आखिर इमरान के प्रस्ताव पर जवाब में इतनी देरी क्यों ?

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सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार )
भारत और पाकिस्तान के बीच चल रही फौजी तनातनी में कल दो नाटकीय मोड़ आए, एक तो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने सार्वजनिक रूप से भारतीय प्रधानमंत्री से अपील की कि वे बातचीत शुरू करें, और पाकिस्तान तमाम मुद्दों पर बात करने के लिए तैयार है जिसमें आतंक का मुद्दा भी शामिल है। इमरान ने यह भी कहा कि एक बार अगर जंग छिड़ जाएगी, तो उसे रोकना किसी के हाथ में नहीं रह जाएगा। इस पर भारत की ओर से सरकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, और प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री तक अपनी पार्टी के चुनाव प्रचार में लगे हुए दिख रहे हैं। दोनों देशों के लोगों सहित दुनिया के कई देशों के लोग यह इंतजार कर रहे हैं कि बातचीत की इस पेशकश पर भारत का क्या रूख रहता है, और अधिकतर लोग यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि फौजी कार्रवाई आगे बढऩे के बजाय सिलसिला थमेगा, और बातचीत का कोई रास्ता निकलेगा। इस बीच भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर, संयुक्त राष्ट्र में इस बात की कोशिश कर रहा है कि भारत पर कई आतंकी हमले करने वाले पाकिस्तान में बसे आतंकी मसूद अजहर को आतंकियों की विश्व-सूची में शामिल किया जाए। हो सकता है कि भारत यह राह देख रहा हो कि एक बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान कुछ और दूरी तक अलग-थलग पड़ जाए, तब किसी बातचीत में उसका रूख नर्म रहेगा, और समझौते का रहेगा। सरकार से परे भारत के बहुत से दूसरे बवाली और बकवासी लोग यह आरोप दुहराने में लगे हैं कि इमरान खान पाकिस्तानी फौज का पि_ू है, और उससे बातचीत से कोई फायदा नहीं है।
हमने दो दिन पहले इसी जगह यह लिखा था कि यह मोदी सरकार के आखिरी कुछ हफ्ते चल रहे हैं, और ऐसे में सरकार कोई बड़ी फौजी कार्रवाई भी शायद न कर सके, और कोई गंभीर बातचीत भी शायद चुनाव के पहले के इन हफ्तों में न हो सके। हमारे लिखने के अगले ही दिन भारत ने पाकिस्तान पर जो बम बरसाए हैं, उसे लेकर दोनों देशों के अलग-अलग दावे हैं, पाकिस्तान का कहना है कि उससे जान और माल की कोई बर्बादी नहीं हुई है, और रात के अंधेरे में हुए हमले के बाद सुबह-सुबह भारत ने ढाई-तीन सौ मौतों का आंकड़ा अनौपचारिक रूप से मीडिया को बताया है। इसके बाद कल फिर दोनों देशों के बीच फौजी विमानों की आवाजाही हुई है, कुछ-कुछ बम बरसाने के दावे किए गए हैं, कुछ विमान गिराने के दावे किए गए हैं, और इन सबके बीच में जो सबसे गंभीर बात हुई है, वह है भारत का एक लड़ाकू विमान पाकिस्तान में गिरना, और उसके पायलट का पाकिस्तान के हाथ जिंदा लगना। अब इस पायलट की रिहाई चुनाव के मुहाने पर खड़ी मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती रहेगी, और पाकिस्तान के साथ किसी भी तरह की बातचीत, तोलमोल, इन सबका सीधा लेना-देना इस पायलट की रिहाई और चुनाव, ये दोनों ही रहेंगे। ऐसे में इमरान खान की इस बात को अनदेखा करना शायद ठीक नहीं होगा कि भारत और पाकिस्तान को बातचीत करनी चाहिए।
जो लोग यह मानते हैं कि पाकिस्तान के भीतर इमरान का कोई वजन नहीं है, और चुनावों में धांधली के रास्ते वहां की फौज ने ही अपने एक पि_ू को प्रधानमंत्री बनवाया है, उनको यह बात याद रखनी चाहिए कि भारत ने तो पाकिस्तान के साथ उस वक्त भी बातचीत जारी रखी जब एक के बाद एक फौजी तानाशाह वहां की हुकूमत चलाते रहे। इसलिए पाकिस्तान की सत्ता किसके हाथ है, यह देखना हिन्दुस्तान का काम नहीं है। अगर लगता है कि उस देश से बात करनी है, तो फिर उस देश की हुकूमत से ही बात करनी होगी। भारतीय पायलट के पाकिस्तानी कैद में होने से परे भी दोनों देशों को अमन-चैन की एक और कोशिश करनी चाहिए। शांति की हजार मील लंबी राह भी पहला कदम बढ़ाने के बाद ही कम होना शुरू होती है, और आज जब हिन्दुस्तान मोदी के पौने पांच बरस पूरे होने के बाद भी आतंकी हमलों पर किसी तरह काबू नहीं कर पाया है, तो पाकिस्तान की बातचीत की पेशकश को एक मौका जरूर देना चाहिए, ऐसा न करके हिन्दुस्तान एक रणनीतिक चूक भी करेगा, और बाकी दुनिया के सामने उसकी यह तस्वीर बनेगी कि वह बातचीत से कतराते रहा है। आज जिस तरह पाकिस्तान की यह तस्वीर बन रही है, या कि बन चुकी है कि उसकी जमीन से आतंकी तैयारी करते हैं, और हिन्दुस्तान पर हमला करते हैं, ऐसे में भारत को अपनी अंतरराष्ट्रीय साख भी बनाए रखना चाहिए, और पड़ोस में स्थायी रूप से खड़े हुए तनाव, खड़ी हुई दुश्मनी को भी कम करने की कोशिश करना चाहिए। ऐसा न होने पर भारत की विदेश नीति का एक बड़ा हिस्सा, फौजी तैयारी का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान-केन्द्रित होकर रह गया है, जो कि दोनों ही मुल्कों की गरीब जनता के पेट काटकर हो रहा है। पाकिस्तान की फौजी तैयारी भी वहां की गरीबी की कीमत पर ही हो रही है। हमारा ख्याल है कि बातचीत की पेशकश जिस वक्त भी, जिस तरफ से भी आए, उसके लिए कोशिश की जानी चाहिए।

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