आखिर क्यों मोदी सरकार में आर्थिक सलाहकार दे रहे हैं इस्तीफे ?

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आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल के बाद डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य के इस्तीफे से उठे सवाल
मुंबई। नरेन्द्र मोदी सरकार का आर्थिक मामलों में मामला ठीक नहीं दिखता। मोदी सरकार के साथ आर्थिक सलाहकारों की पटरी भी बहुत नहीं बैठी। आरबीआई गवर्नर रहे रघुराम राजन भी सरकार से नाराज रहे। उनकी और अरुण जेटली के बीच तनातनी सार्वजानिक रही। इसके बात उर्जित पटेल भी अपना कार्यकाल पूरा होने के पहले ही इस्तीफा दे गया। ताज़ा मामला डिप्टी गवर्नर का है ी. आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य (45) ने कार्यकाल पूरा होने से 6 महीने पहले इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने इसकी वजह निजी बताई है। सोमवार को यह जानकारी सामने आई। आरबीआई का कहना है कि कुछ हफ्ते पहले आचार्य का पत्र मिला था। उसमें कहा गया था कि अपरिहार्य निजी कारणों से 23 जुलाई के बाद डिप्टी गवर्नर के पद पर रहना संभव नहीं होगा। आचार्य के पत्र पर विचार किया जा रहा है। नोटबंदी से जुड़े मामलों में उर्जित पटेल ने भी सरकार के खिलाफ खुलकर बोला था। ख़बरें थी थी पटेल नोटबंदी के पक्ष में नहीं थे। ये फैसला सरकार की जिद और मनमानी है। पटेल के ही करीबी सहयोगी रहे हैं आचार्य। आचार्य के इस्तीफे को भी नोटबंदी और कमजोर वित्तीय व्यवस्था से जोड़कर देखा जा रहा है। विरल और पटेल के इस्तीफे के ये मायने भी निकाले जा रहे है कि मोदी सरकार अभी और कई बड़े कदम उठाने जा रही है जिससे आरबीआई के अधिकारी खुश नहीं हैं।

आचार्य 23 जनवरी 2017 को रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर बने थे। वे आरबीआई की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी यूनिट, मॉनेटरी पॉलिसी डिपार्टमेंट, डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक एंड पॉलिसी रिसर्च, फाइनेंशियल मार्केट ऑपरेशन डिपार्टमेंट और फाइनेंशियल मार्केट रेग्युलेशन डिपार्टमेंट के इन्चार्ज भी हैं। डिप्टी गवर्नर के पद पर 3 साल का कार्यकाल जनवरी 2020 में पूरा होना था। पिछले साल उन्होंने केंद्रीय बैंक की स्वायत्ता का मुद्दा उठाया था।

अक्टूबर 2018 में एक भाषण के दौरान आचार्य ने कहा था कि जो सरकार केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता से समझौता करती है उसे बाजार की नाराजगी झेलनी पड़ती है। उस बयान के बाद सरकार और आरबीआई के बीच विवाद खुलकर सामने आ गया था। सरकार से विवादों के चलते 10 दिसंबर 2018 को उर्जित पटेल ने गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया था। उनका कार्यकाल पूरा होने में भी 9 महीने बाकी थे।

आचार्य आर्थिक उदारीकरण के बाद आरबीआई के सबसे युवा डिप्टी गवर्नर हैं। देश में 1991 में आर्थिक उदारीकरण की नीतियां शुरू हुई थीं। वे अगस्त में न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में टीचिंग से जुड़ेंगे। रिजर्व बैंक से जुड़ने से पहले भी वे न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर थे। उनका परिवार भी अमेरिका में है। आचार्य ने 1995 में आईआईटी मुंबई से कंप्यूटर टेक्नोलॉजी में ग्रेजुएशन की थी। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के पद पर रहने से पहले 7 साल लंदन बिजनेस स्कूल (एलबीएस) में थे। वे एलबीएस के कॉलर इंस्टीट्यूट ऑफ प्राइवेट इक्विटी के एकेडमिक डायरेक्टर भी रहे थे। वहीं से उन्होंने बैंक्स एंड फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस पर पीएचडी की थी।

उर्जित पटेल के इस्तीफे के बाद यह अटकलें भी लगी थीं कि आचार्य ने भी इस्तीफा दे दिया है। हालांकि, आरबीआई ने उन खबरों का खंडन किया था। लेकिन, 6 महीने बाद आचार्य ने आखिर इस्तीफा दे ही दिया। बताया जा रहा है कि वे पटेल के इस्तीफे के बाद से असहज महसूस कर रहे थे। शक्तिकांत दास के गवर्नर बनने के बाद आरबीआई इस साल रेपो रेट में 3 बार कटौती कर चुका है। इनमें से 2 बार आचार्य रेट कट के पक्ष में नहीं थे।

आचार्य ने कहा था- मैं गरीबों का रघुराम राजन हूं
विरल आचार्य ने जब आरबीआई के डिप्टी गवर्नर का पद संभाला था उस वक्त नोटबंदी के बाद का दौर था और जमा एवं निकासी के नियमों में बार-बार बदलाव को लेकर आरबीआई की निंदा हो रही थी। आचार्य आरबीआई के पूर्व गवनर्र रघुराम राजन की नीतियों के समर्थक हैं। वे राजन के साथ फाइनेंशियल और बैंकिंग सेक्टर से जुड़े रिसर्च पेपर और रिपोर्टों में को-ऑथर भी रहे हैं। उन्होंने एक बार खुद को गरीबों का रघुराम राजन भी कहा था।

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