Dalai Lama

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दलाई लामा उत्तराधिकारी विवाद: तिब्बती धर्मगुरु ने तोड़ी चुप्पी, बोले- मैं 30-40 साल और जीवित रहूंगा

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Dalai Lama: तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने अपने उत्तराधिकारी को लेकर चल रही चर्चाओं और विवादों के बीच एक बड़ा बयान दिया है।

उन्होंने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि वे लोगों की सेवा करने के लिए अगले 30 से 40 वर्षों तक जीवित रहेंगे।

यह बयान ऐसे समय में आया है जब चीन और तिब्बती निर्वासित सरकार के बीच पुनर्जन्म और उत्तराधिकारी को लेकर टकराव तेज हो गया है।

शनिवार को धर्मशाला स्थित त्सुगलागखांग (मुख्य दलाई लामा मंदिर) में दीर्घायु प्रार्थना समारोह आयोजित किया गया।

जिसमें उन्होंने कहा कि कई भविष्यवाणियों और संकेतों से उन्हें विश्वास है कि अवलोकितेश्वर (बौद्ध करुणा के देवता) का आशीर्वाद उनके साथ है।

जारी रहेगी दलाई लामा की परंपरा

दलाई लामा 6 जुलाई को 90 साल के हो जाएंगे। उनका जन्म साल 1935 को उत्तर पूर्वी तिब्बत के ताक्सतेर इलाके में हुआ था।

अपने जन्मदिवस से पहले अपने अनुयायियों को संबोधित करते हुए दलाई लामा ने कहा, मैंने हमेशा लोगों के कल्याण के लिए काम किया है।

आप सभी की प्रार्थनाएं फलदायी रही हैं। मेरा इरादा है कि जब तक संभव हो सके, मैं सेवा करता रहूं।

हमें भले ही अपना देश छोड़ना पड़ा हो और भारत में निर्वासन में रहना पड़ रहा हो, लेकिन यहां से भी मैं जीवों को लाभ पहुंचा रहा हूं।

इस दौरान उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दलाई लामा की परंपरा जारी रहेगी और उनके उत्तराधिकारी की पहचान का अधिकार सिर्फ गादेन फोडरंग ट्रस्ट को ही है।

गादेन फोडरंग ट्रस्ट जो तिब्बती बौद्ध परंपरा के अनुसार दलाई लामा के संस्थान का आध्यात्मिक संरक्षक है।

भारत का संतुलित रुख: ‘धार्मिक स्वतंत्रता सर्वोपरि’

दलाई लामा के बयान के बाद भारत सरकार की प्रतिक्रिया भी सामने आई है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत सरकार धर्म और आस्था से जुड़ी मान्यताओं में कोई हस्तक्षेप नहीं करती।

उन्होंने कहा, हमने परम पावन दलाई लामा द्वारा दिए गए हालिया बयानों को देखा है।

भारत सरकार का रुख स्पष्ट है – हम देश में सभी धर्मों और आस्थाओं की स्वतंत्रता का समर्थन करते रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे।

भारत ने पुनर्जन्म या उत्तराधिकारी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर तटस्थ रुख अपनाते हुए केवल संविधान में निहित धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को दोहराया है।

चीन के दखल पर तिब्बत ने जताई आपत्ति

पुनर्जन्म और उत्तराधिकारी को लेकर चीन की कोशिशों को लेकर दलाई लामा और तिब्बती निर्वासित सरकार पहले ही नाराजगी जता चुके हैं।

चीन का कहना है कि अगला दलाई लामा तभी मान्य होगा जब उसे बीजिंग सरकार से अनुमति मिलेगी।

लेकिन दलाई लामा ने इस विचार को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि पुनर्जन्म एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है।

इसमें राजनीतिक दखल का कोई स्थान नहीं हो सकता।

तिब्बती निर्वासित सरकार के प्रमुख पेन्पा त्सेरिंग ने भी इस विषय पर चीन के रुख की कड़ी आलोचना की है।

उन्होंने कहा कि एक कम्युनिस्ट सरकार यह कैसे तय कर सकती है कि कोई आध्यात्मिक गुरु कहां और कब पुनर्जन्म लेगा।

किरेन रिजिजू के बयान पर चीन की आपत्ति

इससे पहले केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू के एक बयान पर चीन ने कड़ी आपत्ति जताई थी।

रिजिजू ने कहा था कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर निर्णय लेने का अधिकार केवल उन्हीं को है और यह पूरी तरह एक धार्मिक और आध्यात्मिक विषय है।

यह न केवल तिब्बतियों के लिए, बल्कि दुनियाभर के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण है।

चीन ने इस बयान पर भारत से ‘संवेदनशीलता’ दिखाने की मांग की थी।

लेकिन भारत सरकार ने अपने बयान में स्पष्ट कर दिया कि वह धार्मिक मामलों में दखल नहीं देती।

चीन क्यों चाहता है नियंत्रण?

चीन की मंशा स्पष्ट है – वह तिब्बत पर अपने अधिकार को मजबूत करने के लिए धार्मिक नेतृत्व को भी अपने नियंत्रण में लेना चाहता है।

2007 में चीन ने एक नियम लागू किया था, जिसमें कहा गया था कि किसी भी धार्मिक नेता का पुनर्जन्म तभी मान्य होगा जब सरकार उसकी पुष्टि करेगी।

यही कारण है कि वह दलाई लामा की उत्तराधिकारी प्रक्रिया में भी हस्तक्षेप करना चाहता है।

लेकिन बौद्ध परंपराओं के अनुसार, दलाई लामा का पुनर्जन्म एक आध्यात्मिक खोज होती है।

जिसमें योग्य लामा उस बालक की पहचान करते हैं जो पूर्व जन्म की स्मृतियों को दर्शाता है। इसमें किसी सरकार की भूमिका नहीं होती।

 

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