौर में नौकरशाही विजयवर्गीय को ज्यादा तवज्जो नहीं देती है। कारण भी साफ है, चूंकि विजयवर्गीय और मुख्यमंत्री के बीच राजनीतिक दूरियां हैं उसका फायदा नौकरशाही उठाती है। यही कारण है जब भी मौका मिलता है विजयवर्गीय नौकरशाही को घेरने में परहेज नहीं करते। हो सकता है प्रभारी मंत्री के रूप में नरोत्तम की मौजूदगी का फायदा विजयवर्गीय को मिले। प्रभारी मंत्री के रूप में नरोत्तम की पहली यात्रा मैं विजयवर्गीय के खासम खास विधायक रमेश मेंदोला को जो तवज्जो मिली उससे कुछ ऐसे ही संकेत मिलते हैं।
अफसरों को बदलेंगे ?
सवाल यह भी है कि नरोत्तम मिश्रा के इंदौर का प्रभारी बनने के बाद मुख्यमंत्री के बेहद करीबी माने जाने वाले कलेक्टर मनीष सिंह और डीआईजी मनीष कपूरिया की भूमिका क्या रहेगी ? हालांकि यह दोनों अफसर बहुत सुलझे हुए माने जाते हैं और सब के साथ तालमेल बैठाकर काम करते हैं। नरोत्तम की शैली भी कामकाज के मोर्चे पर कुछ ऐसी ही है। वह व्यर्थ में पंगा लेने के बजाय संतुलन साध कर काम करते हैं हां इतना जरूर है कि जिसके खिलाफ मोर्चा खोलते हैं उससे फिर कोई समझौता नहीं करते।
शिवराज की मर्जी या दबाव
इंदौर को मुख्यमंत्री के सपनों का शहर कहा जाता है खुद शिवराज सीना ठोक कर यह कहते हैं इंदौर मेरे सपनों का शहर है। पर यह भी किसी से छुपा हुआ नहीं है कि इंदौर मैं नेतृत्व को बोना करने का आरोप भी शिवराज पर लगता है। ऐसे में कद्दावर नरोत्तम की प्रभारी मंत्री के रूप में नियुक्ति शिवराज का कोई नया दांव तो नहीं माना जाए। सोचना यह भी पड़ेगा कि यह फैसला खुद मुख्यमंत्री का है या फिर किसी ने उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। बहरहाल फिलहाल को प्रभारी मंत्री चर्चा में अपने अंदाज के कारण, अपनी गर्मजोशी के कारण और सबको साधकर संतुलन स्थापित करने की अपनी शैली के कारण। आने वाले समय के उनके निर्णयों से यह पता चलेगा कि वे यहां कितने असरकारक साबित होते हैं।
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