Maharashtra Language Politics

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महाराष्ट्र में भाषा की राजनीति: मराठी न बोलने पर पीटना और माफ़ी मंगवाना अब ‘नया चलन’?

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Maharashtra Language Politics: काले नाग सी राजनीति, जो मराठी न बोले उसे डंसे बिना न माने

महाराष्ट्र में भाषा की राजनीति वहां के विपक्षी राजनेताओं के सिर पर काले नाग की तरह मंडरा रही है।

फनकार इतनी तेज कि जो मराठी न बोले, उसे छोड़े नहीं और एक बार कोई हाथ आ जाए, तो डंसे बिना माने नहीं।

“महाराष्ट्र में रहना है, तो मराठी बोलना होगा”— यह वाक्य अब कथन नहीं, चेतावनी बन चुका है।

यदि आप मराठी नहीं बोलते, तो मार खाने और माफ़ी मांगने के लिए तैयार रहिए।

नामचीन लोगों को ‘छूट’, आम आदमी पर ‘खंजर’

संविधान के तमाम अधिकार उस वक्त ताक पर रख दिए जाते हैं, जब ओछी एवं झूठ-फरेब की राजनीति का भूत सवार हो जाए।

आप मज़दूर हैं, कर्मचारी हैं, व्यवसाय करते हैं—पर अगर मराठी नहीं आती, तो समझिए कि अपमानित होना तय है।

हैरानी की बात यह है कि यदि आप राजनेता हैं, फ़िल्मी सितारे हैं, संगीतकार या नामचीन व्यक्ति हैं, तो यह जातीयता का कुठाराघात आप पर नहीं फूटेगा।

यह खंजर केवल उनके लिए है जिन्हें मराठी नहीं आती।

किसी ने कहा है कि भाषा दो दिलों को मिलाती है, लेकिन महाराष्ट्र में यह फिलहाल दो व्यक्तियों को लड़वाती है।

चोट इतनी गहरी पहुँचती है कि सोशल मीडिया के माध्यम से लोग इसे अरसे तक याद रखते हैं।

हिंदी बोलने पर रिक्शा ड्राइवर से माफ़ी मंगवाई गई

ठाणे जिले में एक हिंदी बोलने वाले रिक्शा ड्राइवर का एक मराठी बोलने वाले पैसेंजर से झगड़ा हो गया और बात मारपीट तक पहुंच गई।

जानकारी मिलते ही महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के कार्यकर्ता कूद पड़े।

भिवंडी नगर अध्यक्ष मनोज गुलवी ने ड्राइवर से माफ़ी मंगवाई और साथ ही चेतावनी दी कि अगर आगे किसी मराठी युवक को छूने की कोशिश की, तो देख लेना हाथ कहां जाएगा।

मराठी क्यों बोलनी चाहिए? गुजराती दुकानदार से मारपीट

MNS कार्यकर्ताओं ने ठाणे में ही एक गुजराती दुकानदार से मारपीट की।

वजह? बस इतनी कि वह मराठी नहीं बोलता था।

इसका वीडियो 30 जून को वायरल हुआ था, जो विवादों में था।

वीडियो में कार्यकर्ता कहते हैं, तुमने पूछा कि मराठी क्यों बोलनी चाहिए? जब परेशानी थी, तब तुम MNS ऑफिस आए थे।”

जब दुकानदार कहता है कि उसे नहीं पता था कि मराठी बोलना जरूरी हो गया है, तो कार्यकर्ता उसे थप्पड़ मार देते हैं।

बार-बार थप्पड़ मारकर उसे मजबूर करते हैं कहने के लिए कि वह मराठी सीखेगा।

‘मैं मराठी नहीं सीखूंगा’, इन्वेस्टर के ऑफिस में तोड़फोड़

5 जुलाई को MNS कार्यकर्ताओं ने शेयर बाजार इन्वेस्टर सुशील केडिया के वर्ली स्थित ऑफिस में तोड़फोड़ की।

हमला, केडिया की 3 जुलाई को की गई X पोस्ट को लेकर हुआ, जिसमें उन्होंने लिखा था—

“मुंबई में 30 साल रहने के बाद भी मैं मराठी ठीक से नहीं जानता और जब तक आप जैसे लोगों को मराठी मानुष की देखभाल का अधिकार नहीं छीन लिया जाता, मैं मराठी नहीं सीखूंगा।”

राज ठाकरे की चुप्पी का आदेश

MNS चीफ राज ठाकरे ने पूरे विवाद पर चुप्पी साधने का आदेश दे दिया।

उन्होंने X पर पोस्ट किया, बिना मेरी अनुमति के कोई बात नहीं करेगा।

पार्टी के किसी भी सदस्य को मीडिया से कोई बात नहीं करनी है, न कोई प्रतिक्रिया वाले वीडियो सोशल मीडिया पर डालने हैं।

लेकिन इसका नतीजा बेअसर निकला, MNS के कार्यकर्ताओं में कोई सुधार नहीं देखने को मिला।

बीते दिनों ही MNS ने ठाणे के भायंदर में प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान

जब महाराष्ट्र सरकार में मंत्री प्रताप बाबूराव सरनाईक पहुंचे, तो कार्यकर्ता भड़क गए और उनका विरोध करने लगे।

इससे पहले पुलिस ने MNS के ठाणे-पालघर प्रमुख अविनाश जाधव समेत कई कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया।

वे व्यापारियों के विरोध में रैली निकालना चाहते थे, जिसे पुलिस ने अनुमति नहीं दी।

भाषाई आंकड़े और विडंबना

महाराष्ट्र में 68% लोग मराठी बोलते हैं, लेकिन 32% अन्य भाषाओं का उपयोग करते हैं।

विडंबना यह है कि ‘महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना’ का नाम भी संस्कृत भाषा से लिया गया है, जो हिंदी और मराठी दोनों की जननी है।

मराठी को भारत की सबसे मीठी बोली कहा जाता है, लेकिन अब इसी बोली के नाम पर वोटबैंक की राजनीति हो रही है।

MNS के वर्तमान में कोई विधायक नहीं हैं, फिर भी पार्टी का व्यवहार ऐसा है जैसे वह महाराष्ट्र की आत्मा की रक्षक हो।

यह वही राजनीति है जिसने मानवता के मूल उसूलों को ताक पर रख दिया है।

भाषा किसी संस्कृति की आत्मा होती है, लेकिन जब उसका प्रयोग दूसरों को अपमानित करने, पीटने या सामाजिक रूप से बहिष्कृत करने के लिए हो, तो वह सिर्फ एक हथियार रह जाती है।

अंत में एक ही सवाल है कि आख़िर कब थमेगा भाषाई राजनीति का कहर?

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