चीनी चाल-हिंद महासागर में चारो तरफ से घिरा भारत

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डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी (वरिष्ठ पत्रकार )

चीन ने भारत को जिस तरह से घेर लिया है, पांच-छह साल पहले उसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। दक्षिण एशियाई देशों के संगठन ‘सार्क’ के ‘बेमौत मारे जाने’ के बाद चीन ने पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, नेपाल ,भूटान और अफगानिस्तान में अपनी जड़ें मजबूत कर ली है। आज हालत यह है कि चीन ने हिंद महासागर में ही भारत को घेर लिया है।

भारत में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ बने नए गठबंधन क्वाड में शामिल होकर सैन्य अभ्यास शुरू किया तो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इसे बांग्लादेश के दूरगामी हितों के खिलाफ बता दिया।

भारत क्वाड में मिलकर भले ही अरब सागर में या बंगाल की खाड़ी में जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ युद्धाभ्यास कर ले; लेकिन ये कोई भारत के पड़ोसी देश नहीं हैं। भारत के सुख-दुख में उनकी कोई जगह नहीं है, जबकि सार्क देशों से भारत के सामरिक और आर्थिक हित जुड़े हुए थे।

आज चीन हिंद महासागर में उस पूरे इलाके में बड़ी शक्ति बनकर उभर गया है, जहां कभी भारतीय प्रभाव था, भारत की तूती बोलती थी, वहां चीन की दादागीरी चल रही है।

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17th to 23rd June 2021

 

चीन ने हिंद महासागर में अपने आर्थिक और फौजी हितों को बहुत योजनाबद्ध तरीके से व्यवस्थित कर लिया है। जो देश कभी सार्क का हिस्सा थे और भारत के प्रभुत्व में थे, वे अब चीन के पाले में हैं और जकड़े हुए हैं।

उन्हें चीन की जकड़न से मुक्त कराकर वापस अपने पाले में लाना आसान नहीं होगा। सार्क देश दुनिया की 23 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। सार्क संगठन में शामिल होने के कारण भारत और पाकिस्तान के बीच क्षेत्रीय संघर्ष थोड़े कम हुए थे।

संबंधों में तनाव था लेकिन एक दूसरे की थोड़ी-बहुत चिंता भी थी। शांति और सहयोग के मुद्दों पर अक्सर चर्चा होती थी।

दक्षिण एशियाई देशों ने सार्क विकास कोष बनाया था, दक्षिण एशिया विश्वविद्यालय की स्थापना का निर्णय किया था, आपदाओं में एक दूसरे की मदद करने के लिए भी फंड था, लेकिन अब ऐसा कुछ बचा नहीं है।

6 नवंबर 2014 को सार्क देशों के काठमांडू सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत के लिए हमारा दृष्टिकोण चार स्तंभों पर टिका है।
व्यापार, निवेश, प्रत्येक क्षेत्र में सहयोग और हमारे लोगों के बीच निरंतर संपर्क। प्रधानमंत्री ने ‘नेबरहुड फर्स्ट’ का नारा भी दिया था। भारत का नारा केवल नारा ही रहा, चीन ने भारत पड़ोसियों पर डोरे डाल दिए।

पाँच साल पहले अगर कोई कल्पना करता कि भारत की हिंद महासागर में यह स्थिति हो जाएगी तो वह शायद हंसी का पात्र होता है। लेकिन चीन में पिछले पाँच साल में श्रीलंका में जो स्थिति भारत के कर दी है, वह चिंता की बात है।

श्रीलंका ने दक्षिणी शहर हंबनटोटा में चीन के सहयोग से बनाए गए बंदरगाह और उसके पास 660 एकड़ जमीन पर विकसित किए जा रहे विशेष आर्थिक क्षेत्र को 99 साल के लिए चीन को लीज पर दे दिया है।

दूसरा समझौता तो दूसरा राजधानी कोलंबो के ही एक छोर पर समुद्र पाट कर हासिल की गई 270 एकड़ जमीन पर कोलंबो पोर्ट सिटी बनाने का है। चीन ने श्रीलंका को सपना दिखाया है कि वह यहाँ सिंगापुर जैसा एक शहर बसा देगा।

श्रीलंका में सरकार और विपक्षी पार्टियां भी इस चीनी समझौते के साथ खड़ी है, वरना यह प्रस्ताव श्रीलंका की संसद में 148 के मुकाबले 59 के मत विभाजन से पारित नहीं हो जाता। जाहिर है चीन ने श्रीलंका की सरकार और विपक्ष को जेब में रख लिया है।

भारत को किसी तरह के मुगालते में नहीं रहना चाहिए। चीन के खिलाफ श्रीलंका का कोई भी दल कभी भी खुलकर बोलता नहीं है। हंबनटोटा बंदरगाह की ही बात करें। एक बड़े बंदरगाह को खड़ा करने की योजना के तहत चीन में यहां पर पूंजी लगाई। इंजीनियरिंग कौशल दिखाया और यह बंदरगाह बनाया।

लिट्टे का सफाया करने के बाद चीन की सरकार तब मानवाधिकार के मुद्दे पर पूरी दुनिया के निशाने पर थी। भारत इस बंदरगाह के विकास पर साफ़ शब्दों में अपनी नाराजगी जता चुका था, लेकिन श्रीलंका की सरकार को लगता था कि हंबनटोटा से अच्छी कमाई होगी। भारत की नाराज़गी को कोई तवज्जो श्रीलंका ने नहीं दी।

और फिर जब वह बंदरगाह बना तो उसकी कमाई इतनी कम थी कि चीनी कर्जे की किश्त चुकाना मुश्किल हो गया। सत्तारूढ़ पार्टी चुनाव हार गई और विपक्ष में बैठकर भी चीन की वकालत करने लगी।

नए प्रधानमंत्री ने, जो कभी सरकार के खिलाफ और चीन के विरोध में थे, चुप्पी साध ली। हंबनटोटा बंदरगाह को चीन को 99 साल की लीज़ पर देने का फैसला कर लिया गया।(जिसे 198 साल तक बढ़ाया जा सकता है) फिर इसके दायरे को 660 एकड़ के स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन को भी शामिल कर लिया गया और यहाँ तक कि इस इलाके में चीन के ही नियम-कानून लागू होने की बात मान ली गई है।

यह एक तरह से चीन को बंदरगाह सौंपने जैसा ही है। हंबनटोटा बंदरगाह कभी श्रीलंका सेना का मुख्य बंदरगाह था, लेकिन अब वह चीन के जाल में है। आप इस खतरे को कैसे नज़रअंदाज़ कर सकते हैं कि यहाँ चीन की सेना डेरा डाल ले तो? श्रीलंका की क्या मजाल कि चीन की मुखालिफत करे?

अब श्रीलंका की नौसेना गाले के बंदरगाह पर ठिकाना बना चुकी है। हंबनटोटा से करीब बीस किलोमीटर दूर ही है डोंड्रा हेड इलाका। हिन्द महासागर में यहीं से दुनियाभर के जहाज गुजरते हैं।

भारत के पूर्वी क्षेत्र और पश्चिमी क्षेत्र को आने-जाने वाले जहाज भी इसी मार्ग का उपयोग करते हैं। कहाँ तो भारत वियतनाम की सहायता से चाइना सी में चीन की घेरेबंदी की योजना बना रहा था और अब हमारी घरेलू आवाजाही पर भी चीन की नज़र है !

चीन की पॉलिसी है ‘पर्ल आफ स्ट्रिंग’ ! समुद्र में मोतियों की तरह वह अलग-अलग देशों में बंदरगाह विकसित कर रहा है और वहां कब्ज़े कर रहा है। चीन जिस तरह से श्रीलंका में कब्जे जमा रहा है, वहां से चीनी युद्धपोत और पनडुब्बियां की जड़ में भारत के चेन्नई, त्रिवेंद्रम और कन्याकुमारी जैसे शहर आ सकते हैं।

यहाँ यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि भारतीय नौसेना के पास अभी एक भी परमाणु पनडुब्बी नहीं है (केवल पारम्परिक डीज़ल-चलित पनडुब्बी ही हैं), जबकि चीन के पास परमाणु शक्ति से लैस दर्जनों पनडुब्बियां हैं।

20 साल पहले अमेरिका सबसे बड़ी नौ सैन्य शक्ति था और चीन उसके सामने एक तिहाई क्षमता भी नहीं रखता था, लेकिन अब चीन दुनिया की सबसे बड़ी नौ सेन्य शक्ति है।

अमेरिका से भी बड़ी ! जितने युद्धपोत और पनडुब्बियां उसके पास हैं दुनिया में किसी के पास भी नहीं। भारत इसके लिए विदेशी कंपनियों से समझौते कर चुका है, लेकिन उसका नतीजा अभी आना बाकी है।

भारत ने दस साल की लीज़ पर 300 करोड़ डॉलर के समझौते के बाद रूस से जो पनडुब्बी आईएनएस चक्र 2012 में ली थी, वह पनडुब्बी लीज खत्म होने के ही करीब 10 महीने रूस को लौटा चुका है। अब भारत ने स्वदेशी परमाणु पनडुब्बी निर्माण के लिए पांच देशों से समझौते कर रखे हैं। बस। पनडुब्बी एक भी बनकर तैयार नहीं हुई है।

भारतीय नौसेना का एकमात्र हायड्रोग्राफ़िक सर्वे शिप संध्यॉंक भी इसी महीने रिटायर हो गया। आईएनएस संध्यॉंक 40 साल से भारतीय सेना में था और कई बड़े ऑपरेशन इसने किए थे, जिसमें 1987 में श्रीलंका की मदद करने वाला ऑपरेशन पवन और 2004 की सुनामी में मदद करने वाला ऑपरेशन रेनबो शामिल था।

26 जनवरी 1981 को सब भारतीय सेना में शामिल किया गया। उसने भारतीय नौसेना के लिए 200 से ज्यादा बड़े हाइड्रोग्राफिक सर्वे किए थे।

तीन सप्ताह पहले की बात है। जब श्रीलंका की संसद कोलंबो पोर्ट के पास में चीन को सैकड़ों एकड़ की स्पेशल इकोनामिक जोन बनाने की अनुमति दे रही थी और तब चीन के विशालकाय जहाज में आग लग गई थी।

इस जहाज को बुझाने के लिए श्रीलंका बंदरगाह के अधिकारियों ने भारत से मदद मांगी। भारत खुद को हिंद महासागर क्षेत्र का नेट सिक्योरिटी प्रोवाइडर मानता आया है इसीलिए भारत के कोस्ट गार्ड के दो जहाज चीनी जहाज को आग बुझाने के लिए भेजे गए थे।

यानी भारत चीन के जहाज में लगी आग बुझा रहा था और चीन भारत के पास कोलंबो पोर्ट में अपना स्पेशल जोन बनाने की जुगत में भिड़ा हुआ था ताकि भारतीय जहाजों पर ही निगाह रखी जा सके।

पिछले साल अक्टूबर में भारत सरकार ने म्यांमार सरकार को एक पनडुब्बी गिफ्ट की थी। आईएनएस सिंधुवीर नामक पनडुब्बी भारत ने म्यांमार की नौसेना के लिए दी थी और आशा थी कि इससे म्यांमार की नौसेना की ताकत बढ़ेगी और वक्त आने पर मैं म्यांमार की नौसेना भारत के साथ मिलकर चीन के खिलाफ मोर्चा लेगी, लेकिन म्यांमार में ही सैन्य विद्रोह हो गया और वहां की सरकार जाती रही। अब म्यांमार की नौसेना चीन की नौसेना के हवाले हैं तो इस तरह भारत की पनडुब्बी भी चीन के नियंत्रण में है।

चीन ने दुनिया में अपना महत्त्व बढ़ने के लिए ‘डेब्ट डिप्लोमेसी’ अपना रखी है। चीन की अर्थव्यवस्था भारत से करीब पांच गुना बड़ी है। भारत 2024 तक जितनी बड़ी यानी पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य रखता है, उतनी धनराशि चीन ने दुनिया के देशों को क़र्ज़ में दे रखी है। न केवल एशियाई देश, बल्कि लेटिन अमेरिकी देशों को भी चीन ने भरी क़र्ज़ दे रखे हैं।

इसी क़र्ज़ के बल पर वह पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव, अफगानिस्तान आदि में घुसपैठ करता रहता है। गरीब और विकासशील देशों को जितना कर्ज वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ देता है, उससे ज्यादा कर्ज चीन ने दे रखा है। इसे मदद के बल पर चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर में बंदरगाह बना लिया और टैक्स फ्री जोन घोषित कर दिया गया है।

पाकिस्तान के ग्वादर की तरह ही चीन ने बांग्लादेश के सोनादिया में अपना बंदरगाह विकसित कर दिया है। इस बंदरगाह से चीन को फायदा है कि उसकी सीधी जद में भारतीय क्षेत्र आ जाते हैं।

इतना ही नहीं उन्होंने बांग्लादेश में ऐसी कई फर्जी कंपनियां खोल रखी है जिनसे भारत को बड़ी मात्रा में माल निर्यात होता है। माल तो चीन का है लेकिन उस पर मोहर लगी होती है ‘मेड इन बांग्लादेश’ की। इस तरह चीन बांग्लादेश को भारत की विशेष छूट का लाभ भी उठा रहा है और गलबहियां भी कर रहा है।

चीन नेपाल को भारत के खिलाफ बार-बार भड़का रहा है। वहां सत्ता परिवर्तन के लिए चीन काफी धन लगाता है। कम्युनिस्ट पार्टी के लोगों को चीन भारी मात्रा में धन और हथियार मुहैया करा रहा है।

जिस नेपाल के कभी भारत से बहुत अच्छे संबंध हुआ करते थे, वह नेपाल अब भारत को मुंह चिढ़ा रहा है। नेपाली प्रधानमंत्री बार-बार भारत विरोधी बयान देते हैं।

हालात इतने बिगड़े थे कि भारत को नेपाल की आर्थिक घेरा बंदी भी करनी पड़ी थी। चीन के प्रभाव से बचाने के लिए ही भारत को वह घेरा बंदी तोड़नी पड़ी। इसके बाद भारत ने नेपाल को कोरोना वैक्सीन के टीके भी दिए लेकिन फिर भी नेपाली प्रधानमंत्री आरोप लगाते हैं कि भारत में उनकी अपेक्षित मदद नहीं। दस लाख टीके, सवा तीन लाख पैरासिटामॉल और ढाई लाख हाइड्रोक्लोरोक्वीन के डोज़ भारत नेपाल को गिफ्ट कर चुका है।

चीन में ईरान के साथ मिलकर भारत को चाबहार योजना से भी बाहर कर दिया। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 2002 में इस योजना पर अरबों डॉलर लगा दिए थे। मार्च में ईरान और चीन के बीच 25 साल का एक समझौता हो गया। इस समझौते के बाद चाबहार जाहिदा रेलवे लाइन के बाद कई और बड़ी परियोजनाओं से भारत को बाहर किया जा सकता है।

भारत, ईरान और अफगानिस्तान के साथ मिलकर कई परियोजनाओं की शुरुआत कर चुका था, जिसमें एक अंतरराष्ट्रीय सड़क का निर्माण शामिल था। अफगानिस्तान में शान्ति के प्रयासों में अब वह पाकिस्तान और चीन की मदद ले रहा है, भारत की नहीं।

भारत को हर हाल में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना ही पड़ेगा, वरना आगामी दशकों में भारत को उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। गत वर्ष 15 जून को गलवान घाटी में दिए गए चीन के ज़ख्म अभी हरे ही हैं। भारत को आक्रामक होना ही पड़ेगा।

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