क्‍या ‘सत्‍ता की मधुर मुस्‍कान’ में कोरोना के ‘खतरे’ को भांपने में चूक गए चौहान?

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कमलनाथ के हाथ से कुर्सी जा  रही थी तो बेसुध थे और शि‍वराज को स‍िंधि‍या और सत्‍ता म‍िल रहे थे तो वे गाफ‍िल थे। मारामारी में पक्ष और विपक्ष के बावलेपन ने प्रदेश को मुश्किल में डाल दिया

नवीन रांगियाल
जब देश के कई ह‍िस्‍सों में कोरोना एंट्री मारकर लोगों को संक्रम‍ित कर रहा था, ठीक उसी दौरान मध्‍यप्रदेश में राजनीत‍िक उथल-पुथल चल रही थी।
तब न तो अपनी सत्‍ता बचाने में लगे पूर्व मुख्‍यमंत्री कमलनाथ को को फुर्सत थी कि‍ वो इस मामले को देखें और जरुरी उपाय लागू करें और न ही सत्‍ता हथि‍याने के लालच में लगे शि‍वराजस‍िंह ने पूर्व मुख्‍यमंत्री होने के नाते इस बारे में सोचना जरुरी समझा।
कमलनाथ के हाथ से प्रदेश की कुर्सी जा रही थी तो बेसुध थे और शि‍वराज को स‍िंधि‍या और सत्‍ता म‍िल रहे थे तो वे गाफ‍िल थे। सत्‍ता की मारामारी में पक्ष और व‍िपक्ष के नेताओं की बावली होती तस्‍वीरें पूरे देश ने अपनी आंखों से देखी है।
यानी प्रदेश के ‘राजा’ से लेकर ‘महाराजा’ और ‘नाथ’ तक को भान नहीं था क‍ि कोरोना के रूप में चीनी वायरस धीमे पदचाप के साथ नगर प्रवेश कर रहा है।
यह वही समय था जब प्रदेश के जनप्रति‍न‍ियों को प्रदेश में कोरोना संक्रमण के प्रवेश को रोकने के ल‍िए राजनीत‍ि से ऊपर उठ जाना चाह‍िए था, लेक‍िन ऐसा नहीं हुआ।
जब तक कमलनाथ की अंति‍म उम्‍मीद भी खत्‍म नहीं हो गई तब तक वे कुर्सी के ल‍िए प्रयास करते रहे।जब तक शि‍वराज स‍िंह चौहान ने एक बार फ‍िर से प्रदेश के मुख्‍यमंत्री पद की शपथ नहीं ले ली, तब तक उनके भी कान पर कोरोना के खतरे की जूं तक नहीं रेंगी।
खुद को जनता का मसीहा कहने वाले दोनों नेता सत्‍ता के मोह से बाहर आते तब तक कोरोना मध्‍यप्रदेश में प्रवेश कर चुका था।
शपथ ग्रहण के बाद कई द‍िनों तक शि‍वराज के चेहरे पर सत्‍ता हासिल करने का सुख नजर आता रहा। यहां तक क‍ि कोरोना से बचाव के संदेश देते वक्‍त भी उनके मुख पर मधुर मुस्‍कान नजर आती है। इस संकट की उनके चेहरे पर कोई गंभीरता, कोई शि‍कन नहीं द‍िखाई दे रही है।
जब शि‍वराज फ‍िर से मुख्‍यमंत्री बन जाने की खुमारी से बाहर आए तब तक इंदौर की जनता ‘जनता कर्फ्यू’ का राजवाडा पर जुलूस न‍िकाल चुकी थी।
मुखि‍या की इसी ढि‍लाई में बेबस पुलि‍स और डॉक्‍टरों की टीम पर लोग हमले कर चुके थे और इंदौर के तो कलेक्‍टर और आईजी को तो समझ ही नहीं आ रहा था क‍ि क्‍या करें। बाद में कलेक्‍टर के तौर पर मनीष स‍िंह और बतौर आईजी हर‍िनारायण चारी म‍िश्रा को लाया गया। लेक‍िन इन दोनों अधि‍कार‍ियों के काम के पर‍िणाम भी आना अभी शेष हैं।
इस पूरे मामले में शि‍वराज स‍िंह की ज‍िम्‍मेदारी इसल‍िए ज्‍यादा बनती है, क्‍योंक‍ि कोरोना के एनवक्‍त पर उन्‍होंने प्रदेश की कमान संभाली थी। बावजूद इसके वे प्रदेश में ‘लॉकडाउन’ का ठीक से पालन नहीं करवा पाए। लोगों को कोरोना की गंभीरता का अहसास नहीं द‍िला पाए और ज्‍यादातर जनता आम द‍िनों की तरह घूमती-टहलती नजर आई।
8 अप्रेल की रात को शि‍वराज ने इंदौर, भोपाल और उज्‍जैन समेत प्रदेश के 15 ज‍िलों को पूरी तरह से सील करने के आदेश जारी क‍िए। लेक‍िन 10 अप्रैल तक मध्यप्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमण से मृत्यु दर साढ़े 7 प्रतिशत हो चुकी थी, जो राष्ट्रीय स्तर पर इस महामारी से मृत्यु दर (करीब सवा 3 प्रतिशत) से दोगुने से भी ज्यादा है।

इंदौर की स्‍थानीय मीड‍िया की खबरों की माने तो प‍िछले 7 द‍ि‍नों में शहर की अलग-अलग कब्रस्‍तानों में 145 जनाजे पहुंचे। इसकी पुष्‍ट‍ि क‍िसी ने नहीं की है, लेक‍िन अगर इस बात में जरा भी सच्‍चाई है तो मध्‍यप्रदेश सरकार और प्रशासन को बेहद ज्‍यादा गंभीरता और सजगता की जरुरत है।

 

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