Delhi Judge Yashwant Verma: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को लेकर संसद में हलचल तेज हो गई है।
संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन, कांग्रेस के नेतृत्व में 145 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को सौंपा गया।
यह कार्यवाही भारतीय लोकतंत्र और न्यायपालिका की जवाबदेही को लेकर एक अहम पड़ाव मानी जा रही है।
कौन-कौन सांसद हैं शामिल?
महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वाले सांसदों में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, बीजेपी नेता अनुराग ठाकुर, रविशंकर प्रसाद, राजीव प्रताप रूड़ी, पीपी चौधरी, एनसीपी की सुप्रिया सुले और कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल सहित कई प्रमुख नाम शामिल हैं।
यह प्रस्ताव केवल कांग्रेस तक सीमित नहीं रहा, बल्कि टीडीपी, जेडीयू, जेडीएस, जनसेना, शिवसेना (शिंदे गुट), असम गण परिषद, एलजेपी और सीपीएम जैसे दलों के सांसदों ने भी इसमें समर्थन दिया है।
बता दें मार्च 2025 में दिल्ली स्थित सरकारी आवास से जस्टिस यशवंत वर्मा के यहां बड़ी मात्रा में अधजले 500 रुपये के नोट बरामद किए गए थे।
जांच एजेंसियों ने इस मामले में संदिग्ध लेन-देन और काले धन को लेकर पूछताछ शुरू की थी।
यही मामला अब न्यायिक नैतिकता और ईमानदारी के सवालों के केंद्र में आ गया है।
संवैधानिक प्रक्रिया क्या कहती है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया महाभियोग के ज़रिए की जाती है।
इसके लिए लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर की आवश्यकता होती है।
प्रस्ताव पेश होने के बाद, संसद एक जांच समिति गठित करती है जो आरोपों की विस्तृत समीक्षा करती है।
यदि समिति यह निष्कर्ष निकालती है कि आरोप सही हैं, तो संसद में मतदान के ज़रिए न्यायाधीश को पद से हटाया जा सकता है।
इस प्रक्रिया को जजेज इंक्वायरी एक्ट, 1968 द्वारा संचालित किया जाता है।
सरकार की क्या प्रतिक्रिया रही?
केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने रविवार को जानकारी दी थी कि प्रस्ताव को लेकर 100 से अधिक सांसदों ने पहले ही समर्थन दे दिया है।
अब इस पर आगे की कार्यवाही के लिए यह प्रस्ताव बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) को भेजा गया है, जो तय करेगी कि सदन में इसे कब पेश किया जाएगा।
मामले की गंभीरता को देखते हुए सभी प्रमुख दलों में आपसी सहमति देखी जा रही है।
यह पहली बार हो सकता है जब विभिन्न विचारधाराओं वाले दल एक संवैधानिक प्रक्रिया को लेकर एकजुट दिखाई दे रहे हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक, यह एक मजबूत लोकतांत्रिक उदाहरण हो सकता है, जिसमें न्यायपालिका को भी जवाबदेह ठहराया जा रहा है।
बहरहाल, जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव केवल एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक संविधानिक और राजनीतिक चेतना का भी संकेत है।
संसद की जांच प्रक्रिया में अब यह सामने आएगा कि आरोप कितने गंभीर हैं और क्या वाकई देश की सर्वोच्च अदालत में बैठे न्यायाधीश को हटाने का आधार बनते हैं।
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