विक्रांत भूरिया को पूरे प्रदेश से वोट मिले, इसने कई नेताओं के और कांग्रेस के क्षेत्रवाद के भरम को तोडा, इस चुनाव ने साबित किया कि युवा पीढ़ी हंगामे नहीं पढ़े-लिखे सौम्य चेहरों को आगे लाना चाहती है
पंकज मुकाती (राजनीतिक विश्लेषक )
विक्रांत भूरिया। पेशे से चिकित्सक। मध्यप्रदेश कांग्रेस का नया युवा चेहरा। विक्रांत युवा कांग्रेस का चुनाव जीते। अध्यक्ष बने। बड़ी जीत हासिल की। विक्रांत को 40850 वोट मिले। संजय यादव को 20430 वोट मिले। यानी विक्रांत ने 20420 वोट ज्यादा हासिल किये। कुल 9 उम्मीदवार इस दौड़ में शामिल थे। मध्यप्रदेश युवक कांग्रेस के वे पहले आदिवासी अध्यक्ष हैं। उनके पिता कांतिलाल भूरिया जरूर मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं।
विक्रांत ने जब इस चुनाव का परचा दाखिल किया, तब वे कमजोर माने गए। जमे जमाये चेहरों ने ‘दम नहीं’ का माहौल बनाया। पर विक्रांत चुपचाप सक्रिय रहे। मालवा-निमाड़ के युवा नेताओं को उन्होंने अपने पक्ष में किया। मालवा-निमाड़ ही नहीं पूरे प्रदेश से उन्हें वोट मिले। 40850 वोट उनके प्रदेश स्तर के समर्थन की गवाही है। दूसरे पक्ष ने उन्हें जितना कमजोर माना वे उतने ही मजबूत बनकर उभरे। उनकी सौम्यता और सरलता को युवाओं ने स्वीकारा।
विक्रांत भूरिया पेशे से चिकित्सक हैं, वे डेली कॉलेज से पढ़े। वे युवा कांग्रेस और कांग्रेस दोनों में बदलाव और सोच के संकेत के तौर पर भी उभरे हैं। विक्रांत की जीत ने ये साबित किया कि कांग्रेस में अब नई पीढ़ी पढ़े लिखे सरल चेहरों में निवेश करना चाहती है। कांग्रेस की राजनीति में शोर-शराबा और सोशल मीडिया पर भड़ास वाले प्रायोजित पोस्ट को भी ये एक संकेत है कि दिखावे और हंगामे वाली नेतागीरी अब नहीं चल सकेगी।
विक्रांत भूरिया की जीत से कांग्रेस के कई मिथक टूटे। कई नेताओं के भरम भी बिखरे। यूथ कांग्रेस अब तक एक जेबी संगठन ही रहा। इसमें अपने चेहते को जीताकर खुद शासन करने का रिवाज रहा। ये रिवाज यदि विक्रांत थोड़ा भी बदल पाए तो उनका जितना वाकई बदलाव साबित होगा। निश्चित ही उन्हें अपने समर्थकों के साथ-साथ कार्यकारिणी को भी साधना और साथ लेकर चलना होगा। वे चलेंगे भी इसकी उम्मीद की जा सकती है। पिछले अध्यक्ष के कार्यकाल से उन्हें बहुत कुछ न करने का सबक जरूर लेना चाहिए।
पिछले अध्यक्ष कुणाल चौधरी पूरे चार साल अध्यक्ष रहे। पर किसी को उनकी कार्यकारिणी के दूसरे सदस्यों के नाम याद नहीं। कुणाल चौधरी निश्चित ही प्रदेश कॉग्रेस के ऊर्जावान नेताओं में से एक हैं। वे भविष्य के नेता है, बनेंगे भी। पर युवा कांग्रेस का अध्यक्ष रहते उन्होंने कई गलतियां की। वे खुद को प्रदेश का नेता बनाने के बजाय एक समूह के नेता बनकर रह गए।
कुणाल चौधरी ने ढेरों आयोजन भी किये, पर उनमे नए लोगों को नहीं जोड़ा। उनके कार्यकाल में संगठन सिर्फ कुछ लोगों तक ही सीमित रहा।विक्रांत भूरिया के लिए चौधरी क्या नहीं करना की किताब साबित हो सकते हैं।
विक्रांत भूरिया मध्यप्रदेश के सबसे वरिष्ठ नेता कांतिलाल भूरिया के बेटे हैं। उनके पिता प्रदेश और केंद दोनों में मंत्री रहे। मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। बावजूद इसके राजनीतिक लोग यदि ये कह रहे थे कि- विक्रांत को जानता कौन है ? ये न जानना बेहद अच्छा है।
इसने ये साबित किया कि विक्रांत उन नेता पुत्रों से अलग हैं, जो अक्सर पिता के नाम पर किसी को धमकाने, कही ट्रांसफर करवाने तो किसी की गाडी को टक्कर मारने के लिए चर्चित रहते हैं। इससे ये भी साबित होता है कि विक्रांत ने कभी भी पिता के नाम की ढाल का उपयोग नहीं किया। इस चुनावी समर को भी उनकी अपनी ही जीत मानना चाहिए।
बहुत संभव है, यदि विक्रांत ने खुद को पूर्व मंत्री के बेटे के तौर पर प्रचारित किया होता वे चुनाव हार जाते क्योंकि लोगों को लगता कि परदे के पीछे से कांतिलाल भूरिया और उनका समूह ही सत्ता चलाएगा। ऐसे में बदलाव की कोई गुंजाईश नहीं दिखती। विक्रांत प्रदेश के उन गिने चुने नेताओं में से एक साबित हो सकते हैं, जिन्होंने अपने पिता से ज्यादा बेहतर पहचान अपने व्यवहार से बनाई।
अपने पिता की छाया से बाहर निकलकर अपनी पहचान की मिसाल बन रहे हैं दिग्विजय सिंह के बेट-जयवर्धन सिंह। जयवर्धन प्रदेश के जिस भी इलाके में जाते हैं-लोग उन्हें एक सरल और मिलनसार नेता के तौर पर याद रखते हैं। जयवर्धन सिंह को तमाम ऐसे लोग भी पसंद करते हैं, जो उनके पिता को बिलकुल भी पसंद नहीं करते ये किसी भी नेता के लिए एक बड़ी जीत होती है कि वो अपनी पहचान बनाये।
इसी तरह पूर्व मंत्री महेश जोशी के बेटे पिंटू जोशी भी अपने परिवार से अलग अपनी छवि गढ़ रहे हैं, वे भी खुद की कहानी लिख रहे हैं। विक्रांत में भी ये खूबी है, पर उन्हें पद हासिल करने के बाद भी इसे बनाये रखना होगा। ये सबसे बड़ी चुनौती होती है कि पद के बोझ में आदमी खुद को न बदले।
इलायची – युवा कांग्रेस में पहले भी बहुत उम्मीदों भरे चेहरे आये, अपनी जगह भी बनाई। जिसमे मुकेश नायक, मिनाक्षी नटराजन, मृणाल पंत, जेवियर मेडा, जैसे नाम है। पर ये सब जितनी तेज़ी से आगे आये उतनी ही तेज़ रफ़्तार से गुम हो गए। आखिर ऐसा क्यों है ? इसकी कहानी सबको ध्यान में रखना चाहिए।
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