MP Congress District President: सियासी गलियारों में चर्चा है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस संगठन में अब राहुल गांधी का ‘बिहार मॉडल’ लागू किया जाएगा। इसका मतलब है कि जिला अध्यक्षों जैसे महत्वपूर्ण पदों पर अब दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), महिलाओं और अल्पसंख्यकों को प्राथमिकता दी जाएगी।
यह बदलाव राहुल गांधी द्वारा हाल ही में पटना में दी गई एक रैली के भाषण के बाद देखने को मिल रहा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि पहले कांग्रेस के जिला अध्यक्षों की सूची में दो-तिहाई लोग उच्च जातियों से थे, लेकिन अब नई सूची में दो-तिहाई पद पिछड़े और वंचित वर्गों से जुड़े लोगों को दिए गए हैं।
नए फॉर्मूले में 75% जिलाध्यक्ष दलित–आदिवासी
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के 72 संगठनात्मक जिलों में फिलहाल 34 जिलाध्यक्ष सामान्य वर्ग से हैं, जबकि 6 जिलों में अध्यक्षों के पद रिक्त हैं। खाली पड़े जिलों में कटनी, रायसेन, रतलाम ग्रामीण, बैतूल शहर, खंडवा शहर और खंडवा ग्रामीण शामिल हैं।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, नए फॉर्मूले में करीब 75% पद पिछड़े, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक वर्गों के नेताओं को दिए जा सकते हैं। इससे कांग्रेस की संगठनात्मक संरचना में सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिलेगा और हाशिए के वर्गों की राजनीतिक भागीदारी मजबूत होगी।
इस बदलाव का एक बड़ा कारण 2020 के उपचुनाव हैं, जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कई कांग्रेस विधायक और कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हो गए थे। उस समय पार्टी को कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था और संगठनात्मक ढांचा कमजोर हो गया था। कांग्रेस नेतृत्व ने इसके बाद संगठन में बदलाव की दिशा में मंथन किया और अब संगठन को स्थायित्व देने के लिए जिलाध्यक्षों को सशक्त बनाने का निर्णय लिया गया है।
टिकट वितरण में भी जिलाध्यक्षों की भूमिका होगी अहम
अहमदाबाद में हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने यह स्पष्ट किया कि भविष्य में चुनावी टिकट वितरण की प्रक्रिया में जिलाध्यक्षों की राय को महत्व दिया जाएगा। इससे संगठन की पकड़ मजबूत होगी और स्थानीय कार्यकर्ताओं की भागीदारी भी बढ़ेगी।
सूत्रों का यह भी कहना है कि आदिवासी बहुल जिलों जैसे अलीराजपुर, झाबुआ और बड़वानी में नियुक्तियों के लिए अलग फॉर्मूला अपनाया जा सकता है। इन जिलों में विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं, इसलिए संगठनात्मक संतुलन बनाए रखने के लिए ओबीसी या सामान्य वर्ग के नेताओं को जिलाध्यक्ष बनाया जा सकता है।
राजनीतिक जानकारों की माने तो राहुल गांधी का बिहार मॉडल मध्यप्रदेश कांग्रेस संगठन में सामाजिक संतुलन और राजनीतिक समावेशिता की नई दिशा तय करेगा। यह प्रयोग कांग्रेस के पारंपरिक ढांचे से अलग हटकर जमीनी कार्यकर्ताओं और हाशिए के वर्गों को आगे लाने का प्रयास है, जिससे पार्टी की जनाधार बढ़ाने की रणनीति को बल मिलेगा।
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