दिल्ली में बांग्लादेशियों की धरपकड़ के बहाने पुलिस अत्याचार कर रही है। कई दिहाड़ी मजदूरों को सिर्फ उनके भाषा के आधार पर बांगलादेशी
बताया जा रहे। वोटर आईडी, आधार, जमीन, पीढ़ियों का रिकॉर्ड किनारे पुलिस का डंडा भारी
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दिल्ली। दिल्ली और गाज़ियाबाद के कई मुस्लिम परिवारों ने आरोप लगाया है कि पुलिस उन्हें बांग्लादेशी ‘अवैध प्रवासी’ समझकर परेशान कर रही है, जबकि उनके पास भारतीय नागरिकता के सभी दस्तावेज़ मौजूद हैं। ‘द वायर’ के लिए अतुल अशोक होवाले ने इस बार में विस्तार से रिपोर्ट की है।
दिल्ली की बवाना की झुग्गी बस्ती जे.जे. कॉलोनी के निवासी 54 वर्षीय साजन कहते हैं, “जब मंदिर जाओ तो प्रसाद चढ़ाना ही पड़ता है.” मगर यह धार्मिक बात नहीं है – उनके लिए ‘प्रसाद चढ़ाना’ मतलब पुलिस से पिटाई और अपमान झेलना है
। पिछले कुछ महीनों में दिल्ली और आसपास के शहरी इलाकों में झुग्गियों में रहने वाले लोगों के खिलाफ तेज़ी से निष्कासन की कार्रवाइयां हो रही हैं। ‘अवैध प्रवासी’ बताकर बंगाली बोलने वाले मुसलमानों को चिन्हित कर ‘होल्डिंग सेंटरों’ में भेजा जा रहा है, जिससे यह कार्रवाई भयावह रूप ले चुकी है। ये वे लोग हैं जो शहर की बुनियादी ढांचे की रीढ़ हैं, लेकिन अब अचानक उनकी नागरिकता ही शक के घेरे में है।
“बंगाली बोलते हो, मतलब बांग्लादेशी हो” : बवाना की जे.जे. कॉलोनी में कई कम आमदनी वाले मुस्लिम परिवार, जो खुद को पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड से दिल्ली काम की तलाश में आया बताते हैं, कहते हैं कि पुलिस केवल उनकी भाषा के आधार पर उन्हें बांग्लादेशी समझती है, भले ही उनके पास आधार कार्ड, वोटर आईडी, पैन कार्ड, ज़मीन के काग़ज़ और पासपोर्ट तक मौजूद हैं।
28 वर्षीय शबनम, जो ई-ब्लॉक में अपने परिवार के साथ रहती हैं, बताती हैं कि वे झारखंड के गोड्डा ज़िले के हरिपुर गांव से हैं और पिछले 15 सालों से दिल्ली में बसी हुई हैं। उनके पिता दिहाड़ी मज़दूर हैं और रिक्शा चलाते हैं, मां घरेलू काम करती हैं, और बच्चे दिल्ली में पढ़े-लिखे हैं. 5 जुलाई की सुबह दिल्ली पुलिस उनके घर ‘वेरिफिकेशन’ के लिए आई और पिता को थाने बुलाया. बोला गया कि “बस साइन कर दीजिए और चले आइए”, लेकिन वहां पहुंचने पर पुलिस ने पैसे की मांग की। जब परिवार ने देने से इनकार किया, तो पुलिस ने व्यवहार बदल लिया और धमकाना शुरू कर दिया।
“काग़ज़ दिखाए, फिर भी बोले – तुम बांग्लादेशी हो” : शबनम बताती हैं, “हमने सभी कागज़ दिखाए. आधार, वोटर कार्ड, राशन कार्ड, ज़मीन के कागज़. लेकिन पुलिस का बस एक जवाब था: ‘तुम बंगाली बोलते हो, तुम बांग्लादेशी हो।
यह हमारे लिए सबसे बड़ा अपमान था.” पुलिस ने उनकी मां की तस्वीर खींचकर सभी थानों में भेज दी है. अब कोई भी पुलिस वाला घर आकर मां को बाहर बुलाता है, रात में टॉर्च चेहरे पर मारता है और गाली-गलौज करता है /
वे अब डर के साये में जी रहे हैं, नींद नहीं आती. पुलिस ने उन्हें लगातार तीन दिन (5 से 8 जुलाई) तक थाने बुलाकर पूछताछ की और मानसिक उत्पीड़न किया.
80 वर्षीय मोहम्मद ज़फ़र ने अपने झारखंड के ज़मीन के दस्तावेज़ दिखाए तो पुलिस ने उन्हें नकली बता दिया. साजन बताते हैं कि पहले भी उन्हें पुलिस ने उठाया था और इतनी बुरी तरह पीटा था कि कान का पर्दा फट गया।
कई लोगों ने आरोप लगाया कि पुलिस उनके मूल दस्तावेज़ जैसे आधार और वोटर कार्ड ज़ब्त कर चुकी है और अब तक वापस नहीं किए हैं. उन्हें कभी भी थाने बुला लिया जाता है और 2-3 दिन तक बिना वजह रोका जाता है।
सीपीआई (एम) नेता वृंदा करात ने 11 जुलाई को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर कहा कि बांग्ला बोलने वाले नागरिकों को अवैध प्रवासी बताकर निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने द वायर से कहा: “हमने बवाना की कई कॉलोनियों में जाकर खुद देखा. लोगों के पास सारे दस्तावेज़ हैं. फिर भी पुलिस उन्हें पकड़कर कहती है, ‘तुम्हें बांग्लादेश भेज देंगे.’ यह एक सुनियोजित राष्ट्रीय अभियान है जो गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में चलाया जा रहा है. दिल्ली पुलिस सीधे गृह मंत्रालय के अधीन है और पुलिसकर्मी समझते हैं कि ऊपर से आदेश है – जितना ज़्यादा करेंगे, उतने ‘स्टार’ मिलेंगी. यही सच्चाई है।
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