दिग्विजय गुट का लेबल हटाकर विजयलक्ष्मी साधो नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में आगे, निमाड़ में अरुण यादव के सामने साधो को चेहरा बनाने की कोशिश

Share Politics Wala News

 

सांवेर चुनाव की बड़ी हार से जीतू पटवारी की दावेदारी कमजोर, सज्जन वर्मा की बदजुबानी आड़े आई तो बाकी नेताओं से पार्टी में टूट और बिखराव का खतरा

पंकज मुकाती (राजनीतिक विश्लेषक)

इंदौर। पूर्व मंत्री विजयलक्ष्मी साधो मध्यप्रदेश में नेता प्रतिपक्ष हो सकती है। वर्तमान में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के पास प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष दोनों पदों की जिम्मेदारी है। कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी छोड़ रहे हैं। उनके स्थान पर विजय लक्ष्मी साधो का नाम इस पद के लिए लगभग तय माना जा रहा है।

पूर्वे मंत्री साधो महेश्वर से विधायक है। विधानसभा उपचुनाव में साधो डबरा सीट की प्रभारी रही है। यहां से भाजपा के टिकट पर सिंधिया की करीबी और मंत्री इमरती देवी प्रत्याशी थी। इमरती देवी की बड़ी हार का श्रेय विजयलक्ष्मी साधो के नेतृत्व को भी दिया जा रहा है। यहाँ से कांग्रेस के सुरेश राजे चुनाव जीते हैं। कहा जा रहा है कि डबरा की जीत के इनाम के तौर पर साधो का नाम आगे बढ़ाया है।

विजय लक्ष्मी साधो प्रदेश की राजनीति में वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं। वे दिग्विजय सिंह के शासन में भी मंत्री रह चुकी हैं। उनका अनुभव अलग-अलग पदों पर मजबूत है। जमुना देवी के बाद वे प्रदेश की राजनीति में दूसरी ऐसी महिला होगी जो नेता प्रतिपक्ष होगी।

साधो का वर्तमान में निर्गुट होना भी काम आएगा

विजयलक्ष्मी साधो को प्रदेश की राजनीति में दिग्विजय सिंह खेमे का माना जाता रहा है। राजनीति के तमाम उतार चढ़ाव के बाद 2018 की चुनावी जीत के बाद साधो ने बड़े तरीके से खुद दिग्विजय खेमे तक सीमित नहीं रखा। साधो ने कमलनाथ और दूसरे गुटों को भी साध रखा है। यही कारण है कि वर्तमान में साधो किसी एक खेमे से जुडी दिखाई नहीं देती है। खेमेबाजी से दूर होना ही उनकी ताकत बना है। कमलनाथ और दिगिवजय दोनों इस नाम पर सहमत होते दिख रहे हैं।

दूसरे नामों से पार्टी में टूट का खतरा

साधो के अलावा जो दूसरे नाम नेता प्रतिपक्ष के लिए चल रहे हैं, उनसे पार्टी में टूट और बिखराव का भी खतरा है। जीतू पटवारी खुद को इस दौड़ में देखते हैं, पर प्रदेश में कई वरिष्ठ नेता उनका नेतृत्व स्वीकारेंगे इसमें बहुत शक है। दूसरा जीतू पटवारी के हाथ में सत्ता का मतलब होगा दिगिवजय के हाथ सारे सूत्र होना।

पटवारी को सांवेर सीट की जिम्मेदारी मिली थी, यहाँ पार्टी करीब 66 हजार वोटो से हारी। सांवेर चुनाव के दौरान पटवारी ने खूब दावे किये पर वे सब नाकाम साबित हुए। इसके अलावा बाला बच्चन और सज्जन सिंह वर्मा भी दौड़ में है। बाला बच्चन आदिवासी कार्ड कर तहत आगे आ सकते हैं, पर गृहमंत्री रहते उनका प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा।

सज्जन सिंह वर्मा वरिष्ठ जरुर हैं, पर अपनी ही पार्टी के कई नेताओं को वे अपनी बदजुबानी से नाराज करते रहते है। किसी युवा को मौका देने का मतलब होगा, कांग्रेस में एक और टूट। सरकार में बहुत से युवाओं को मौका देने के चलते ही कांग्रेस को टूट का सामना करना पड़ा था। ऐसे में सबको साधने की कला सिर्फ साधो में ही दिख रही है।

मालवा-निमाड़ पर भी नजर
अरुण यादव पर भरोसा नहीं

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मालवा-निमाड़ में अच्छी जीत हासिल की थी। उपचुनाव में इस इलाके की 7 सीटों में से 6 पर कांग्रेस हार गई। आगर मालवा से सिर्फ विपिन वानखेड़े ही कांग्रेस के एक मात्र विजेता रहे। खासकर निमाड़ की नेपानगर और मांधाता सीट पर कांग्रेस बुरी तरह हारी।

नेपानगर और मांधाता में भाजपा के दोनों प्रत्याशी पिछले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर जीते थे। इनके टिकट के लिए अरुण यादव ने ही पैरवी की थी। जब ये दोनों भाजपा में चले गए तब भी यादव ने न इन्हे रोकने की कोशिश की न ही इनके खिलाफ कुछ बोला।

सूत्रों के मुताबिक अरुण यादव और उनके भाई पूर्व मंत्री सचिन यादव ने पूरे उपचुनाव इस क्षेत्र में कोई ख़ास काम नहीं किया। यादव के कई करीबी भाजपा में चले गए हैं। ऐसे में विजय लक्ष्मी साधो निमाड़ में बड़ी नेता बनकर उभरे ये पार्टी की कोशिश रहेगी। अरुण यादव की निष्ठा पर भी पार्टी को बहुत भरोसा नहीं रहा है।

दलित वोटों पर भी पार्टी की बड़ी नजर

विजयलक्ष्मी साधो के पक्ष में उनका दलित होना भी है। ग्वालियर भिंड और प्रदेश के दूसरे हिस्सों में कांग्रेस ने अपना परंपरागत दलित वोट भी खोया है। इस वोट की भरपाई के लिए भी पार्टी दलित नेत्री के तौर पर साधो को आगे कर सकती है। दलित होना साधो के पक्ष में जा सकता है।

कांतिलाल भूरिया दूसरे मजबूत दावेदार (कैसे भूरिया की दावेदारी भी मजबूत पढ़िए अगली स्टोरी में )

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *