बच्चे बने मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और मंत्री

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बच्चों ने चलाई संसद, गूंजे विभिन्न मुद्दे

जयपुर। विधानसभा के इतिहास में रविवार को पहली बार बाल सत्र हुआ, जिसमें दो घंटे तक देश प्रदेश से आए बच्चों ने सदन चलाया। देश-प्रदेश से 200 बच्चे विधायक और मंत्रियों की भूमिका में विधानसभा पहुंचे थे।

बच्चों को मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, मंत्री और विधायक की भूमिका दी गई। सदन में बच्चों के बैठने की व्यवस्था भी उसी हिसाब से की गई। बच्चों ने जनता से जुड़े सवाल और मुद्दे उठाए। शून्यकाल में परीक्षाओं में नेटंबदी और भाई भतीजावाद का मुद्‌दा प्रमुखता से उठाया गया, जिस पर हंगामा और वॉकआउट हुआ।

बाल विधायक महेश पटेल ने कहा- प्रतियोगी परीक्षाओं में नेटबंदी की जाती है। सुरक्षा के लिए तो नेटंबदी ठीक है लेकिन अपनी प्रशासनिक अक्षमताओं को ढंकने के लिए नेटबंदी गलत है।

नेटबंदी करने से जनता को बुहत परेशानी होती है। अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है। 75 बार नेटंबदी करके राजस्थान कश्मीर के बाद दूसरे नंबर पर है। इस मुद्दे पर सरकार से जवाब की मांग की। एक ​बाल विधायक ने कहा- नकल के साथ भाई भतीजावाद भी खूब चल रहा है। चर्चा की अनुमति नहीं देने पर सदन से वॉकआउट किया।

बाल सत्र के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि सवाल उठाने से सरकारें जवाबदेह होंगी और शासन में पारदर्शिता आएगी। यह विधानसभाओं और संसद से ही संभव है।

संविधान के साथ संसदीय प्रक्रियाओं को समझना जरूरी है। उन्होंने कहा कि कानून बनाते समय जनता की सक्रिय भागीदारी होगी, तो कानून ठीक बनेंगे और लागू होंगे। हमारे लिए यह चिंता की बात है कि संसद और विधानसभा में कानून बनाने से पहले बहस का समय घटता जा रहा है। पहले ज्यादा चर्चा होती थी। वह समय अब घट रहा हे। यह चिंताजनक है।

विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी ने कहा कि हमें बच्चों के मन की बात सुनकर उसके हिसाब से नीतियां बनाने पर सोचना होगा। केंद्रीय पंचायतीराज मंत्री के तौर पर जब मैं विदेश गया तो वहां लोकल सेल्फ गवर्नेंस पर चर्चा हो रही थी, वहां एक छात्र बैठा था।

मैंने सोचा कि हमारे यहां लोकल सेल्फ गवर्नेंस में छात्रों को नहीं चुना जाता, छात्रों की समस्याओं को कौन उठाएगा? उस समय मैंने मन में कल्पना की कि हमें नए सिरे से देश की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिए नीति बनाते वक्त बच्चों की बात भी सुननी चाहिए।

जोशी ने कहा कि बच्चों से पूछा जाना चाहिए कि वो किस तरह की सरकार चाहते हैं। हमारे संसदीय लोकतंत्र में और चर्चा के बाद निर्णय होते हैं, इसके बावजूद यहां जेपी आंदोलन हुआ, अन्ना आंदोलन हुआ और अब किसान आंदोलन हो रहा है। यदि लोकसभा और विधानसभाएं लोगों की उम्मीदों को पूरा नहीं करेगी तो संसदीय लोकतंत्र कमजोर होगा।

नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि बच्चों ने हमसे अच्छे अनुशासन में सदन चलाया है, हम तो सदन की कार्यवाही को डिस्टर्ब करते रहते हैं। सच्चाई को स्वीकार करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।

देश के 15 राज्यों से बच्चों को बुलाकर बाल सत्र आयोजित कर अध्यक्ष ने इतिहास बनाया है। हम वोटर की उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयास करें।

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