S Jaishankar Meets Xi Jinping: भारत और चीन के बीच बीते कुछ वर्षों में रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं।
खासकर 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद, दोनों देशों के बीच कूटनीतिक दूरी और सीमा विवादों ने संबंधों को ठंडा कर दिया था।
लेकिन बीते कुछ महीनों में रिश्तों को पटरी पर लाने की कोशिशें तेज हुई हैं।
इसी कड़ी में भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की हालिया चीन यात्रा और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई मुलाकात को बेहद अहम माना जा रहा है।
एस जयशंकर की बीजिंग यात्रा
विदेश मंत्री जयशंकर बीजिंग में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने पहुंचे थे।
इसी दौरान उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की।
इस उच्च स्तरीय बैठक में उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश शी जिनपिंग तक पहुंचाया।
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर जानकारी देते हुए लिखा, बीजिंग में राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की।
उन्हें राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की शुभकामनाएं दीं और द्विपक्षीय संबंधों में हुई हालिया प्रगति से अवगत कराया।
इस दिशा में हमारे नेताओं के मार्गदर्शन को मैं अत्यंत महत्व देता हूं।
जयशंकर-जिनपिंग की मुलाकात के मायने
यह मुलाकात कई मायनों में खास रही।
सबसे पहले, यह 2020 के गलवान संघर्ष के बाद शी जिनपिंग और किसी वरिष्ठ भारतीय नेता के बीच पहली प्रत्यक्ष बैठक थी। यह स्पष्ट करता है कि दोनों देश अब रिश्तों को एक बार फिर बेहतर दिशा में ले जाने के इच्छुक हैं।
दूसरे, SCO जैसे बहुपक्षीय मंच पर हुई यह मुलाकात बताती है कि भारत अपनी कूटनीतिक स्थिति को मजबूती से प्रस्तुत कर रहा है और बातचीत के रास्ते खोलना चाहता है, लेकिन अपनी गरिमा और संप्रभुता से कोई समझौता नहीं कर सकता।
तीसरे, इस मुलाकात ने पाकिस्तान के लिए चिंता बढ़ा दी है। SCO में भारत और चीन के बीच बढ़ता संवाद पाकिस्तान की रणनीतिक योजनाओं को प्रभावित कर सकता है, खासकर तब जब चीन को वह अपना सबसे बड़ा समर्थक मानता है।
इन मुद्दों पर हुई चर्चा
1 – सीमा विवाद और तनाव में कमी:
जयशंकर ने कहा कि पिछले 9 महीनों में भारत-चीन संबंधों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, लेकिन अब भी एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर तनाव को पूरी तरह से कम करना और सैन्य मोर्चे से जुड़े मुद्दों का समाधान जरूरी है।
2 – कूटनीतिक संवाद और नेतृत्व की भूमिका:
उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत नेतृत्व स्तर के संवाद को बेहद महत्वपूर्ण मानता है और शीर्ष नेतृत्व की भूमिका ही रिश्तों को नई दिशा देने में सबसे प्रभावी हो सकती है। इसी कारण पीएम मोदी और राष्ट्रपति मुर्मू का व्यक्तिगत संदेश शी जिनपिंग को सौंपा गया।
3 – व्यापार और मैन्युफैक्चरिंग पर चिंता:
जयशंकर ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात के दौरान व्यापार में भारत के खिलाफ उठाए जा रहे बाधाओं पर चिंता जताई। उन्होंने मांग की कि चीन ऐसे कदम न उठाए जो भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को नुकसान पहुंचाएं।
4 – लोगों के बीच संपर्क बढ़ाना:
दोनों पक्षों ने पर्यटन, शिक्षा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने पर सहमति जताई। कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने का स्वागत किया गया, जो पिछले पांच वर्षों से बंद थी। साथ ही सीधी फ्लाइट्स शुरू करने और वीजा प्रक्रिया को सरल बनाने पर भी चर्चा हुई।
5 – आतंकवाद पर कड़ा रुख:
SCO मंच पर जयशंकर ने आतंकवाद, अलगाववाद और कट्टरपंथ के खिलाफ भारत की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को दोहराया। उन्होंने कहा कि सभी सदस्य देशों को इस नीति पर कायम रहना चाहिए।
चीनी उपराष्ट्रपति हान झेंग से भी मुलाकात
चीन यात्रा के दौरान जयशंकर ने चीनी उपराष्ट्रपति हान झेंग से भी मुलाकात की।
इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत-चीन के बीच विचारों का खुला और ईमानदार आदान-प्रदान वैश्विक चुनौतियों के समाधान में मददगार हो सकता है।
जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी से भी विस्तृत द्विपक्षीय बातचीत की, जिसमें सीमा विवाद, व्यापार, निवेश, ट्रैवल और रणनीतिक सहयोग जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा हुई।
उन्होंने कहा कि मतभेदों को विवाद नहीं बनने देना चाहिए और प्रतिस्पर्धा को संघर्ष में नहीं बदलना चाहिए।
क्या मोदी-शी जिनपिंग की बैठक संभव?
इस मुलाकात के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि पीएम मोदी इस वर्ष के अंत में होने वाले SCO शिखर सम्मेलन के लिए चीन का दौरा कर सकते हैं।
यदि ऐसा होता है, तो यह दोनों देशों के संबंधों में नई शुरुआत को दर्शाएगा।
हालांकि, अभी भी कुछ प्रमुख बाधाएं हैं जैसे कि दलाई लामा का उत्तराधिकार और चीन द्वारा पाकिस्तान को समर्थन देना, जो भारत को असहज करता है।
बहरहाल, एस. जयशंकर की यह चीन यात्रा एक कूटनीतिक मील का पत्थर साबित हो सकती है।
भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह शांतिपूर्ण, स्थिर और सम्मानजनक रिश्तों की ओर बढ़ना चाहता है, लेकिन आत्मसम्मान और सुरक्षा के साथ।
चीन के साथ रिश्तों में आई यह नई गर्माहट न केवल दक्षिण एशिया, बल्कि पूरी दुनिया की नजरों में है।
वहीं, यह मुलाकात शायद पाकिस्तान को सबसे ज्यादा चुभ सकती है।
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