दिग्विजय सिंह की बैंड. बाजा और भजन की राजनीति
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दिग्विजय सिंह की बैंड. बाजा और भजन की राजनीति

नरेन्द्र कुमार सिंह

अपनी राजनीतिक बयानवाजी की वजह से कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह हमेशा सुर्ख़ियों में रहे हैं. अपने गुरु अर्जुन सिंह की तरह उनका भी प्रिय शगल है, संघ परिवार पर गाहे-बगाहे निशाना साधना. आश्चर्य नहीं कि वे हमेशा भगवा ताकतों के निशाने पर रहे हैं और उनकी छवि एक हिन्दू विरोधी नेता की है.

पर बहुत कम लोगों को मालूम है कि वास्तविक जीवन में वे एक कट्टर धार्मिक व्यक्ति हैं, कर्मकांडी और पूजा-पाठी हिन्दू. जब वे दस वर्षों तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो अक्सर उनके बारे में मजाक चलता था कि मध्य प्रदेश की समस्त स्त्रियाँ मिलकर भी उतने उपवास नहीं रख सकती जितना अकेले दिग्विजय सिंह रखते हैं. 

मुन्नू को (यह घर में उनके दुलार का नाम था) धार्मिक संस्कार विरासत में अपनी मां से मिले थे. उनके एक रिश्तेदार बताते हैं, “ब्राम्ह मुहूर्त में तडके उठाकर अपने राघोगढ़ किले में वे भजन प्रारम्भ कर देती थीं.”

विधि-विधान में जितने उपवास बताये गए हैं, लगभग सब के सब वे रखते हैं. लगभग हर साल वे वृन्दावन में गोवर्धन परिक्रमा करते हैं. मुख्यमंत्री रहते तो एक दफा वे पूरे मंत्रिमंडल को अपने साथ गोवर्धन परिक्रमा पर ले गए थे. २४ किलोमीटर पैदल चलने के बाद उनके कई सहयोगी पाँव में छालों की वजह से कई दिन तक लंगड़ाते रहे थे.

छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित बमलेश्वरी मंदिर सहित ज्यादा से ज्यादा प्रमुख देवी मंदिरों तक वे नवरात्री के दौरान पहुँचने की वे कोशिश करते हैं. वे अक्सर महाराष्ट्र के पंढरपुर की तीर्थ यात्रा पर जाया करते हैं.

३० सितम्बर को दशहरे के दिन से दिग्विजय सिंह एक और तीर्थ यात्रा पर निकले हैं. वे पैदल चलते हुए नर्मदा परिक्रमा कर रहे हैं, नदी के दोनों किनारों की ३,८०० किलोमीटर की पदयात्रा. सत्तर साल के दिग्विजय के लिए शायद उनके जीवन की यह सबसे विकट और विवादास्पद तीर्थयात्रा है.


इस यात्रा के लिए उन्होंने राघोगढ़ किले में अपने खानदान का पारंपरिक दशहरा पूजन भी इस साल, शायद पहली दफा, नहीं किया. दिग्विजय एक राजपूत जागीरदार ठिकाने से आते हैं और इसके पहले अपने किले की पारंपरिक शस्त्र पूजा उन्होंने शायद ही कभी छोड़ी हो.


इस यात्रा के लिए उन्होंने कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी पद से बाकायदा छह महीनों की लम्बी छुट्टी ली है. साथ में चल रही हैं, उनकी पत्नी ४५-वर्षीय अमृता राय, जिन्होंने यात्रा पर जाने के लिए टीवी पत्रकार की अपनी नौकरी छोड़ दी.

राजा साहेब, जैसा कि उनके समर्थक उन्हें संबोधित करते हैं, इस बात से इंकार करते हैं कि इस बहुचर्चित तीर्थ यात्रा के पीछे कोई राजनीतिक मक्सद है. वे इसे नितांत आध्यात्मिक और धार्मिक यात्रा बताते हैं.

विशुध्द राजनीतिक यात्रा

पर लोग इसे मानने को तैयार नहीं. “यह विशुध्द राजनीतिक यात्रा है,” भूतपूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने कहा. बीजेपी में होने के बावजूद गौर राजा साहेब के मित्रों में शुमार किये जाते हैं.

आध्यात्म एक व्यक्तिगत और निजी मामला है. पर दिग्विजय की यात्रा न ही व्यक्तिगत है, न ही निजी. उनके साथ अच्छी-खासी भीड़ चल रही है. बड़े-छोटे कांग्रेसी नेता जगह-जगह पर यात्रा में शामिल होकर उनका उत्साह बढ़ा रहे हैं.


रास्ते में पड़ने वाले गांव-कस्बों और शहरों में उनका स्वागत हो रहा है. पोस्टर और बैनर लगाये जा रहे हैं. बन्दनवार सज रहे हैं. रंगोली बन रही है. औरतें आरती की थाली और सिर पर मंगलकलश लेकर स्वागत में खड़ी रहती हैं. कई जगह बैंड-बाजा और भजन पार्टियाँ साथ चलती हैं. खाने-पीने का इंतजाम रहता है.

स्वागत और हौसला अफजाई के लिए आ रही इस भीड़ में खासी तादाद कांग्रेसियों की है क्योंकि सफ़र पर निकलने के पहले दिग्विजय सिंह ने नर्मदा अंचल में अपने संपर्क सूत्रों को खबर की थी. जाहिर है उनमें से ज्यादातर कांग्रेसी थे.


साल भर बाद मध्य प्रदेश में विधान सभा चुनाव होने जा रहे हैं. स्वागत के लिए आने वालों की भीड़ में काफी टिकटार्थी भी अपने समर्थकों के साथ शामिल हो रहे हैं.

दिग्विजय राजनीतिक सवालों पर चुप्पी ओढ़े रहते हैं. लेकिन खेत-खलिहानों और गांव-जवारों में मिलने वाले लोगों से, खासकर खेतिहर मजदूरों और किसानों से वे सुख-दुःख की बातें करते हैं.


कच्ची सड़कों, पगडंडियों और अक्सर घुटने-घुटने पानी से गुजरते हुए यह यात्रा उन इलाकों तक भी पहुँच रही है जहाँ नेता केवल वोट मांगते वक्त पहुँचते हैं. कई लोग उन्हें अपनी व्यक्तिगत या इलाके से सम्बंधित समस्यायों के बारे में दरखास्त थमाते देखे जा सकते हैं.

साथ में चल रही एक टीम मिनटों में यात्रा के फोटो और विडियो इन्टरनेट पर अपडेट करते रहती है. यह टीम इलाके की सामजिक और आर्थिक स्थिति का भी रिकॉर्ड इकठ्ठा कर रही है.


मध्य प्रदेश के ११० और गुजरात के २० विधानसभा क्षेत्रों से गुजरते हुई यह यात्रा छह महीने बाद जब समाप्त होगी तो इस इलाके की अंदरूनी राजनीतिक स्थिति का पूरा खाका दिग्विजय सिंह के दिमाग में होगा. एक दिलचस्प पहलू यह है कि जब इस यात्रा ने गुजरात में प्रवेश किया, वहां चुनाव प्रचार शबाब पर था.

नर्मदा मैय्या ने उबार लिया

इस तीर्थ यात्रा के असली मक्सद में झाँकने के लिए हमें राजनीति को खंगालना होगा. जिस वक्त दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस जनरल सेक्रेटरी के पद से छुट्टी के लिए दरखास्त दिया था, वह उनके रजीवन के कठिनतम समयों में से एक था. उनका सितार अस्त हो रहा था.

गोवा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के बावजूद पार्टी वहां सरकार नहीं बना पाई थी. राज्य के पार्टी प्रभारी के नाते उनकी थू-थू हो रही थी. सारे दुश्मन हावी होने लगे थे. उनके मित्रों को भी उनका राजनीतिक अस्त सामने दिख रहा था.


नर्मदा मैय्या ने उस हालत में से दिग्गी राजा को उबार लिया है.

यात्रा का एक और राजनीतिक पहलू है —- नर्मदा के किनारे जन्मे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की हाल में संपन्न हुई १४५-दिवसीय नर्मदा सेवा यात्रा. हालाँकि चौहान हेलीकाप्टर पर सवार होकर नर्मदा यात्रा पर निकले थे, पर उनकी यात्रा का मक्सद भी राजनीतिक ही ज्यादा था.


मध्य प्रदेश सरकार ने उस यात्रा पर ४० करोड़ रूपये खर्च किये. उस उत्सवधर्मी यात्रा में शिरकत कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और दलाई लामा से लेकर पीनाज मसानी और अनूप जलोटा जैसी तमाम हस्तियों ने उसे रंगारंग बनाया था. बाबूलाल गौर ने उसे “शाही यात्रा” करार दिया था.

मध्य प्रदेश सरकार अपने ५२ शहरों का मलजल अभी भी नर्मदा में बहा रही है, नदी का प्रदूषण वैसे ही है, बालू लूटा जा रहा है, अतिक्रमण से कैचमेंट सिकुड़ रहा है और पेड़ वैसे ही कट रहे हैं. पर नमामि देवी नर्मदे अभियान प्रारंभ कर शिवराज सिंह ने नर्मदा पुत्र होने की वाह-वाही जरूर लूट ली.

राजनीतिक विश्लेषकों का ख्याल है कि दिग्विजय सिंह की यात्रा ने सरकारी नर्मदा यात्रा का रंग फीका कर दिया है. इलाके के लोग कह रहे हैं कि किसान पुत्र शिवराज तो हेलीकाप्टर से उड़कर आये थे पर राजा साहेब अपनी रानी के साथ पाँव-पाँव चलकर आ रहे है.


चौहान के सलाहकार इस बात को नोट कर रहे हैं कि दिग्विजय की यात्रा उन्ही देहाती इलाकों से गुजर रही है जो शिवराज सिंह का वोट बैंक समझे जाते हैं. सरकार में बैठे लोग इस यात्रा को दिलचस्पी से देख रहे हैं क्योंकि वे इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि दिग्विजय सिंह पूरे राज्य में प्रभाव रखने वाले एकमात्र कांग्रेसी नेता हैं.

दिग्विजय की यात्रा का हौवा इस कदर छा गया है कि राज्य सरकार कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती. उदाहरण, एक. दिग्विजय सिंह ने अपनी यात्रा के दौरान मांग की कि परिक्रमा के रास्ते में यात्री विश्रामालय बनाये जाने चाहिए. राज्य कैबिनेट ने अगली मीटिंग में ही ९२ विश्रामालय और १९० घाट बनने की घोषणा कर दी. 


उदहारण, दो. शिवराज सिंह ने अपनी नमामी देवी नर्मदे पर फ़िल्मकार प्रकाश झा से एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनवाई थी. दो करोड़ रूपये की लागत से बनवाई गयी ४५ मिनट की यह फिल्म अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में रिलीज़ होनी थी. उसका प्रेस नोट भी तैयार हो गया था.


पर ऐन मौके पर फिल्म को इसलिए वापस डिब्बे में बंद कर दिया गया क्योंकिं मुख्यमंत्री के सलाहकारों का ख्याल था कि अभी रिलीज़ होने से दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा को और पब्लिसिटी मिल जाएगी. यह फिल्म बात में तब रिलीज़ कि गयी जब दिग्विजय सिंह की यात्रा गुजरात पहुँच गयी और मध्य प्रदेश के अख़बारों में उसके बारे में छपना कम हो गया.

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