शिवराज ने स्वीकारी हार…. भाजपा को दो सीटें जितने का भी भरोसा नहीं रहा इसलिए शिवराज ने कह दिया-सरकार गिरेगी और मुझे झोला टांगकर जाना पड़ेगा

Share Politics Wala News

 

हार की आहट सुनाते भाजपा के बयान

— भाजपा हार गई तो मैं मुख्यमंत्री नहीं रहूंगा, मुझे झोला टांगकर जाना पड़ेगा- शिवराज

…..भाजपा को अब सरकार बनाने को सिर्फ दो सीटें ही तो जीतना है, वो जीत लेंगे-नरोत्तम

….. मेरी लाज रखो, प्रत्याशियों से कोई भी दिक्कत हो इसकी सजा मुझे मत दो- शिवराज

……प्रत्याशियों की नहीं मेरी तरफ देखों, मै मंच से झुककर प्रणाम करता हूं.-शिवराज

….. ये भाजपा का या शिवराज का नहीं महाराज का चुनाव है, वोट दे दो- सिंधिया

…… मैं डबरा के लोगों से वोट मांग रही हूं, पार्टी (भाजपा ) जाये भाड़ में -इमरती

दर्शक

इंदौर। ऊपर लिखे बयानों को गौर से पढ़ेंगे तो एक निराशा, हताशा, हार का डर सुनाई देगा। आखिर भाजपा के प्रत्याशी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुलकर सत्ता वापसी की बात क्यों नहीं कह पा रहे हैं ? हर सभा में गूंज रहा है, सरकार गिर जायेगी, मुझे झोला उठाकर जाना होगा। वे मंचों से गिड़गड़ाते हुए वोट मांगने को मजबूर दिख रहे हैं।

15 साल तक प्रदेश में सत्ता चलाने वाली भाजपा और उसका मुख्यमंत्री इस बार इतना कमजोर, निरीह क्यों ? क्यों शिवराज अपने काम के बदले वोट मांगने की हिम्मत नहीं कर पा रहे। वे सिर्फ भावनात्मक अपील कर रहे हैं, मुझे वोट दे दो, नहीं तो सरकार गिर जायेगी। मुझे झोला उठाकर जाना पड़ेगा। ये बयान बताते हैं कि शिवराज को दो सीटें जीतने तक का भरोसा नहीं रहा।

यदि बहुमत के लिए सिर्फ कुछ सीटों की जरुरत है, तब भी बीच चुनाव में जोड़-तोड़ करके दो और निर्दलीयों को भाजपा में शामिल कराने मजबूरी क्यों रही। साफ़ है कि तमाम रिपोर्ट और जनता के आक्रोश ने भाजपा को ये समझा दिया है कि सरकार बचा पाना बेहद मुश्किल है। इसलिए चुनाव के बजाय वो बिना चुनाव के ही बहुमत की जुगाड़ में है।

शिवराज और महाराज में भी फूट

शिवराज गद्दार और बिकाऊ से परेशान है, वे तमाम सभाओं ये कह रहे हैं कि प्रत्याशियों को मत देखो मेरी तरफ देखो। यानी वे मान चुके हैं कि एक भी प्रत्याशी जीतने काबिल नहीं है। शिवराज को सिंधिया समर्थकों पर भरोसा नहीं और सिंधिया को शिवराज के चेहरे पर। तभी तो सिंधिया सभाओं में खुलेआम कह रहे हैं कि ये चुनाव भाजपा या शिवराज का नहीं महाराज का है। इसका मतलब साफ़ है कि सिंधिया जान चुके हैं कि शिवराज के चेहरे पर लोगों का भरोसा नहीं है। दूसरी तरफ शिवराज सिंधिया के प्रत्याशियों जीतने लायक मान ही नहीं रहे।

 

नरोत्तम और इमरती ने भी माना जीत नामुमकिन

भाजपा के वरिष्ठ नेता और प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा तो खुलेआम स्वीकार रहे हैं कि सिर्फ दो सीट ही तो जीतना है। हवा अच्छी नहीं है, इससे क्या फर्क पड़ता है। इसके मायने है कि खुद नरोत्तम भी मानते हैं कि दो सीट मिल जाए तो बहुत है। दूसरी तरफ सिंधिया समर्थक इमरती देवी तो साफ़ कह चुकी भाजपा जाए भाड़ में मुझे वोट दो। इमरती इसके पहले ये भी कह चुकी है कि कलेक्टर जितवाएंगे चुनाव। इमरती जैसे सिंधिया समर्थक सभी प्रत्याशी मान चुके हैं कि जीत मुश्किल है। क्योंकि भाजपा के नाम पर वोट नहीं मिलेंगे, महाराज नाम पर गद्दार और बिकाऊ सुनना पड़ रहा।

क्या आम आदमी पार्टी की तरह सभी सीटें जीतेगी कांग्रेस

पूरे प्रदेश में जिस तरह का माहौल है उसमे कांग्रेस क्लीन स्वीप भी कर सकती है। तमाम सर्वे भी ये बता रहे हैं कि भाजपा की तुलना में कांग्रेस बहुत आगे हैं। खुद कमलनाथ शिवराज को कई मौके पर चैलेंज दे रहे हैं, शिवराज वो तीन सीटें बताएं जिनपर वो जीत रहे हैं। इसका शिवराज कोई जवाब अब तक नहीं दे पाए। प्रदेश की शिवराज सरकार के प्रति आक्रोश और बिकाऊ और गद्दार को देखते हुए कांग्रेस का पलड़ा अभी भारी दिख रहा है। दिल्ली में ऐसे ही जन आक्रोश के चलते आम आदमी पार्टी ने प्रचंड जीत हासिल की थी। प्रदेश के हाल भी कुछ ऐसे ही है।

 

इलायची .. इस चुनाव के शुरू से ही भाजपा में शिवराज और महाराज दो गुट बने। भाजपा की अंदरखाने की ये रणनीति भी रही कि सिंधिया समर्थकों को हरवाया जाए। उनके बिना ही बहुमत का जुगाड़ किया जाए। पर जैसे-जैसे चुनाव आगे बड़ा जनता ने भाजपा को भी गुस्सा दिखाया। महाराज समर्थकों को तो वो दौड़ा ही रही है। ऐसे में अपने बुने जाल में उलझी भाजपा अब खुद इससे बाहर नहीं निकल पा रही। दूसरा इस चुनाव में कमलनाथ एक ईमानदार और मजबूत नेता के तौर पर उभरे। जनता में उनके प्रति एक भावनात्मक सहानुभूति भी है।

Related stories.. 

चुनाव ही अंत नहीं .. महिला सुरक्षा के बजाय सिर्फ उपवास और तख्तियां लेकर नारेबाजी करना सरकार को शोभा नहीं देता

 

 

 

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *