Election Results Data: चुनाव आयोग ने चुनावों के दौरान रिकॉर्ड की गई फोटो, वीडियो, CCTV फुटेज और वेबकास्टिंग को लेकर बड़ा फैसला लिया है।
अब ये डिजिटल रिकॉर्ड सिर्फ 45 दिनों तक ही सुरक्षित रखे जाएंगे।
आयोग ने 30 मई को सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को निर्देश दिया है।
यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव परिणाम को अदालत में चुनौती नहीं दी गई हो, तो 45 दिन बाद यह डेटा डिलीट कर दिया जाए।
जानें EC ने क्यों लिया फैसला?
चुनाव आयोग ने कहा है कि हाल के वर्षों में मतदान और मतगणना के दौरान रिकॉर्ड की गई वीडियो क्लिप्स का तोड़-मरोड़ कर दुरुपयोग किया जा रहा है।
इनका इस्तेमाल सोशल मीडिया पर गलत और भ्रामक जानकारी फैलाने के लिए हो रहा है, जिससे मतदाताओं में भ्रम पैदा होता है।
आयोग ने स्पष्ट किया कि रिकॉर्डिंग का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है, यह सिर्फ आंतरिक निगरानी और पारदर्शिता के लिए किया जाता है।
पहले एक साल तक सुरक्षित रहता था डेटा
अब तक यह व्यवस्था थी कि मतदान से संबंधित रिकॉर्डिंग्स जैसे- पोलिंग स्टेशन की CCTV फुटेज, वेबकास्टिंग, उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग एक वर्ष तक सुरक्षित रखी जाती थी।
इससे कानूनी प्रक्रिया या किसी विवाद की स्थिति में जांच संभव होती थी। नया नियम इसे अब सिर्फ 45 दिनों तक सीमित कर रहा है, जिससे विपक्षी दलों में नाराजगी है।
दिसंबर 2024 में भी हुआ था बदलाव
इससे पहले 20 दिसंबर 2024 को केंद्र सरकार ने चुनाव नियमों में संशोधन कर यह तय किया था कि पोलिंग स्टेशनों की CCTV फुटेज, वेबकास्टिंग वीडियो और अन्य रिकॉर्डिंग को पब्लिक डोमेन में साझा नहीं किया जाएगा।
यह डेटा सिर्फ उम्मीदवारों के लिए उपलब्ध रहेगा। यदि कोई आम नागरिक या संगठन इसे प्राप्त करना चाहता है, तो उसे कोर्ट की अनुमति लेनी होगी।
लोकतांत्रिक व्यवस्था को किया जा रहा खत्म
कांग्रेस ने चुनाव आयोग के इस फैसले को लोकतंत्र के खिलाफ बताया है। पार्टी ने आरोप लगाया कि आयोग और मोदी सरकार मिलकर लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने में लगे हैं।
कांग्रेस का कहना है कि पहले चुनाव से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक करने से रोका गया, अब सारे सबूत मिटाए जा रहे हैं। यह पूरी तरह से पारदर्शिता और जवाबदेही के खिलाफ है।
कांग्रेस ने चुनाव से जुड़े इलेक्ट्रॉनिक डॉक्यूमेंट्स को पब्लिक करने से रोकने वाले नियम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी है।
अब भले ही चुनाव आयोग का यह नया फैसला पारदर्शिता और सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन इससे राजनीतिक विवाद गहराता जा रहा है।
जहां आयोग तकनीकी दुरुपयोग से बचाव की बात कर रहा है, वहीं विपक्ष इसे लोकतंत्र पर हमला मान रहा है।
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