Abbas Ansari Hate Speech: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्तार अंसारी के बड़े बेटे और मऊ से विधायक अब्बास अंसारी को बड़ी राहत दी है।
बुधवार को जस्टिस समीर जैन ने मऊ की MP/MLA कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी।
इस फैसले में अब्बास को हेट स्पीच मामले में दो साल की सजा सुनाई गई थी।
कोर्ट के इस आदेश के बाद अब उनकी विधानसभा सदस्यता बहाल होने का रास्ता साफ हो गया है।
जानें क्या है पूरा मामला?
यह पूरा विवाद 2022 के विधानसभा चुनाव से जुड़ा है।
अब्बास उस समय सुभासपा के टिकट पर मऊ से चुनाव लड़ रहे थे।
चुनाव प्रचार के दौरान 3 मार्च को मऊ के पहाड़पुर मैदान में एक जनसभा में उन्होंने विवादित भाषण दिया।
उन्होंने कहा था- जो जहां है, वहीं रहेगा। पहले हिसाब-किताब होगा, उसके बाद ही ट्रांसफर होगा।
अखिलेश भैया से कहकर आया हूं कि सरकार बनने के बाद छह महीने तक किसी का ट्रांसफर या पोस्टिंग नहीं होगी।
इस बयान के बाद चुनाव आयोग ने उन पर 24 घंटे तक प्रचार करने पर रोक लगा दी।
वहीं 4 अप्रैल 2022 को तत्कालीन एसआई गंगाराम बिंद की शिकायत पर मऊ के शहर कोतवाली में हेट स्पीच का मुकदमा दर्ज हुआ।
निचली अदालत का फैसला और सदस्यता रद्द
लंबी सुनवाई के बाद 31 मई 2024 को मऊ की MP/MLA कोर्ट ने अब्बास अंसारी को दो साल की सजा सुनाई।
अदालत का आदेश आते ही मामला तेजी से आगे बढ़ा।
सिर्फ 24 घंटे के भीतर केस फाइल मऊ से लखनऊ विधानसभा सचिवालय पहुंची और 1 जून को रविवार के दिन विधानसभा सचिवालय खोला गया।
उसी दिन अब्बास अंसारी की विधानसभा सदस्यता समाप्त कर दी गई और मऊ सदर सीट को रिक्त घोषित कर दिया गया।
हालांकि चुनाव आयोग ने उपचुनाव की घोषणा नहीं की थी।
पूरी खबर यहां पढ़ें – मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास की विधायकी रद्द, हेट स्पीच केस में अदालत ने सुनाई 2 साल की सजा
हाईकोर्ट में अब्बास की अपील
निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए अब्बास ने 17 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
उनके वकील उपेंद्र उपाध्याय ने दलील दी कि भाषण की सामग्री से किसी भी तरह का आपराधिक मामला नहीं बनता।
इसे ज्यादा से ज्यादा चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन कहा जा सकता था, लेकिन इसे अनावश्यक रूप से क्रिमिनल केस में बदल दिया गया।
करीब पांच सुनवाई के बाद 13 अगस्त को हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था और 21 अगस्त को कोर्ट ने निचली अदालत की सजा पर रोक लगा दी।
हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब्बास ने कहा, जीवन का दूसरा नाम संघर्ष है।
यह न्याय की जीत है। मौखिक आदेश आ गया है, शाम तक लिखित आदेश भी आ जाएगा।
अपने छोटे भाई उमर अंसारी के जेल जाने पर उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा, शासन-सत्ता जो चाहे कर सकती है।
लेकिन संविधान और न्यायपालिका है और हमें न्याय मिलने पर पूरा भरोसा है।
चुनावी तैयारी पर अब्बास बोले, लोकतंत्र है, सबको चुनाव लड़ने की इजाजत है। अवाम जिसे चाहेगी, वही जीतेगा।
विधायकी बहाली की प्रक्रिया
विधान विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक सजा स्थगित है, तब तक अब्बास अंसारी को विधानसभा में सदस्यता बहाल करने का हक है।
उन्हें अब औपचारिक रूप से विधानसभा सचिवालय में अर्जी देनी होगी और सचिवालय को सदस्यता बहाल करनी होगी।
हालांकि, सरकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी में है।
प्रमुख सचिव गृह संजय प्रसाद ने इस मामले पर अपर महाधिवक्ता महेश चंद्र चतुर्वेदी से राय मांगी, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट जाने की सलाह दी।
अब देखना होगा कि विधानसभा सचिवालय कितनी जल्दी अब्बास की सदस्यता बहाल करता है।
दूसरी ओर, राज्य सरकार के सुप्रीम कोर्ट जाने से मामला और लंबा भी खिंच सकता है।
लेकिन फिलहाल हाईकोर्ट का फैसला अब्बास के लिए बड़ी राजनीतिक और कानूनी जीत है।
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